पूर्णिया में वोटर लिस्ट से पौने तीन लाख नाम कटे, सीमांचल की सियासत में मचा हड़कंप
बिहार के पूर्णिया जिले में चल रहे मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के तहत लगभग 2.75 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं। पहले कुल 22,68,431 मतदाता थे, जो अब घटकर 19,94,511 रह गए हैं। यह कटौती सीमांचल के लिए राजनीतिक रूप से संवेदनशील मानी जा रही है, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में। इससे विभिन्न राजनीतिक दलों में हड़कंप मच गया है और आगामी विधानसभा चुनावों पर प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है। चुनाव आयोग ने दावा-आपत्ति के लिए 1 सितंबर तक का समय दिया है, लेकिन आधार और वोटर आईडी की अनिवार्यता को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। जिला प्रशासन द्वारा सुधार कैंप लगाए जा रहे हैं, फिर भी नाम कटौती को लेकर जनता और नेताओं में असंतोष और संशय बना हुआ है।

सीमांचल (अशोक/विशाल)
वोटर लिस्ट पुनरीक्षण अभियान के अंतर्गत तैयार किए गए प्रारूप मतदाता सूची के अनुसार पूर्णिया जिले में सर्वाधिक लगभग पौने तीन लाख मतदाताओं के नाम कट गए।
कुल 22 लाख 68 हजार 431 मतदाताओं में प्रारूपी मतदाता सूची के अनुसार , कुल 19 लाख 94 हजार 511 मतदाता ही शेष बचे रह गए हैं।
अर्थात , पूर्णिया जिले भर में 12 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के नाम कट जाने से 2025 के विधानसभा चुनाव में कूदने और भाजपा एन डी ए को शिकस्त देने को आतुर राजनीतिक दलों और उसके नेताओं पर विपरीत असर पड़ने की संभावना जोर शोर से जताई जा रही है।
हालांकि , चुनाव आयोग द्वारा प्रारूप मतदाता सूची में सुधार कराने के लिए 1 सितंबर तक का समय प्रभावित मतदाताओं को दिया गया है।
लेकिन , इस क्रम में देश की सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को दिए गए अहम सुझाव के अनुसार , वोटरों का सत्यापन करने के लिए आधार कार्ड और वोटर आई डी कार्ड को भी महत्व दिया जाएगा कि नहीं , यह खुलासा नहीं हो पा रहा है।
क्षेत्र में इस तरह की नाम कटौती को लेकर भारी सनसनी पैदा हो गई है व कोहराम मचे हुए हैं और नामों की कटौती से प्रभावित हुए मतदाताओं से लेकर राजनीतिक दलों तक में भारी हाहाकार मचना शुरू हो गया है।
हालांकि , पूर्णिया के जिला पदाधिकारी अंशुल कुमार (भा०प्र०से०) ने विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण के तहत प्रकाशित प्रारूप मतदाता सूची के संदर्भ में दावा और आपत्ति दर्ज कराने के लिए आयोजित किए जाने वाले कैंपों में मतदाताओं के आवेदनों का त्रुटि रहित पारदर्शी निष्पादन का निर्देश सभी बी एल ओ व बी एल ओ पर्यवेक्षकों को दिया है।
और , जिला पदाधिकारी के उक्त निर्देश के आलोक में तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना कि तर्ज़ पर मतदाताओं की समस्या के निष्पादन की कार्यवाही भी शुरू कर दी गई है।
लेकिन , यहां पर फिर से वही सवाल खड़ा होता है कि क्या चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सुझाव के अनुरूप सूची के नाम सुधार कैंपों में मतदाताओं के आधार कार्ड और वोटर आई डी कार्ड को तरजीह दी जा रही है अथवा नहीं , और क्या पूर्व से निर्धारित उसी 11 दस्तावेजों वाले बिंदुओं के अनुसार ही कैंपों में मतदाताओं के आवेदनों को निष्पादित या ख़ारिज करने की कार्रवाई की जा रही है ?
इस मामले में राजनीतिक दलों के नेताओं के कांपते हुए होंठों से कोई शब्द तक बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।नंगी आंखों से दल और उसके नेतागण अपनी बर्बादी का खुला तमाशा देख रहे हैं और महसूस कर रहे हैं कि उनके सारे किए कराए पर चुनाव आयोग ने एक झटके में ही घड़ों पानी फिरा दिया और भावी नुकसान की संभावना को बलबती कर दिया।
अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूर्णिया जिले में नाम कटने से प्रभावित हुए मतदाताओं के आंकड़ों के समानांतर में ही सीमांचल के शेष जिले किशनगंज अररिया और कटिहार में भी आंकड़ों की कहानी बनी होगी और आंकड़ों की इस जुबानी से मतदाताओं की परेशानी काफी बढ़ी होगी , इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है।
सीमांचल क्षेत्र बिहार राज्य का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और वोटर लिस्ट से सीमांचल क्षेत्र में सर्वाधिक नाम किस समुदाय के मतदाताओं के कटे हैं। इसका अंदाजा बिहार के इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र सीमांचल को देखते हुए सहज ही लगाया जा सकता है।
सीमांचल वासी जनता अपनी परंपरागत मिजाज़ को दोहराते हुए ही 2020 तक के हरेक चुनावों में एक ही लिक पर वोटिंग करने की होड़ में शामिल रही थी।उस परंपरागत मिजाज़ को अबकी बार के आने वाले अगले विधान सभा चुनाव में सीमांचलवासी किस तरह सफलीभूत करेंगे , या , अबकीबार उस परंपरागत मिजाज़ को सफल नहीं कर पाएंगे , इस बात को लेकर लोगबाग सशंकित हो रहे हैं।
सशंकित इसलिए भी हो रहे हैं कि सीमांचल के पूर्णिया जिले में पूर्व से स्थापित 22 लाख 68 हजार 431 मतदाताओं में से अब सिर्फ 19 लाख 94 हजार 511 मतदाता गण ही प्रारूप के अनुसार शेष बचे रह गए हैं और लगभग पौने तीन लाख मतदाताओं का नाम कट गए हैं।
और , इस कारण संबंधित क्षेत्र की चुनावी राजनीति का हश्र क्या होगा यह आने वाला अगले चुनाव का परिणाम ही बता सकता है।