फिलिस्तीन: एकमात्र समाधान का रास्ता एक-राज्य की सथापना

इस लेख में फिलिस्तीन और इसराइल के बीच संघर्ष का समाधान खोजने पर जोर दिया गया है। यह स्पष्ट किया गया है कि दो-राज्य समाधान, जिसमें इसराइल 1967 से पहले की सीमाओं पर लौटता है और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना होती है, अब व्यावहारिक नहीं है। इसराइल का लगातार विस्तार और अवैध कब्जे फिलिस्तीनी संघर्ष को और खरनाक बना रहे हैं। फिलिस्तीनी प्रतिरोध को विभाजित करने और कमजोर करने की कोशिशें विफल रही हैं। हम्मास और अन्य समूहों का उदय इसी का परिणाम है। इस सबके बीच, अब एक नए समाधान की ओर ध्यान आकर्षित किया जा रहा है: एक-राज्य समाधान, जहाँ सभी धर्मों के लोग समान अधिकारों के साथ एक लोकतांत्रिक राज्य में अपना अस्तित्व बचा कर एक साथ रह सकें।

फिलिस्तीन: एकमात्र समाधान का रास्ता एक-राज्य की सथापना

फैसल सुल्तान

इसराइल द्वारा गाजा पर किए गए नवीनतम युद्ध ने यह एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि इस संघर्ष का कोई स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। नरसंहार और विनाश के बीच, हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि इस संघर्ष की जड़ें क्या हैं, यह कैसे उत्पन्न हुआ, और क्यों सत्तर साल में कई बार  इसराइल और फिलिस्तीन का खुनी झड़प होता चला आ रहा है। इसके साथ-साथ, हमें यह भी विचार करना चाहिए कि फिलिस्तीनियों के लिए कौन सी रणनीति उन्हें जीत की ओर ले जा सकती है और यहूदी की इस क्रूर चक्रव्यूह को भविष्य में कैसे भेदा जा सकता है।

यह प्रश्न हमें उस बड़ी बहस की ओर लौटाता है, जो फिलिस्तीनियों और उनके समर्थकों के बीच लंबे समय से चली आ रही है: क्या संघर्ष का उद्देश्य दो-राज्य समाधान होना चाहिए, जिसमें इसराइल 1967 से पहले के कब्जे वाले क्षेत्रों से पीछे हटे और वहां एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य का गठन हो? या फिर एक ऐसा नया राज्य अस्तित्व में आना चाहिए, जहाँ फिलिस्तीनी, ईसाई, और यहूदी एक साथ एक साथ अपने अस्तित्व में गरिमा के साथ रह सकें, जैसा कि इसराइल राज्य बनने से पहले ऐतिहासिक फिलिस्तीन में होता था?

संघर्ष की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

इसराइल-फिलिस्तीन वार्ता, जिसे ओबामा प्रशासन ने पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था, जो विफल हो गई थी क्योंकि नेतन्याहू सरकार ने फिलिस्तीनी भूमि पर अवैध बस्तियों के निर्माण की एक नई लहर शुरू कर दी थी।

इस नवीनतम आक्रमण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इसराइली राज्य अपनी प्रकृति में एक विस्तारवादी राज्य है, जो 1948 में फिलिस्तीनी लोगों की जबरन बेदखली से पैदा हुआ था। इसराइल का विस्तार तब से लगातार जारी है और हर दशक में फिलिस्तीनी भूमि पर नए अवैध कब्जे होते रहे थे। 1993 में ओस्लो समझौते द्वारा स्थापित फिलिस्तीनी प्राधिकरण के अधीन आने वाली नाममात्र की भूमि पर भी बस्तियों और अलगाव दीवार का विस्तार होता गया है।

इसराइल के निरंतर विस्तार ने उस समाधान की संभावनाओं को लगभग समाप्त कर दिया है, जिसे अक्सर 'फिलिस्तीनी अपने रूप में देखा करता था: अर्थात 1967 के युद्ध में कब्जा की गई भूमि से इसराइल का पीछे हटना और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना।

दो-राज्य समाधान: फिलिस्तीनी संघर्ष का अंत नहीं 

दो-राज्य समाधान की संभावना अब न केवल कम होती हो गयी है, बल्कि यह एक असंभव राजनीतिक विकल्प भी प्रतीत हो रहा है। इसराइली नेतृत्व 1967 की सीमाओं पर वापस लौटने के लिए सहमत नहीं हो सकता है और न ही होगा। नेतन्याहू ने भी अब इसे स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है।

इसके अलावा, इस समाधान की ओर बढ़ने से फिलिस्तीनी प्रतिरोध को नुकसान हुआ है। दो-राज्य समाधान की परियोजना हमेशा अमेरिकी प्रायोजित वार्ता के जरिए आगे बढ़ाई जाती है, जो हमेशा फिलिस्तीनियों से समझौता करने की अपेक्षा करती है। यह रणनीति न केवल इसराइल के बस्ती विस्तार को जारी रखने की अनुमति देती है, बल्कि फिलिस्तीनी प्राधिकरण की प्रतिष्ठा को भी कमजोर करती है।

