बिना ट्रायल के 1500 दिन: न्याय और नाइंसाफी के बीच उमर खालिद की कहानी
यह लेख उमर खालिद की कहानी पर केंद्रित है, जो बिना ट्रायल के 1500 दिनों से जेल में हैं। उमर खालिद एक छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिन पर फरवरी 2020 में दिल्ली दंगों की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। उन्हें आतंकवाद-रोधी कानून UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया, लेकिन अब तक उनके मामले में कोई ठोस सबूत या न्यायिक प्रक्रिया नहीं हुई है। लेख इस बात पर सवाल उठाता है कि क्या उनके साथ अन्याय हो रहा है, और इसे राजनीतिक व धार्मिक आधार पर एक पक्षपाती कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। उमर खालिद का केस उन कई मामलों में से एक है, जहाँ बिना मुकदमे के लंबे समय तक कैद में रखने के आरोप सरकार और न्यायपालिका पर लगते हैं। लेख में न्याय और मानवाधिकारों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाए गए हैं। उमर के मामले को भारत के कानूनी तंत्र और अल्पसंख्यकों के प्रति रवैये का प्रतीक मानते हुए लेख में त्वरित न्यायिक प्रक्रिया और निष्पक्ष सुनवाई की मांग की गई है।
फैसल सुल्तान
उमर खालिद की जेल में बंदी का ये लंबा सफर न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली बल्कि व्यापक सामाजिक ताने-बाने पर भी सवाल खड़ा करता है। उनके माता-पिता की उम्मीदों और एक बेटे की अपने परिवार से मुलाकात की प्रत्याशा में, उनके जीवन के कठिन पक्ष की झलक मिलती है। लगभग चार वर्षों से कैदी नंबर 626, उमर खालिद को न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति के कारण जेल में दिन बिताने पड़े हैं, जबकि उनके खिलाफ कोई औपचारिक ट्रायल नहीं हुआ। मुख्यधारा की भारतीय मीडिया में उमर खालिद के मामले को लेकर ख़ास चर्चा नहीं होती, परंतु अंतरराष्ट्रीय मीडिया, विशेष रूप से न्यूयॉर्क टाइम्स, ने उनकी स्थिति को उजागर किया है। अमेरिकी अखबार ने उनकी गिरफ्तारी के चार साल बाद एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें उनके परिवार की व्यथा और भारतीय न्याय प्रणाली के प्रति लोगों का दृष्टिकोण भी शामिल है।
Translation:#TheNewYorkTimes published a report on #DrOmarKhalid, has been imprisoned over 1500 days. The newspaper highlights that "Modi's New India" is like this. It’s worth noting that Umar Khalid has been in jail for more than four years without trial. pic.twitter.com/vDgG8jKJyr
— Faisal Sultan (@faisalsultan) October 28, 2024
उमर खालिद की गिरफ्तारी: उमर खालिद को दिल्ली दंगे की साजिश रचने के आरोप में 14 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था। यह दंगे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए थे। सरकार का दावा है कि उमर ने लोगों को हिंसा के लिए उकसाया, जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि उमर का उद्देश्य केवल संविधान की रक्षा और शांति बनाए रखना था। उमर के एक भाषण, जिसमें उन्होंने तिरंगा लेकर संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी, को उनके खिलाफ एक साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया गया।
भारतीय न्याय व्यवस्था और मुस्लिम आरोपी, दोहरे मानदंड : न्याय व्यवस्था में दोहरे मानदंड का सवाल तब उठता है जब एक तरफ उमर खालिद बिना किसी ट्रायल के सालों से जेल में हैं, जबकि दूसरी ओर एक सजायाफ्ता अपराधी जैसे कि गुरमीत राम रहीम, जो बलात्कार का दोषी सिद्ध हो चुका है, बार-बार पैरोल पर बाहर आता रहता है। भारतीय मीडिया में उमर के मुद्दे पर चुप्पी, जबकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसे उछाला जा रहा है, इस असमानता को और उजागर करता है। राम रहीम को कई बार विभिन्न चुनावों के दौरान जेल से बाहर आने की अनुमति दी गई है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या न्यायिक व्यवस्था धर्म और सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव करती है?
