सीमांचल में नीतीश की हार, भाजपा ने अररिया सीट बरकरार रखी, पूर्णिया की जिम्मेदारी पप्पू यादव को

सीमांचल में भाजपा ने अपनी पुरानी सीट अररिया को कायम रखा, जबकि नीतीश कुमार की जदयू का सफाया हो गया। वर्षों बाद पूर्णिया की जिम्मेदारी निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव को मिली, जिन्होंने चुनाव जीता। इस बार किशनगंज और कटिहार भी कांग्रेस की झोली में आ गए। बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध सीमांचल के पूर्णिया प्रमंडल की चार में से तीन संसदीय क्षेत्रों ने इस बार के चुनाव में एनडीए गठबंधन में शामिल नीतीश कुमार की जदयू को पूरी तरह से नकारते हुए सिर्फ भाजपा की एक सीट को बनाए रखा है।

सीमांचल में नीतीश की हार, भाजपा ने अररिया सीट बरकरार रखी, पूर्णिया की जिम्मेदारी पप्पू यादव को

सीमांचल (विशाल/पिंटू)

बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में शुमार सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल की चार में से तीन संसदीय क्षेत्रों ने इस बार के संसदीय चुनाव में डंके की चोट पर एनडीए गठबंधन में शामिल नीतीश कुमार की जदयू को सिरे से नकारते हुए पूर्व से बरकरार भाजपा की महज एक सीट को बरकरार रखा है।

सीमांचल के मुख्यालय पूर्णिया की संसदीय सीट पर बिहार की सत्तारूढ़ जदयू के सिटिंग सांसद संतोष कुमार कुशवाहा को हराकर चर्चित निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव ने अपनी जीत पूर्णिया से दर्ज कर ली है तो दूसरी ओर कांग्रेस के तारिक अनवर ने भी कटिहार के सिटिंग जदयू सांसद दुलाल चंद गोस्वामी को हराकर अपनी जीत हासिल कर ली है। जबकि पिछले दो बार की भांति इस बार की तीसरी जीत को भी किशनगंज की संसदीय सीट से हांसिल कर कांग्रेस के इकलौते सिटिंग  सांसद डॉ जावेद आजाद ने इस बार हैट्रिक लगाने में कामयाबी हासिल कर ली है। जबकि , इसके विपरित अररिया संसदीय क्षेत्र की सीट पर राजद के पूर्व मंत्री सह वर्तमान जोकीहाट विधायक शाहनवाज को हराकर भाजपा के सिटिंग सांसद प्रदीप सिंह ने लगातार दूसरी जीत हासिल कर सीमांचल में एनडीए की प्रतिष्ठा बचा ली है।

बिहार में कुल चार लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों वाले सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल को मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में प्रचारित कर खबरिया महकमा ने चुनावी  राजनीति के क्षेत्र में जिस तरह से सीमांचल को एनडीए भाजपा विरोधी करार दिया था उस पर यह सीमांचल इस बार खड़ा उतर गया है।

वर्ष 2014 में भाजपा की आंधी के साथ नरेन्द्र मोदी का जब संसदीय चुनाव में प्रादुर्भाव हुआ था तो भाजपा ने सीमांचल की कटिहार संसदीय सीट को जीतते हुए अपने गठबंधन सहयोगी जदयू को भी पूर्णिया की संसदीय सीट से जीता लिया था।

लेकिन, तब उसी 2014 के संसदीय चुनाव में अररिया की संसदीय सीट को राजद के तस्लीमुद्दीन (अब स्वर्गीय) ने तथा किशनगंज की संसदीय सीट को कांग्रेस के डा० जावेद आजाद ने जीत लिया था।

उसके बाद अररिया के तत्कालीन राजद सांसद तस्लीमुद्दीन के अचानक  2017 में स्वर्गवास हो जाने के कारण अररिया में कराये गए संसदीय उप चुनाव में स्वर्गीय तस्लीमुद्दीन साहब के बड़े बेटे सरफराज आलम सिम्पैथी वोटों की बदौलत राजद की टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे।

