शिमला मस्जिद विवाद: कांग्रेस और भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति का खेल
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही अब मुस्लिम विरोधी राजनीति में समान रूप से संलिप्त दिख रही हैं। शिमला की 1940 में बनी एक मस्जिद को अवैध बताकर हटाने की कोशिश ने कांग्रेस के बदलते चेहरे को उजागर किया है। मस्जिद, वक्फ की जमीन पर कानूनी रूप से स्थापित थी, जिसे भाजपा ने पहले फंड से सुधारने का काम किया था। हालात तब बिगड़े जब स्थानीय कांग्रेसी नेता और अन्य संगठनों ने इसे साम्प्रदायिक मुद्दा बना दिया। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अलग-अलग तरीकों से इस मसले पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की। इससे साबित होता है कि कांग्रेस भी अब भाजपा की राह पर चलकर मुस्लिम विरोधी रुख अपना रही है।
फैसल सुल्तान
कांग्रेस और भाजपा के बीच की राजनीतिक खींचतान भारतीय राजनीति का एक पुराना और जटिल विषय है। जहां भाजपा की नीतियों पर अक्सर मुसलमानों के विरोध का आरोप लगता है, वहीं कांग्रेस, जो कभी महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी मानी जाती थी, अब उसी राह पर नजर आ रही है। हाल के घटनाक्रमों ने यह दर्शाया है कि कांग्रेस भी धीरे-धीरे भाजपा की हिंदुत्ववादी नीतियों की ओर झुक रही है, खासकर मुसलमानों के खिलाफ अपने रुख को लेकर।
कांग्रेस और मुस्लिम विरोध: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
कांग्रेस की नींव महात्मा गांधी जैसे नेताओं की विचारधारा पर आधारित थी, जिनका मानना था कि सभी धर्मों का सम्मान और सामाजिक समरसता ही भारत की पहचान है। गांधीजी ने युवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर सेवा करने की सलाह दी थी, और मुसलमानों ने भी इस सोच को आत्मसात करते हुए आदिवासियों और पिछड़े वर्गों के बीच काम किया। लेकिन, समय के साथ कांग्रेस की यह सोच बदलती नजर आई है।
शिमला मस्जिद विवाद: कांग्रेस का बदला रुख
शिमला की पहाड़ियों में बसा एक छोटा सा कस्बा संजौली, जो अपनी शांति और सुंदरता के लिए जाना जाता है, हाल ही में एक विवाद का केंद्र बन गया है। यहाँ की एक पुरानी मस्जिद, जो 1940 में वक्फ की जमीन पर बनाई गई थी, को लेकर हंगामा खड़ा हो गया है। यह मस्जिद वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आती है, और इस्लामी परंपरा के अनुसार, इसे धार्मिक कार्यों के लिए दान की गई जमीन पर स्थापित किया गया था।
हालांकि, स्थानीय नेताओं ने इस मस्जिद को अवैध बताकर इसे गिराने की मांग शुरू कर दी। यह विवाद उस समय उभरा जब कुछ स्थानीय नेताओं और मुस्लिम मिस्त्रियों के बीच एक तनातनी हुई। इस विवाद ने जल्दी ही एक बड़ा रूप ले लिया और मस्जिद के विरोध में आंदोलन तेज हो गया। कांग्रेस, जो इस मुद्दे पर शुरू से ही चुप रही थी, ने बाद में इसे एक साम्प्रदायिक रंग दे दिया।
भाजपा और कांग्रेस: समान राजनीतिक रणनीति?
