झारखंड में राजनीतिक भूचाल: हेमंत सोरेन की ऐतिहासिक जीत

झारखंड में हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ऐतिहासिक जीत ने झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस गठबंधन को मजबूती प्रदान की है। सोरेन की रणनीति ने आदिवासी वोट बैंक को संगठित करने और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्र में झामुमो की सफलता ने भाजपा की हार को और गहरा किया। खनन घोटाला, धर्मांतरण और आदिवासी मुद्दों जैसे विवादास्पद विषयों पर सोरेन सरकार के रुख ने जनता के बीच भरोसा बढ़ाया है। 2024 और 2025 के चुनावों के मद्देनजर, यह जीत गठबंधन को नई ऊर्जा देती है। झारखंड की राजनीति में यह ऐतिहासिक पल सत्ता संतुलन और आदिवासी समुदाय की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।

झारखंड में राजनीतिक भूचाल: हेमंत सोरेन की ऐतिहासिक जीत

फैसल सुल्तान

  • झारखंड चुनाव में आदिवासी राजनीति
  • हेमंत सोरेन की रणनीति बनाम बीजेपी
  • संथाल परगना और कोल्हान में जीत के कारण

झारखंड की राजनीति ने एक नया मोड़ ले लिया है। ना नेक्सस काम आया, ना जोड़-तोड़ की राजनीति, ना भ्रष्टाचार का मुद्दा, और ना ही घुसपैठ का सवाल। आदिवासी बहुल इलाकों में हेमंत सोरेन ने अपने बूते ऐसी जीत हासिल की, जो इससे पहले कभी नहीं देखी गई थी। इस जीत ने न केवल झारखंड की सियासत को बदलकर रख दिया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीतियों को भी ध्वस्त कर दिया।

हेमंत सोरेन: आदिवासियों के नए मसीहा

झारखंड में संथाल परगना और कोल्हान के इलाकों में हेमंत सोरेन ने अपनी कड़ी मेहनत और रणनीतिक कौशल से जीत दर्ज की। आदिवासी समाज में उनका सीधा जुड़ाव और उनकी नीतियों ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में उभारा।

बीजेपी की असफल रणनीतियां

बीजेपी ने झारखंड में खनिज संपदा, घुसपैठ, और धर्मांतरण जैसे मुद्दों को उछालने की कोशिश की। केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री स्तर के नेताओं को मैदान में उतारने के बावजूद, उनकी तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। गोड्डा का अडानी पावर प्लांट, खनन घोटाला, और आदिवासी बेटियों के मुद्दे पर भी बीजेपी ने प्रचार किया, लेकिन जनता ने इन्हें सिरे से खारिज कर दिया।

संथाल परगना और कोल्हान: आदिवासियों का गढ़

झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और कांग्रेस के गठजोड़ ने संथाल परगना की 18 में से 15 और कोल्हान की 14 में से 11 सीटों पर कब्जा कर लिया। इन इलाकों में 90 प्रतिशत स्ट्राइक रेट के साथ गठबंधन ने आदिवासी वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली।

चंपई सोरेन और कोल्हान की राजनीति

चंपई सोरेन को कोल्हान का टाइगर माना जाता था। हालांकि, उनकी उम्र और कमजोर पकड़ के कारण वह अपने बेटे को चुनाव जिताने में नाकाम रहे। लेकिन उनकी सीट पर जीत ने यह साबित कर दिया कि आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी का प्रभाव खत्म हो रहा है।

खनिज संपदा और कॉर्पोरेट हस्तक्षेप

झारखंड भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां 55% खनिज संपदा मौजूद है। इस संपदा को साधने के लिए कॉर्पोरेट घरानों और बीजेपी ने बड़े दांव लगाए, लेकिन जनता ने इसे नकार दिया।

जेएमएम की रणनीतिक बढ़त

हेमंत सोरेन की जीत का एक बड़ा कारण उनका आदिवासियों के साथ गहरा जुड़ाव और उनके मुद्दों को समझने की क्षमता थी। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार जैसे मुद्दों पर उनकी नीतियों ने आदिवासियों का भरोसा जीत लिया।

कांग्रेस का योगदान

झारखंड में कांग्रेस ने भी इस गठबंधन को मजबूत किया। 16 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन में सुधार किया और झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन तैयार किया।

बीजेपी के लिए सीख

बीजेपी को झारखंड में अपनी नीतियों और रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। संघ परिवार और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों की सक्रियता के बावजूद, आदिवासी क्षेत्रों में बीजेपी का प्रभाव नहीं बढ़ सका।

निष्कर्ष

हेमंत सोरेन की जीत ने झारखंड की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है। यह जीत सिर्फ चुनावी सफलता नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता और संघर्ष की जीत है। बीजेपी को इस हार से सबक लेकर अपनी रणनीतियों को फिर से तैयार करना होगा।

झारखंड का यह चुनाव यह भी साबित करता है कि जब नेता जनता के मुद्दों को समझते हैं और उनके लिए काम करते हैं, तो जनता उन्हें सिर आंखों पर बिठाती है। हेमंत सोरेन और उनका गठबंधन झारखंड में बदलाव का प्रतीक बन गया है।