वक्फ बिल पर मो. जावेद का बीजेपी को कड़ा जवाब – विपक्ष ने बताया संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन"
कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने वक्फ (संशोधन) बिल को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बिल के जरिए वक्फ संपत्तियों पर कब्जा कर उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाना चाहती है। संसदीय समिति (JPC) में विपक्षी नेताओं ने इस बिल का कड़ा विरोध किया, लेकिन भाजपा ने बहुमत के आधार पर इसे आगे बढ़ाया। जावेद के अनुसार, यह बिल न केवल असंवैधानिक है, बल्कि समाज में सांप्रदायिक तनाव भी बढ़ा सकता है। उन्होंने सरकार पर अल्पसंख्यकों को हाशिए पर धकेलने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने का आरोप लगाया।

अशोक एवं विशाल
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक को लेकर देशभर में चर्चाएँ तेज़ हो गई हैं। इस विधेयक के पीछे सरकार की मंशा वक़्फ़ की ज़मीन पर क़ब्ज़ा जमाने की है, जिससे "मोदी के मित्रों" को लाभ मिल सके। उन्होंने इस विधेयक को बीजेपी की बहुसंख्यकवादी मानसिकता का प्रतीक बताया है, न कि जनता के वास्तविक बहुमत की राय। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने वक्फ (संशोधन) बिल के खिलाफ अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यह बिल मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन करता है और सरकार को वक्फ की जमीन हड़पने की अनुमति देता है। यह बिल संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) द्वारा पारित किया गया है, लेकिन विपक्षी सदस्यों ने इसके खिलाफ असहमति जताई है जावेद का मानना है कि यह विधेयक मुसलमानों को अपमानित करने और उन्हें किनारे पर धकेलने का प्रयास है।
वक़्फ़ विधेयक पर बढ़ता विवाद
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) द्वारा केंद्र के इस विधेयक पर रिपोर्ट को मंज़ूरी देने के बाद, यह क़ानून बनने के और क़रीब पहुंच गया है। इस समिति के अध्यक्ष, भाजपा सांसद जगदंबिका पाल, जल्द ही अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपने वाले हैं। यह रिपोर्ट 31 जनवरी से शुरू होने वाले बजट सत्र में पारित किए जाने की संभावना है।
JPC की 36 बैठकों में से अधिकांश की अध्यक्षता पाल ने की, लेकिन विपक्ष के 11 सांसदों ने इस रिपोर्ट को तानाशाहीपूर्ण बताते हुए असहमति व्यक्त की है। इन सांसदों में ए. राजा, कल्याण बनर्जी, गौरव गोगोई, असदुद्दीन ओवैसी, सैयद नसीर हुसैन, मोहिबुल्लाह, इमरान मसूद, एमएम अब्दुल्ला, मोहम्मद जावेद, अरविंद सावंत और नदीमुल हक़ शामिल हैं।
विपक्ष का विरोध क्यों?
डॉ. जावेद आज़ाद के अनुसार, जब अगस्त में JPC की चर्चा शुरू हुई थी, तब यह बहुत सकारात्मक रूप से आगे बढ़ रही थी। लेकिन कुछ समय बाद सरकार को यह अहसास हुआ कि जिस दिशा में चर्चा जा रही है, उससे उनकी राजनीतिक योजना पूरी नहीं हो पाएगी।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार का उद्देश्य मुसलमानों को हाशिए पर डालना, वक़्फ़ संपत्तियों पर क़ब्ज़ा करना और बहुसंख्यकवादी एजेंडे को बढ़ावा देना है। उनके अनुसार, समिति की कार्यवाही को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने शीर्ष स्तर से निर्देश दिए, जिसके कारण बातचीत अप्रिय हो गई।
JPC की कार्यवाही पर गंभीर सवाल
डॉ. जावेद का कहना है कि वक़्फ़ संपत्तियों को लेकर झूठे नैरेटिव गढ़े गए हैं। बैठक में ऐसे लोगों को बुलाया गया, जिन्हें वक़्फ़ के बारे में कोई जानकारी नहीं थी या जो वक़्फ़ बोर्डों के विरोधी थे। इसके माध्यम से यह प्रचारित किया गया कि वक़्फ़ एक "भूमि माफिया" है, जबकि वास्तविकता इससे अलग है।
विपक्षी सांसदों ने जब इन ग़लत धारणाओं पर आपत्ति जताई तो उन्हें खारिज कर दिया गया। समिति की अधिकांश बैठकों में सत्तारूढ़ दल के कई सदस्य अनुपस्थित रहते थे, जिससे यह साफ़ था कि निर्णय पहले से तय था।
सरकार की मंशा पर सवाल
सांसद जावेद का कहना है कि बीजेपी इस विधेयक को तीन बड़े राजनीतिक लक्ष्यों के लिए आगे बढ़ा रही है:
- मुसलमानों को अपमानित करना - पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार मुसलमानों को हाशिए पर डालने के कई प्रयास कर चुकी है।
- सामाजिक अशांति भड़काना - अल्पसंख्यकों पर दबाव बढ़ाने से प्रतिक्रिया होगी, जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होगा।
- वक़्फ़ ज़मीन पर क़ब्ज़ा - सरकार उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए वक़्फ़ संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर खतरा
JPC अध्यक्ष जगदंबिका पाल का दावा है कि रिपोर्ट "लोकतांत्रिक प्रक्रिया" से तैयार की गई है और इसमें बहुमत का समर्थन है। लेकिन सांसद जावेद इस दावे को खारिज करते हुए कहते हैं कि इस रिपोर्ट में जनता की राय नहीं, बल्कि बीजेपी की बहुसंख्यकवादी मानसिकता झलकती है। उनके अनुसार, 90% गवाहों ने समिति के समक्ष इस विधेयक का विरोध किया था, फिर भी इसे पारित किया जा रहा है।
संविधान पर खतरा
विधेयक के आलोचकों का कहना है कि यदि सरकार वक़्फ़ में हस्तक्षेप कर सकती है, तो भविष्य में अन्य धार्मिक संपत्तियों और संस्थाओं में भी सरकारी दखल संभव हो सकता है। इस विधेयक के तहत, वक़्फ़ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को भी सदस्य बनाने का प्रावधान है। इस तर्क के आधार पर मुसलमान भी हिंदू मंदिरों के प्रबंधन में प्रतिनिधित्व की मांग कर सकते हैं, जिससे समाज में व्यापक असंतोष उत्पन्न हो सकता है।
निष्कर्ष
डॉ. जावेद आज़ाद (सांसद) ने इस विधेयक को एक "प्रायोजित लोकतांत्रिक प्रक्रिया" का हिस्सा बताया है। उनका मानना है कि मोदी सरकार की रणनीति असहमति की आवाज़ को दबाकर अपने उद्देश्यों को पूरा करना है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यह विधेयक न केवल मुसलमानों के अधिकारों पर हमला है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी संरचना के लिए भी खतरा साबित हो सकता है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बजट सत्र में यह विधेयक किस तरह से आगे बढ़ता है और क्या विपक्ष की आपत्तियाँ इसे रोकने में सफल हो पाती हैं या नहीं।