पहले, जब वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी प्राधिकरण के बलों पर पत्थर फेंके गए, तो यह इस सच्चाई का प्रतिबिंब था कि यह समाधान अब फिलिस्तीनी जनता के बड़े हिस्से द्वारा अस्वीकार किया जा रहा है। हम्मास  का उदय भी इसी विरोधाभास का परिणाम है, क्योंकि वह इसराइल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए तैयार था, जबकि फिलिस्तीनी प्राधिकरण इससे पीछे हट रहा था। ओस्लो शांति प्रक्रिया ने फिलिस्तीनी प्रतिरोध को विभाजित और कमजोर कर दिया, और इसके परिणामस्वरूप इसराइल ने अपने बस्ती कार्यक्रम को और बढ़ावा दिया।

अन्य विकल्पों की विफलता 

दो-राज्य समाधान का उदय आंशिक रूप से अरब राष्ट्रवाद के पतन से जुड़ा हुआ था। 1950 और 1960 के दशकों में यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ अरब राष्ट्रवादियों का संघर्ष अपने चरम पर था, लेकिन 1970 के दशक के बाद आर्थिक संकट और नवउदारवाद की ओर बढ़ते इन राष्ट्रों ने अपनी शक्ति खो दी। धीरे-धीरे ये राष्ट्र भ्रष्ट और तानाशाही व्यवस्थाओं में बदल गए, जिन्हें 2011 की अरब क्रांतियों ने चुनौती दी।

इस दौर में एक और शक्ति उभरकर आई: 1979 की ईरानी क्रांति के बाद, इस्लामी प्रतिरोध आंदोलनों ने मध्य पूर्व में बढ़त हासिल की। हिज़बुल्लाह और हम्मास  जैसे संगठनों ने साम्राज्यवाद के खिलाफ अपने संघर्ष से समर्थन प्राप्त किया।

हालांकि, मिडिल ईस्ट भी अब संकट में था। अरब क्रांतियों की असफलताएँ, मिस्र में पलटवार की सफलताएँ, सीरियाई युद्ध का सैन्यकरण, और इराक और सऊदी अरब में इस्लामी पुनरुत्थान की कमजोरियों को उजागर किया है। कई लोग चरमपंथी रूपों को अस्वीकार कर रहे थे, और इसके उदारवादी संस्करण सत्ता में टिकने में असफल रहे हैं।

यहां तक कि हम्मास , जो कि गाजा में एक वैध प्रतिरोध आंदोलन है, शांति के समय अलोकप्रिय हो गया था और केवल तब अधिक समर्थन प्राप्त करता है, जब वह इसराइली आक्रमण के खिलाफ गाजा की रक्षा कर रहा होता था।

एक-राज्य समाधान की ओर बढ़ते कदम 

इन सभी विफलताओं के बीच, एक-राज्य समाधान की संभावना फिर से विचाराधीन है। जॉर्डन नदी से लेकर भूमध्य सागर तक एक एकल, लोकतांत्रिक और बहु-धार्मिक राज्य का विचार अब नए सिरे से चर्चा में है।

इस समाधान के ऐतिहासिक उदाहरण हैं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, अरब नेताओं को वादा किया गया था कि उन्हें उस क्षेत्र पर नियंत्रण मिलेगा जिसमें फिलिस्तीन भी शामिल था। तब फिलिस्तीन एक बहु-धार्मिक समाज था, जहाँ मुसलमान, ईसाई और यहूदी शांति से साथ रहते थे। हालांकि बाद में इन समझौतों को तोड़ा गया और यहूदियों के लिए एक अलग राज्य के निर्माण का समर्थन किया गया, लेकिन 1969 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) ने एक-राज्य समाधान को अपने लक्ष्य के रूप में अपनाया।

पीएलओ ने घोषणा की कि उनका संघर्ष यहूदियों के खिलाफ नहीं, बल्कि इसराइल के खिलाफ है, जो एक नस्लवादी और धार्मिक राज्य है। पीएलओ ने कहा कि उनका उद्देश्य फिलिस्तीन में सभी लोगों के लिए एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज की स्थापना करना है, चाहे वे मुसलमान हों, ईसाई हों, या यहूदी हों।

निष्कर्ष: एक-राज्य समाधान ही अंतिम रास्ता 

फिलिस्तीन और इसराइल के बीच संघर्ष का समाधान अब दो-राज्य समाधान के जरिए नहीं हो सकता। जमीन पर इसराइली विस्तार और फिलिस्तीनी जमीनों पर कब्जे ने इस संभावना को खत्म कर दिया है। केवल एक-राज्य समाधान, जहाँ सभी धर्मों के लोग समान अधिकारों के साथ एक लोकतांत्रिक राज्य में रह सकें, इस संघर्ष का स्थायी और न्यायपूर्ण समाधान हो सकता है।

एक-राज्य समाधान को स्वीकार करने के लिए एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन और संघर्ष की नई दिशा की आवश्यकता होगी। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए, फिलिस्तीनी और उनके समर्थक दोनों को एकजुट होकर इस संघर्ष का अंत करने के लिए काम करना होगा।