नेपाल का वराह क्षेत्र मेला: भारत-नेपाल की आस्था और सांस्कृतिक एकता

नेपाल का ऐतिहासिक वराह क्षेत्र भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह से जुड़ा हुआ है, जो भारत और नेपाल के बीच न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक संबंधों का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष राक्षस का वध किया और पृथ्वी को पाताल से मुक्त कराया। यह स्थान कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले प्रसिद्ध वराह मेले के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ बिहार के कोशी क्षेत्र से हजारों श्रद्धालु नेपाल पहुँचते हैं। यह स्थल अररिया जिले के जोगबनी बॉर्डर से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर, कोशी नदी की तलहटी में स्थित है। श्रद्धालु चतरागद्दी से छह किलोमीटर पैदल यात्रा कर वराह मंदिर तक पहुँचते हैं। मेले में भारत और नेपाल के लोग एक साथ भाग लेते हैं, जिससे दोनों देशों के बीच की धार्मिक एकता और सांस्कृतिक निकटता और गहरी होती है।

नेपाल का वराह क्षेत्र मेला: भारत-नेपाल की आस्था और सांस्कृतिक एकता

भारत नेपाल सीमा (अशोक/विशाल/राजेश शर्मा)

भगवान विष्णु के दस अवतारों मीन, कच्छप, शुकर (वराह ),नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम , बुद्ध औऱ कल्कि में तीसरा अवतार अर्थात शुकर नेपाल के वराह क्षेत्र में विराजमान हैं। इस प्रकार माना जाता है कि नेपाल का यह वराह क्षेत्र दो देशों भारत और नेपाल को ही नहीं बल्कि दो देशों के दिलों को भी जोड़ता है।

भारत के साथ रोटी बेटी का संबंध रखने वाला पड़ोसी देश नेपाल भौगोलिक दृष्टि से एक दूसरे के बिल्कुल करीब है। साथ ही अध्यात्म के माध्यम से भी एक दूसरे से जुड़ा है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आदिकाल में हिरण्याक्ष नामक दैत्य के अत्याचार से सारे जीव त्राहिमाम कर रहे थे। यहां तक कि वह पृथ्वी को भी पाताल लोक में छिपा रखा था , तब , सारे देवी - देवताओं ने भगवान विष्णु से पृथ्वी को बचाने की याचना की। देवताओं की विनती पर भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर हिरण्याक्ष का संहार किया और पृथ्वी को पाताल से बाहर निकाला। वराह रूप होने के कारण नेपाल के उक्त ऐतिहासिक स्थान का नाम वराह क्षेत्र पड़ा । मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन जो भी मनुष्य कोशी नदी का जल भरकर भगवान वराह को अर्पित करता है वह पुण्य का भागी बनता है ।

यह ऐतिहासिक धार्मिक क्षेत्र बिहार के सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल अंतर्गत अररिया जिले के जोगबनी स्थित भारत नेपाल सीमा से 55 किलोमीटर की दूरी पर है और वराह क्षेत्र के नाम से ख्यात है।

 वराहक्षेत्र  बिहार नेपाल सीमा पर अवस्थित कोशी नदी की तलहटी में स्थित भगवान विष्णु के वराह मंदिर के रूप में अवस्थित है । इस क्षेत्र के लोग जोगबनी स्थित भारत नेपाल के बॉर्डर क्षेत्र  नेपाल के विराटनगर होते हुए चतरागद्दी तक पहले पहुंचते हैं , फिर  , चतरागद्दी में 10-12 बजे तक लोगों का जमावड़ा होता है और मध्य रात्रि के बाद से लोग मंदिर जाने के लिए प्रस्थान करने लगते हैं। वहां से छह कि०मी० दूर पहाड़ियों का रास्ता तय करते हुए बाराह क्षेत्र मंदिर तक पहुंचना होता है । रास्ते भर में वराह क्षेत्र की प्राकृतिक छंटा , नेपाली लोगों का रहन सहन , बोलचाल आदि को नजदीक से जानने का मौका मिलता है।

दो दिन के अविरल वर्षा के बंद होने के बाद से वहां का बंद रास्ता पूरी तरह से खुला है।

नेपाल भारत सामाजिक सांस्कृतिक मंच के सलाहकार महेश साह स्वर्णकार ने बताया कि वराहक्षेत्र जाने वाले रास्ते रविवार की संध्या से ही खुली है। उन्होने पूर्णिमा अवसर में  वराहक्षेत्र जाने वाले श्रद्धालु से आग्रह किया है कि किसी भी प्रकार की जानकारी और सहयोग के लिए  वराहक्षेत्र मंदिर जाने से पूर्व कोशी पूल पर अवस्थित पुलिस बिट से संपर्क करके पूर्ण जानकारी ले लें।