लेकिन ,  2019 के संसदीय आम चुनाव में सरफराज को पटकनी देकर भाजपा के प्रदीप सिंह सांसद निर्वाचित हो गए थे।

जिनकी शिकस्ती तय कराने के लिए इस बार राजद ने अररिया की संसदीय सीट पर स्वर्गीय तस्लीमुद्दीन साहब के छोटे पुत्र सह जोकीहाट के सिटिंग राजद विधायक सह पूर्व मंत्री शाहनवाज आलम को टिकट देकर उतार दिया लेकिन कामयाबी नहीं मिली और कम वोटों के अंतर से ही सही भाजपा के सिटिंग सांसद प्रदीप सिंह फिर से अररिया में बतौर भाजपा सांसद स्थापित हो गए और स्वर्गीय सीमांचल गांधी जनाब तस्लीमुद्दीन साहब के छोटे पुत्र शाहनवाज आलम पराजय का शिकार हो गए।

कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि बिहार भर में जिन दो मात्र मुस्लिम प्रत्याशी को राजद ने उतारा था उन दोनों की हो गई हार से आने वाले समय में राजद की राजनीति कष्टदायक प्रतीत होती है।

जबकि दूसरी ओर , जिन दो मुस्लिम प्रत्याशी मात्र को ही कांग्रेस ने इसी सीमांचल की किशनगंज और कटिहार की संसदीय क्षेत्रों से उतारा था वे दोनों के दोनों चुनाव की बाजी जीत गए हैं।

पूर्णिया की संसदीय सीट से निर्दलीय प्रत्याशी राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने विगत दस साल से काबिज़ जदयू के सिटिंग सांसद संतोष कुशवाहा को हराकर जीत का ताज अपने सिर पर पहन लिया तो कटिहार की संसदीय सीट पर पूर्व से काबिज़ जदयू सांसद दुलाल चंद गोस्वामी को हराकर कांग्रेस के तारिक अनवर ने जीत का ताज झटक लिया है।

1990 में कोशी क्षेत्र के मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर स्थान विधान सभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक निर्वाचित होकर अपनी राजनीतिक कैरियर की शुरूआत करने वाले तत्कालीन चर्चित युवा बाहुबली राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव वर्ष 1991 के लोक सभा चुनाव में पूर्णिया की लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से अपनी उम्मीदवारी प्रदान किए थे लेकिन तब चुनाव आयोग ने उक्त चुनाव को रद्द कर दिया था।जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी और कई वर्षों के बाद हाई कोर्ट से 1995 में पुनर्मतदान का आदेश जारी किया गया था लेकिन तब तक काफी समय बीत गया था और तब एक साल से भी कम दिनों के लिए पूर्णिया लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से पप्पू यादव निर्दलीय सांसद के रूप में स्थापित रह पाए थे।

तब के जमाने में लालू प्रसाद यादव के खासमखास के रूप में चर्चित रहे पप्पू यादव न सिर्फ वर्ष 1991 से लोक सभा में पहली इंट्री लिए थे वल्कि उसके बाद से वर्ष 1996 में दूसरी बार लोक सभा चुनाव जीते थे और फिर 1998 का चुनाव हारने के बाद फिर वर्ष 1999 का लोक सभा चुनाव पूर्णिया से जीते।

उसके अलावा राजद की टिकट पर ही पप्पू यादव वर्ष 2004 से वर्ष 2014 तक का लोक सभा चुनाव कोशी क्षेत्र के मधेपुरा संसदीय क्षेत्र से लगातार जीतते रहे।

लेकिन , उसके बाद से पप्पू यादव का लालू यादव से भयंकर मनमुटाव उत्पन्न हो गया था तो पप्पू यादव ने राजद से नाता तोड़ कर 2015 में अपनी निजी पार्टी जाप (जन अधिकार पार्टी लोकतांत्रिक) स्थापित कर लिया था और तबसे अपनी ही उक्त पार्टी के बैनर तले अपनी राजनीतिक गतिविधियां संचालित करते रहे।

