सीमांचल के नायक अकेले दम पर ऊंची उड़ान भरने वाले डॉ. दिलीप जायसवाल की बढ़ती लोकप्रियता
सीमांचल के उभरते नेता डॉ. दिलीप जायसवाल की राजनीति में मजबूती और उनके बढ़ते कद का वर्णन है। सिमांचल के गाँधी कहलाने वाले मरहूम तस्लीमुद्दीन साहब के निधन के बाद, सीमांचल एक नए नेतृत्व की तलाश में था। इस दौरान, कई राजनीतिक दलों ने नए नेताओं को उभरने से रोकने के लिए आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू कर दी। डॉ. जायसवाल ने मानवता और सेवा को अपनी राजनीति का आधार बनाकर जनता के बीच खास पहचान बनाई। उन्होंने लगातार तीन बार विधान पार्षद का चुनाव जीतकर अपनी पकड़ मजबूत की। उनके प्रति जनता का अपार समर्थन दिखा, और सीमांचल में "दिलीप जायसवाल जिंदाबाद" के नारे गूंजने लगे। उनके खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाने वाले विरोधियों की राजनीति विफल हो गई। लेख का सार यह है कि अकेले दम पर राजनीति में सफलता पाने वाले डॉ. दिलीप जायसवाल को चुनौती देना किसी के लिए आसान नहीं होगा।
सीमांचल (अशोक/विशाल)
- अकेला दम पर राजनीति में ऊंची उड़ान भरने वाले सीमांचल के लाल डॉ दिलीप जायसवाल को डिगा पाना टेढ़ी खीर
- इंसानियत और मानवता सेवा के बूते जनता की दुआएं अनवरत जायसवाल के साथ
स्वर्गीय सीमांचल गांधी जनाब तस्लीमुद्दीन साहब के गुजर जाने के बाद से ही सीमांचल वासियों को उनकी तरह के एक अदद दूसरे नेता की कमी अनवरत सताती आ रही है।
गाहे ब गाहे किसी नेता की पैदाइश अगर इस सीमांचल में हो जाती है तो सारे दल के नेता गण मिलजुल कर उस नेता के सर्व प्रिय बनने में बाधाएं उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं और इस क्रम में नेता पर फिट अन फिट किसी भी तरह के आरोप लगाकर उक्त नेता के हौंसले को चकनाचूड़ करने के प्रयास में लग जाते हैं। कमोवेश कहा जा सकता है कि इस सीमांचल में इन दिनों बहुत कुछ ऐसा ही प्रयास देखा जा रहा है।
स्वर्गीय तस्लीमुद्दीन साहब के जमाने में उनके संरक्षण में इस सीमांचल को बांग्लादेशी घुसपैठियों की शरणस्थली बनाने का खुला आरोप पटना से दिल्ली की उच्च सदन तक में उछाला गया था।
हवा जब इस सीमांचल में एमआईएम की गर्म हुई तो आरोप उछाले जाने लगे कि उक्त पार्टी बीजेपी की बी टीम है। इसके व्यक्तिगत अपने कोई अस्तित्व नहीं हैं।
कांग्रेस को देश की प्राचीन भ्रष्ट पार्टी और राजद को जंगल राज का द्योतक बता बता कर इन दलों के नेताओं की स्थापना में सुनियोजित तरीके से बाधक बनने के लिए किए गए जोरदार प्रयासों को भुला नहीं जा सकता है।
और ले देकर एक बीजेपी बचती है तो उसके भी सीमांचल स्थित नेता की टांग खींचने में लग गए राजनीतिक क्षेत्र के लोग ने कोई आधार नहीं मिलने पर एक बे सिर पैर का आरोप सीमांचल के उस तेजी से उभरते हुए नेता पर थोप दिया जो नेता भारत की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी के बिहार प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष पद पर सुशोभित होकर सीमांचल का सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिए हैं।
