संविधान एवं आरक्षण पर मोदी सरकार का षड्यंत्र
मोदी सरकार द्वारा आरक्षण और संविधान के साथ किए जा रहे व्यवस्थित खिलवाड़ पर यह लेख केंद्रित है। संविधान में बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा दिए गए आरक्षण का उद्देश्य वंचित वर्गों को समान अवसर प्रदान करना था, लेकिन सरकार इस अधिकार को कमजोर करने के षड्यंत्र में लगी है। UPSC द्वारा लैटरल एंट्री के माध्यम से 45 उच्च पदों पर नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं रखा गया, जिससे दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्गों के हक को छीना जा रहा है। इस तरह की नीतियों से आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म करने की योजना साफ नजर आती है। चुनाव के दौरान आरक्षण को सुरक्षित रखने का वादा करने वाली सरकार अब शातिर तरीके से संविधान में दिए गए अधिकारों को खत्म कर रही है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि OBC, SC/ST वर्ग के नेता इस षड्यंत्र का हिस्सा बने हुए हैं और मौन सहमति दे रहे हैं। देश के 90% वंचित वर्ग के हक को नजरअंदाज किया जा रहा है, लेकिन अब यह जरूरी है कि दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब वर्ग अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों। यह लड़ाई केवल आरक्षण की नहीं, बल्कि संविधान और सामाजिक न्याय की सुरक्षा की है।

फैसल सुल्तान
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा रचित भारतीय संविधान, देश के वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए समानता, न्याय और अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है। संविधान में दिए गए आरक्षण के माध्यम से समाज के वंचित वर्गों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अवसर दिए जाते हैं ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके। लेकिन वर्तमान मोदी सरकार के शासनकाल में यह स्पष्ट हो रहा है कि आरक्षण की इस मूल भावना के साथ कैसे व्यवस्थित और गहरे स्तर पर खिलवाड़ किया जा रहा है।
लैटरल एंट्री: आरक्षण के अधिकारों पर हमला
हाल ही में UPSC ने संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर की नौकरियों के लिए 45 पदों की घोषणा की है। इस प्रकार की नियुक्तियों को "लैटरल एंट्री" कहा जाता है, जिसके माध्यम से विशेषज्ञों और अनुभवी पेशेवरों को सीधे उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि इन पदों पर आरक्षण का कोई प्रावधान क्यों नहीं है? अगर UPSC पारंपरिक सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से ये 45 पद भरती, तो SC/ST और OBC वर्गों के लिए आरक्षण लागू होता। ऐसे में लगभग 22-23 पद दलित, पिछड़े और आदिवासी उम्मीदवारों के हिस्से में आते।
यह सरकार का सोचा-समझा कदम है, जो आरक्षण के दायरे से बाहर निकलकर वंचित वर्गों के हक को छीनने की एक चाल है। यह दिखाता है कि मोदी सरकार किस प्रकार से व्यवस्थित रूप से संविधान में दिए गए अधिकारों को खत्म करने का प्रयास कर रही है।
आरक्षण समाप्त करने की योजना
मोदी सरकार ने आरक्षण को सीधे तौर पर समाप्त करने की कोई घोषणा नहीं की है, लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार बहुत ही योजनाबद्ध और शातिर तरीके से इसे कमज़ोर कर रही है। यह वही सरकार है जिसने चुनावों के दौरान बड़े जोर-शोर से घोषणा की थी कि वह आरक्षण को किसी भी कीमत पर समाप्त नहीं करेगी। बिहार और अन्य राज्यों में उनके सहयोगी दल और नेता भी इस बात का समर्थन कर रहे थे। लेकिन अब हालात अलग हैं।
इन तथाकथित OBC नेताओं की आंखों के सामने, उनके समर्थन से, और दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब वर्गों के हक पर डाका डाला जा रहा है। और यह सबसे दुखद पहलू है कि जो नेता खुद इन्हीं वर्गों से आते हैं, वे सरकार के इस कदम पर ताली बजा रहे हैं और ठहाके लगा रहे हैं।
