हजारों भारतीय कामगारों को इजराइल ने किया रिजेक्ट, विफल कौशल विकास ने देश की प्रतिष्ठा को किया प्रभावित

2023 में इज़राइल द्वारा हजारों भारतीय कुशल मजदूरों को काम के लिए अयोग्य करार देने की घटना ने भारत की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचाया। जब इज़राइल ने हमास के हमले के बाद निर्माण कार्यों के लिए विदेशी मजदूरों की आवश्यकता जताई, भारत ने बड़ी संख्या में कुशल श्रमिक भेजे। इनमें से अधिकांश को नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC) के माध्यम से प्रशिक्षित और प्रमाणित किया गया था। हालांकि, इज़राइल पहुंचने के बाद, बड़ी संख्या में मजदूरों को उनके कार्यों के लिए अयोग्य मानते हुए आम श्रम कार्यों में लगा दिया गया। इस घटना ने न केवल भारतीय मजदूरों की छवि को प्रभावित किया, बल्कि भारत के कौशल विकास कार्यक्रमों पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। इज़राइल ने अब चीन, उज्बेकिस्तान और मोल्दोवा जैसे देशों से कुशल श्रमिकों को लाने का निर्णय लिया है, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय श्रमिक बाजार में साख पर संकट आ गया है।

हजारों भारतीय कामगारों को इजराइल ने किया रिजेक्ट, विफल कौशल विकास ने देश की प्रतिष्ठा को किया प्रभावित

फैसल सुल्तान

भारत के अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक विवाद, सरकार की भूमिका, और भ्रष्टाचार के कारण देश की साख पर पड़े असर एवं इज़राइल में भारतीय श्रमिकों से जुड़ी घटना को ध्यान में रखते हुए, देश की कारीगर व्यवस्था, भ्रष्टाचार, और सरकार की लापरवाही पर गहन विश्लेषण ।

भूमिका:

भारत एक ऐसा देश है जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में श्रमिकों और कुशल कारीगरों का निर्यात करता आ रहा है। खासकर जब इज़राइल जैसे देशों में निर्माण कार्य के लिए श्रमिकों की मांग बढ़ी, तो भारत ने एक मौके के रूप में इसे देखना चाहिए था। लेकिन कुछ ग़लतफहमियाँ और असफलताएँ, भारत की साख को धक्का पहुँचा रही हैं। अक्टूबर 2023 में इज़राइल और हमास के बीच तनाव के बाद, निर्माण कार्य में कमी आई और भारत से श्रमिकों की आपूर्ति बढ़ाने का अवसर मिला। इसी संदर्भ में भारतीय श्रमिक इज़राइल पहुंचे, लेकिन मामला उलझा हुआ साबित हुआ।

इज़राइल में भारतीय श्रमिक विवाद:

जब इज़राइल की कंस्ट्रक्शन साइट्स पर भारतीय श्रमिकों की जरूरत महसूस हुई, तब भारत ने स्किल्ड और अनस्किल्ड श्रमिकों को भेजने का वादा किया। इसके लिए दो प्रमुख व्यवस्थाएँ बनाई गईं: एक सरकार-से-सरकार (G2G) व्यवस्था और दूसरी बिजनेस-से-बिजनेस (B2B) व्यवस्था। नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC) ने सरकारी श्रमिकों को सुपरवाइज़ किया, जबकि निजी एजेंसियों ने अन्य श्रमिकों की भर्ती की। शुरू में, लगभग 55,000 श्रमिक इज़राइल गए थे, जबकि कुल 100,000 श्रमिकों की आवश्यकता थी।

वेतन और आर्थिक आकर्षण:

