बिहार की राजनीति में मुस्लिम समाज की उपेक्षा से नये समीकरण बनने की संभावना

बिहार की राजनीति में मुस्लिम समाज की उपेक्षा के चलते नए राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना है। 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले, पटना में जमीयत उलेमा बिहार के जलसे में नीतीश कुमार की गैर-मौजूदगी से सीमांचल में चर्चा तेज हो गई है। जलसे में मौलाना अरशद मदनी ने धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप का विरोध करते हुए मुस्लिम समुदाय को एकजुट होने का आह्वान किया। इसके बाद मुस्लिम समाज ने नए समीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया। राजनीतिक हलकों में यह माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने मुसलमानों के हितैषी होने का दिखावा करते हुए अब उनसे दूरी बना ली है। इससे उनकी राजनीतिक रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं और सीमांचल में उनके वास्तविक रुख को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। इससे बिहार में राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव की संभावना को बल मिला है।

बिहार की राजनीति में मुस्लिम समाज की उपेक्षा से नये समीकरण बनने की संभावना

सीमांचल  (अशोक /विशाल)

2025 के आगामी बिहार विधान सभा आम चुनाव के मद्देनजर बिहार में अब नये राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना जताई जा रही है ।

सीमांचल में जारी चर्चाओं के अनुसार , बिहार की राजधानी पटना में आयोजित जमीयत उलेमा बिहार के जलसे में शिरकत करने से नीतीश कुमार के कतराने के बाद से नये समीकरण बनने की संभावना की चर्चा जोरों से चलने लगी है।

 अंदाजा लगाया जा रहा है कि पटना में जमीयत उलमा बिहार द्वारा आयोजित जलसे में शिरकत करने वाले बिहार भर के मुसलमानों को संबोधित करते हुए जलसे के मुख्य वक्ता मौलाना अरशद मदनी ने जब आहवान कर दिया कि मुस्लिम समाज के धार्मिक मामले में किसी के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है तो उक्त जलसे में शिरकत करने वाले मुस्लिम समुदाय के द्वारा नए समीकरण की आवश्यकता पर बल दिया जाने लगा है।

जिस कारण बिहार में अब नए राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना जताई जा रही है और कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार का वास्तविक स्वरूप बिहार की जनता के सामने आ गया है।

चर्चा होने लगी है कि बिहार में मुसलमानों के झूठे हिमायती बनकर नीतीश कुमार ने अपनी अब तक की राजनीतिक पिपासा को शांत किया और अब राजनीतिक कारणों से उस समाज से दूरियां बनाना शुरू कर दिए हैं।

सीमांचल में चल रही चर्चाओं के अनुसार , उनकी वास्तविकता सामने आ गई है।