वंचित वर्गों का अधिकार: छला जा रहा है
देश की 90% आबादी, जो दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब सामान्य वर्ग से है, का हक़ इस सरकार के तहत छीना जा रहा है। ये वही लोग हैं जिनका अधिकार संविधान द्वारा सुरक्षित किया गया था, लेकिन अब इसे योजनाबद्ध तरीके से नष्ट किया जा रहा है। सरकार न केवल इनके हक़ को मार रही है, बल्कि समाज में एक ऐसा माहौल बना रही है जिससे ये वर्ग धीरे-धीरे मुख्यधारा से दूर होते जा रहे हैं।
इस पूरी प्रक्रिया का एक प्रमुख हिस्सा यह है कि देश के वंचित वर्गों के नेता भी इस साजिश का हिस्सा बन चुके हैं। ये नेता, चाहे SC/ST या OBC वर्गों से हों, आज सत्ता के खेल में इस तरह फंस चुके हैं कि उन्हें अपने समुदाय के हक़ और अधिकारों की चिंता नहीं रही। उनकी भूमिका सिर्फ सत्ता के समर्थन तक सीमित हो गई है, और वे खुली आंखों से अपने वर्ग के साथ हो रहे अन्याय को देख कर भी मौन हैं।
संविधान के मूल्यों का पतन
बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान को केवल कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि एक सामाजिक न्याय का प्रतीक माना था। संविधान का उद्देश्य सिर्फ शासन व्यवस्था स्थापित करना नहीं था, बल्कि एक ऐसा समाज बनाना था जहां सभी को बराबरी का अधिकार मिले, खासकर उन लोगों को जो सदियों से उपेक्षित और वंचित रहे हैं।
मोदी सरकार का मौजूदा रवैया संविधान की उसी भावना के विपरीत जाता दिख रहा है। संविधान के माध्यम से मिले अधिकारों को कमजोर करने के प्रयास किसी भी लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकते हैं। यह न केवल समाज के वंचित वर्गों के प्रति अन्याय है, बल्कि यह संविधान और लोकतंत्र की जड़ों पर भी प्रहार है।
केंद्र की मोदी सरकार बाबा साहेब के लिखे संविधान और आरक्षण के साथ कैसा घिनौना मजाक एवं खिलवाड़ कर रही है, यह विज्ञापन उसकी एक छोटी सी बानगी है।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 17, 2024
???????????????? ने लैटरल एंट्री के ज़रिए सीधे ???????? संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक स्तर की नौकरियां निकाली है लेकिन इनमें आरक्षण का प्रावधान… pic.twitter.com/b2h2R0eiJ7
आरक्षण पर हो रहे हमले: क्या जनता जागेगी?
इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि सरकार एक सुनियोजित तरीके से वंचित वर्गों के अधिकारों को छीन रही है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब सामान्य वर्ग जागरूक होंगे? क्या वे इस षड्यंत्र को समझेंगे और इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे?
सरकार के इन कदमों का उद्देश्य साफ है - वे हिंदू धर्म और जाति आधारित राजनीति के नाम पर लोगों को बांटकर उनके अधिकार छीन रहे हैं। लेकिन यह आवश्यक है कि देश के वंचित वर्ग इस सच्चाई को पहचानें और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हों।
निष्कर्ष: आरक्षण की लड़ाई
देश के संविधान और आरक्षण की यह लड़ाई अब केवल एक सरकारी नीति या योजना तक सीमित नहीं है। यह एक सामाजिक आंदोलन की जरूरत बन चुकी है, जिसमें वंचित वर्गों को अपनी आवाज उठानी होगी। उन्हें यह समझना होगा कि अगर आज वे चुप रहेंगे, तो कल उनके अधिकार पूरी तरह से छिन जाएंगे।
इस पूरे परिदृश्य में यह आवश्यक है कि वंचित वर्ग संविधान और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट हों। उन्हें इस तथ्य को समझना होगा कि जो सरकार आरक्षण और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर कर रही है, वह अंततः लोकतंत्र और संविधान के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती है।
अब समय आ गया है कि देश के दलित, पिछड़े, आदिवासी और गरीब वर्ग जागें और अपने हक की इस लड़ाई को एक नई दिशा दें। उनके संघर्ष को एकजुट होकर लड़ना होगा ताकि संविधान में दिए गए उनके अधिकारों की रक्षा हो सके और समाज में उन्हें समान अवसर और सम्मान मिल सके।