कभी पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश के मुख्य द्वार चिकन नेक के नाम से काफी चर्चित रहे बांग्लादेश , नेपाल और पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित पूर्णिया प्रमंडल में जब 90 के दसक के दौरान सीमांचल की राजनीति के खेवनहार के रूप में स्वर्गवासी पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जनाब तस्लीमुद्दीन साहब के एकक्षत्र राजनीतिक वर्चस्व कायम हुए थे तो यह क्षेत्र सीमांचल के नाम से मशहूर होना शुरू हो गया था और तस्लीमुद्दीन साहब सीमांचल गांधी के नाम से ख्यात हो गए थे।
कालांतर में उनके स्वर्गवास के बाद जब यहां पर अपनी एमआईएम की राजनीति का आगाज करने हैदराबादी सांसद असदुद्दीन ओवैसी की धमक हुई तो उन्होंने इस क्षेत्र के सीमांचल नामकरण पर अपनी पार्टी की ओर से भी एमआईएम की मुहर लगाई और इसका श्रेय अपने सिर लिया और उनकी पार्टी के 5 विधायकों के निर्वाचित होते ही एमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष सह विधायक को सीमांचल की शान अख्तरूल ईमान से संबोधित किया जाने लगा।
लेकिन , इस क्रम में जब उनकी जीती हुई 5 सीटों में से 4 सीटें लालू के लाल और राजद के स्वयंभू आलाकमान तेजस्वी यादव ने झटक लिया तो एमआईएम की टीम मूर्छित हो गई और गतिविधियां मंद पड़ गईं।
उधर , सीमांचल के तीन जिले अररिया किशनगंज और पूर्णिया की स्थानीय निकाय प्राधिकार की विधान परिषद सीट से विधान पार्षद निर्वाचित होते रहने वाले डॉ दिलीप जायसवाल ने मानवता की सेवा का नारा लगाते हुए जब अपनी तीसरी जीत की हैट्रिक बना ली तो मानवता के सेवक दिलीप जायसवाल के सामने न तो अतीत के सीमांचल गांधी के खिताब इस क्षेत्र के लोगों की जेहन में टिक सके और न स्मरणीय रह पाये सीमांचल की शान अख्तरूल ईमान।
हर तरफ एक ही शोर मानवता के सेवक जिंदाबाद के नारे बुलंद होते दीखने लगे। सीमांचल के लाल दिलीप जायसवाल के नारे संपूर्ण सीमांचल में गूंजने लगे। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इस क्षेत्र में एकमात्र सीमांचल के लाल दिलीप जायसवाल के अलावा कोई अन्य लाल सीमांचल के सर्वमान्य नेता के रूप में बचे ही नहीं।
जिस कारण इस क्षेत्र में अपनी अपनी राजनीति की दुकानदारी को कामयाब बनाने में अक्षम साबित हो रहे विभिन्न राजनीतिक दलों के नेतागण इस क्षेत्र में बे सिर पैर की अनाप शनाप राजनीति पर उतारू होना शुरू हो गए। लिक से हटकर आरोप प्रत्यारोप की राजनीति पर उतारू होने लगे।
दिलीप जायसवाल सरीखे उभरते हुए प्रत्येक दलों और हर दिल अजीज नेता की भी बखिया बे सिर पैर के आरोप के जरिए उधेड़ने में जुट गए।
कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सीमांचल में हरेक जाति धर्म और समुदाय के लोगों के बीच जारी दिलीप जायसवाल जिंदाबाद के नारों के बीच सीमांचल में पनपी इस तरह की नई राजनीति की नई परंपरा के अंतर्गत विपक्षी नेताओं के द्वारा इस मद में पहले इस्तेमाल करो , फिर , बरबाद करो , की नीति पर अमल करना शुरू कर दिया गया है।
जिसे लेकर आम आवाम में चर्चा शुरू हो गई है कि एक अकेले अपनी दम पर राजनीति में ऊंची उड़ान भरने वाले सीमांचल के सर्व प्रिय नेता डॉ दिलीप जायसवाल का कुछ भी बाल बांका होने वाला नहीं है।