तीन बार पूर्णिया से और दो बार मधेपुरा से यानि पूर्व में पांच बार सांसद रहे पप्पू यादव इस बार 2024 का संसदीय चुनाव पूर्णिया से ही फिर से निर्दलीय जीत कर छठी बार सांसद के रूप में स्थापित हुए हैं।

 

पूर्णिया संसदीय क्षेत्र से इस बार की चुनावी युद्ध में पप्पू यादव की राह में ढ़ेरों अड़चनें प्रशासन और सरकार की ओर से खड़ी की गई थी और दूसरी ओर नामी गिरामी राजनीतिक दलों यथा राजद से कांग्रेस तक ने इन्हें चुनावी टिकट देने का न्यौता दे दे कर बुलाया और टिकट नहीं दिया तो वैसी स्थिति में भी पप्पू यादव ने अपना हौंसला नहीं गंवाया और जनता की सहमति से निजी माय समीकरण को जागृत कर चुनाव के मैदान में कैंची छाप से निर्दलीय ही कूद पड़े और अंततः जीत भी हांसिल कर लिए।

 

चर्चा है कि इस बार पप्पू यादव के समर्थन में उतरी मुस्लिम यादव आदिवासी दलित समुदाय के साथ साथ सवर्ण जातियों की भी हुई गोलबंदी को देखकर पूर्णिया संसदीय क्षेत्र के पप्पू यादव विरोधी भू माफियाओं , कालाबाजारी व्यवसायियों और डॉक्टरों व नर्सिंग होम संचालकों ने पूरी शिद्दत से एक जूट होकर पप्पू यादव की शिकस्ती के लिए अभियानों का आगाज किया था और दूसरी ओर से बिहार सरकार से लेकर केन्द्र सरकार तक के मंत्रियों , सांसदों , विधायकों की फ़ौज ने पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में जगह जगह कैंपिंग की ।

लेकिन , सारे चक्रव्यूहों को तोड़कर अपनी जीत की मंजिल तय करने में पप्पू यादव पूर्णिया की सीट से सफल हो गए। 

ऐसी उपलब्धि का कारण यह बताया जाता है कि पप्पू यादव चुनावी अभियान की शुरूआत से लेकर जीतने की घड़ी तक न खाने पीने और सोने की चिंता किए थे और न अपने विरोधियों को कोई भी साजिशें रचने का मौका दिए थे। 

इस लेकर दिन से रात तक की अनवरत जागरण को देखकर इनके शुभेक्षु से लेकर कार्यकर्ता तक हर दिन अचंभित रहा करते थे लेकिन उस स्थिति में भी पप्पू यादव अपनी जीत के प्रति पूरी तरह से इस बार आश्वस्त थे।

तभी पप्पू यादव ने मतगणना से एक दिन पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार से प्रशासन तक को चेताया था कि मतगणना में नाममात्र की भी कोई लापरवाही या साजिश को वह और उनके लिए मर मिटने को तैयार रहने वाले कार्यकर्ता बर्दाश्त नहीं करेंगे।

चर्चा पर विश्वास करें तो पप्पू यादव की उक्त चेतावनी का गंभीर असर पड़ा था और सरकार की कोई भी चालबाजी नहीं चल सकी।

यहां पर यह भी बता देना श्रेयस्कर होगा कि पूर्णिया संसदीय क्षेत्र के सभी छह विधान सभा क्षेत्रों में से महज दो विधान सभा क्षेत्रों रूपौली और धमदाहा को छोड़कर शेष चारो विधान सभा क्षेत्रों पूर्णिया , बनमनखी , कसबा ,और कोढ़ा में मतगणना की शुरूआती दौर से लेकर अंतिम दौर तक की लीडिंग पप्पू यादव की ही रही थी जबकि सिर्फ रूपौली और धमदाहा में जदयू के प्रत्याशी संतोष ने बढ़त हासिल कर रखी थी। जिसके परिणामस्वरूप ही पप्पू यादव ने जीत का सर्टिफिकेट पूर्णिया डीएम सह जिला निर्वाचन अधिकारी के हाथों हासिल किया।