भाजपा पर मुसलमानों के खिलाफ नीतियां अपनाने का आरोप लगना नया नहीं है। लेकिन, इस बार कांग्रेस की भूमिका भी उतनी ही विवादित रही है। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार, जो मुसलमानों के हितों की रक्षा करने का दावा करती रही है, इस मामले में पूरी तरह से चुप है। यहां तक कि एक कांग्रेस मंत्री ने विधानसभा में बयान दिया कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान हिमाचल की शांति को भंग कर रहे हैं, जबकि हिमाचल में इन समुदायों की कोई मौजूदगी का प्रमाण नहीं है। यह दर्शाता है कि कांग्रेस भी धीरे-धीरे भाजपा की राह पर चल रही है।
मस्जिद के खिलाफ आंदोलन: साम्प्रदायिक तनाव
संजौली में मस्जिद के खिलाफ यह आंदोलन अचानक शुरू नहीं हुआ। स्थानीय विवादों को साम्प्रदायिक रंग देकर इसे बड़ा बनाया गया। एक स्थानीय कांग्रेसी नेता के विवाद के बाद मस्जिद को गिराने की मांग शुरू हुई। इसके साथ ही, एक छोटे से झगड़े को भी साम्प्रदायिकता का रूप देकर इस आंदोलन को और तेज किया गया। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में हिन्दुत्ववादी संगठनों ने मुसलमानों के खिलाफ प्रदर्शन किए और माहौल को और बिगाड़ने का काम किया।
कांग्रेस की चुप्पी और मुसलमानों में डर
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात कांग्रेस की चुप्पी रही। एक तरफ जहां भाजपा इस आंदोलन का समर्थन कर रही थी, वहीं कांग्रेस की सरकार इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम उठाने में नाकाम रही। इससे मुसलमानों में डर और असुरक्षा का माहौल बन गया। खासकर, जब कांग्रेस के नेताओं ने भी मुसलमानों के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर दी, तो यह स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस अब अपने पुराने आदर्शों से दूर हो चुकी है।
साम्प्रदायिकता फैलाने की साजिश
शिमला मस्जिद विवाद ने यह साफ कर दिया कि यह आंदोलन केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक सोची-समझी साजिश थी। मस्जिद पूरी तरह से कानूनी तौर पर स्थापित थी, और यहां तक कि भाजपा सरकार ने इसके ऊपर बने मुसाफिरखाने के लिए सरकारी फंड भी आवंटित किया था। इसके बावजूद, साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए इस मस्जिद को निशाना बनाया गया।
मस्जिद का समर्थन और साम्प्रदायिक राजनीति
मुस्लिम समुदाय ने इस विवाद को शांत करने के लिए यहां तक कह दिया कि अगर मस्जिद के ऊपर बना मुसाफिरखाना हटाना जरूरी है, तो वे खुद इसे तोड़ने के लिए तैयार हैं। लेकिन, चूंकि यह सरकारी फंड से बनी इमारत थी, इसलिए इसे हटाना संभव नहीं था। इस दौरान, साम्प्रदायिकता का जहर फैलता गया, और प्रदेश में भाईचारे की भावना कमजोर पड़ने लगी।
राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत
इस पूरे मामले में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां साम्प्रदायिक राजनीति करने में लगी हुई थीं। जहां भाजपा ने अपने हिन्दुत्ववादी संगठनों को इस आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए आगे किया, वहीं कांग्रेस ने अपनी चुप्पी के जरिए मुसलमानों के खिलाफ माहौल को बढ़ावा दिया। कांग्रेस की इस चुप्पी ने मुसलमानों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वे अब किसी भी राजनीतिक दल पर भरोसा कर सकते हैं?
वामपंथी संगठनों की पहल
इस तनावपूर्ण माहौल को शांत करने के लिए सीपीआईएम और अन्य जनवादी संगठनों ने एक रैली का आयोजन किया, जिसमें साम्प्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठाई गई। इन संगठनों ने प्रदेश में भाईचारे और शांति का संदेश फैलाने की कोशिश की, लेकिन राजनीतिक पार्टियों की मिलीभगत के कारण स्थिति जटिल होती चली गई।
कांग्रेस का बदला हुआ चेहरा
संजौली मस्जिद विवाद ने यह साबित कर दिया कि कांग्रेस का पुराना चेहरा अब बदल चुका है। कभी महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलने वाली यह पार्टी अब भाजपा की तरह मुसलमानों के खिलाफ राजनीति कर रही है। कांग्रेस के नेताओं ने न केवल मुसलमानों के खिलाफ बयानबाजी की, बल्कि भाजपा की तरह ही साम्प्रदायिक राजनीति करने से भी पीछे नहीं हटे।
निष्कर्ष
भारतीय राजनीति में मुसलमानों के खिलाफ राजनीति करना कोई नई बात नहीं है। भाजपा पर यह आरोप लंबे समय से लगते आ रहे हैं, लेकिन अब कांग्रेस भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है। शिमला मस्जिद विवाद ने यह साफ कर दिया कि कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही पार्टियां मुसलमानों के खिलाफ अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए समान रणनीति अपना रही हैं। यह घटना न केवल हिमाचल प्रदेश, बल्कि पूरे देश के मुसलमानों के लिए एक चेतावनी है कि वे अब किस पर भरोसा करें? कांग्रेस का नया चेहरा मुसलमानों के लिए पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।