भारत में जहां प्रति व्यक्ति आय लगभग 2,73,000 रुपये है, वहीं इज़राइल में यह आंकड़ा लगभग 45,000 अमेरिकी डॉलर (36-37 लाख रुपये) है। इसी वजह से भारतीय श्रमिकों के लिए इज़राइल में काम करना अत्यधिक आकर्षक था। इज़राइल में मजदूरी संरचना भी भारत के मुकाबले बेहद आकर्षक थी, जहां कटौती के बाद भी श्रमिकों को लगभग 90,000 रुपये प्रति माह मिल रहे थे। मनरेगा जैसी योजनाओं में मजदूरी का स्तर कहीं कम था, जहां एक व्यक्ति को साल में औसतन 40,000 से 50,000 रुपये मिलते हैं। इस वेतन अंतर के कारण भारतीय श्रमिकों ने किसी भी तरह इज़राइल जाने की कोशिश की।

कुशल श्रमिकों की कमी:

हालांकि, समस्या तब उत्पन्न हुई जब इज़राइल में भारतीय श्रमिकों को उनके कौशल के अनुरूप नहीं पाया गया। विशेष रूप से G2G व्यवस्था से गए कई श्रमिकों को यह कहते हुए वापस भेज दिया गया कि वे काम के लिए योग्य नहीं हैं। जबकि NSDC ने इन श्रमिकों को प्रमाणित किया था, इज़राइल की साइट्स पर उन्हें स्किल्ड लेबर के बजाय सामान्य श्रमिकों के रूप में तैनात किया गया। न केवल भारत की श्रमिक छवि को इससे धक्का पहुँचा, बल्कि इज़राइल ने भी अपने श्रमिक स्रोतों को बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

भ्रष्टाचार और असफलताएँ:

इस पूरे प्रकरण से एक महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आया—भारत में कौशल विकास और श्रमिक चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार। NSDC, जो कि स्किल्ड लेबर तैयार करने के लिए जिम्मेदार है, अपनी भूमिका में विफल साबित हुआ। सरकार और NSDC के बीच की मिलीभगत ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है। निजी एजेंसियों से गए श्रमिकों को भी इस समस्या के कारण नुकसान हुआ, क्योंकि इज़राइल सरकार ने सभी भारतीय श्रमिकों को समान दृष्टिकोण से देखा और बी2बी व्यवस्था के श्रमिकों पर भी संदेह किया।

श्रमिक चयन प्रक्रिया की कमी:

भारत में मजदूरों और कारीगरों का चयन कैसे किया जाता है, इस पर एक नज़र डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें सुधार की जरूरत है। NSDC द्वारा जिस तरह से श्रमिकों का सर्टिफिकेशन किया गया, वह न केवल सवालों के घेरे में आया है, बल्कि इस पर जांच की भी मांग की जा रही है। भारत के पास बेहतरीन कारीगर हैं, लेकिन उनकी योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है। इससे न केवल श्रमिकों की छवि को नुकसान हो रहा है, बल्कि देश की साख पर भी असर पड़ रहा है।

इज़राइल की प्रतिक्रिया:

इज़राइल की कंपनियों ने अब यह तय कर लिया है कि वे भारतीय श्रमिकों की बजाय चीन, उज्बेकिस्तान और मोल्दोवा जैसे देशों से श्रमिक लाएँगी। इज़राइल की कंपनियों ने पाया कि भारतीय श्रमिक उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं, जिससे भारत की श्रमिक आपूर्ति प्रणाली पर सवाल खड़े हो गए हैं। भारतीय श्रमिकों की छवि अब खराब हो चुकी है और इसका असर अन्य देशों के साथ भी हो सकता है।

निष्कर्ष:

यह प्रकरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारत में कौशल विकास प्रणाली को सुधारने की सख्त जरूरत है। जब तक सरकार और संबंधित एजेंसियाँ श्रमिकों के चयन और उनके प्रशिक्षण में सुधार नहीं करतीं, तब तक देश की साख पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नकारात्मक असर पड़ता रहेगा। भारत के पास विश्व स्तरीय कारीगर और श्रमिक हैं, लेकिन उनके कौशल को सही तरीके से पहचानने और उन्हें सही अवसर प्रदान करने की जरूरत है। इज़राइल में भारतीय श्रमिकों के विवाद से लेकर भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार और कौशल विकास की असफलताओं को विस्तृत रूप से समझा जा सकता है।