अदालत में उमर खालिद की लड़ाई बेल नहीं, जेल ही रूल: जब सुप्रीम कोर्ट कहता है कि "बेल इज द रूल एंड जेल इज द एक्सेप्शन," तो उमर का मामला इस सिद्धांत के खिलाफ खड़ा दिखाई देता है। उनकी जमानत याचिकाएं बार-बार खारिज होती रहीं, और सुप्रीम कोर्ट ने 14 बार उनकी सुनवाई स्थगित की। उमर के पिता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी जमानत की सुनवाई को कई बार टाला गया। जमानत न मिलना और लंबे समय तक जेल में बने रहना एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर सवाल खड़े करता है।
जेल में उमर खालिद, एक परिवार की पीड़ा : हर हफ्ते उमर की वर्चुअल मुलाकात परिवार के साथ होती है, जहां उनके माता-पिता और अन्य सदस्य उनसे बातचीत करते हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट में उमर की मां ने बताया कि आखिरी बार उन्होंने अपने बेटे को अंतिम सुनवाई में जज के विशेष आदेश पर चंद मिनटों के लिए छुआ था। परिवार उमर के साथ बिताए हर पल को संजोने की कोशिश करता है, लेकिन इस डिजिटल मुलाकात में भी वह अपने बेटे की आवाज सुनकर ही संतुष्ट हो पाते हैं।
क्या है यूएपीए और इसका उमर खालिद पर प्रभाव : किसी भी व्यक्ति पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) लगाने का मतलब है कि उसे बिना जमानत के लंबे समय तक जेल में रखा जा सकता है। सरकार ने 2015 से लेकर 2020 तक इस कानून के तहत कई गिरफ्तारियां कीं, जिनमें से केवल तीन प्रतिशत मामलों में ही दोष सिद्ध हो पाया। इस कानून का दुरुपयोग का आरोप सरकार पर कई बार लग चुका है, खासकर राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए। उमर खालिद भी इसी कानून का शिकार माने जाते हैं।
1500 दिन जेल में, एक छात्र की जिंदगी पर प्रभाव : उमर खालिद की साथी, जोसना लाहरी, कहती हैं कि 1500 दिनों में एक छात्र अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर सकता है, नौकरी में अनुभव हासिल कर सकता है, यहां तक कि एक वैज्ञानिक भी कई शोध कर सकता है। लेकिन उमर जैसे लोग इस समय को सलाखों के पीछे बिना किसी ट्रायल के बिताने पर मजबूर हैं। यह सिर्फ उमर के साथ हुई नाइंसाफी नहीं, बल्कि उन सभी छात्रों के लिए एक चेतावनी है, जो समाज में बदलाव की आवाज उठाने का साहस रखते हैं।
उमर और राम रहीम, न्याय का दोहरा चेहरा : एक तरफ उमर खालिद हैं, जिन्हें जमानत तक नहीं मिल पाई, और दूसरी ओर राम रहीम जैसे दोषी, जो बार-बार पैरोल पर बाहर आते हैं। इस तुलना से यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय कानून सभी के लिए एक समान है? क्या धर्म, जाति और राजनीतिक प्रभाव न्याय की दिशा तय करते हैं? 2017 में राम रहीम को 20 साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्हें बार-बार विभिन्न चुनावों के दौरान पैरोल मिलती रही है। इसके विपरीत उमर खालिद के लिए जेल ही एकमात्र ठिकाना बन चुका है।
क्या उमर खालिद का अपराध उनकी आवाज है? उमर खालिद की गिरफ्तारी और उनकी जेल यात्रा एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करती है: क्या उमर का अपराध सिर्फ इतना है कि वह एक मुस्लिम आवाज़ है जो सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़ी हुई? क्या मुस्लिम नेताओं के लिए न्याय और कानून अलग हैं? यह सवाल अब केवल उमर के व्यक्तिगत संघर्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि उन सभी नागरिकों के लिए चिंताजनक है जो संवैधानिक अधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर हैं।
निष्कर्ष: उमर खालिद और न्याय की लड़ाई : उमर खालिद के मामले ने भारतीय न्यायिक व्यवस्था के दोहरे मानदंडों को उजागर किया है। उनकी गिरफ्तारी, लंबे समय तक जेल में रहना, और बिना ट्रायल के उनकी रिहाई की कोई संभावना न होना, एक गंभीर मुद्दा है। यह भारतीय समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करता है: क्या हमारा कानून सभी के लिए एक समान है? उमर की लड़ाई न केवल एक व्यक्ति की रिहाई के लिए है, बल्कि यह सभी नागरिकों के लिए न्याय और समानता की लड़ाई है। उमर खालिद का संघर्ष केवल उनकी व्यक्तिगत नहीं, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति की संघर्ष की कहानी है, जो धर्म और जाति के आधार पर न्याय से वंचित है।