पूर्णिया में मुस्लिम धार्मिक झंडे को पाकिस्तान झंडे बताकर उन्मादीयों ने जमकर काटा बवाल

भारत नेपाल बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल की अंतर्राष्ट्रीय और अंतरप्रांतीय सीमाओं पर पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों रूपी सेवेन सिस्टर्स राज्यों के भारत में प्रवेश के द्वार के रूप में चिकेन नेक के नाम से अवस्थित बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल के जिलों में रह रह कर जातीय विद्वेष फैलाने की जो कोशिशें किसी खास समुदायों वर्गों के सिरफिरों की हरकतों के कारण की जाती हैं वह अब इस सीमांचल की परंपरागत गंगा जमुनी तहजीब पर कुठाराघात पहुंचाने वाली साजिशों को परिलक्षित करता नजर आने लगा है।

पूर्णिया में मुस्लिम धार्मिक झंडे को पाकिस्तान झंडे बताकर उन्मादीयों ने जमकर काटा बवाल

- आखिर किस राजनैतिक मकसद की आड़ में सीमांचल को अस्थिर करने का समय समय पर होता है राजनीतिक प्रयास : उभर कर सामने आ रहा है यह बड़ा सवाल

- गनीमत है कि परंपरागत गंगा जमुनी तहजीब से बंधे लोग साजिशों को नजरंदाज कर सिरफिरों के मंसूबों पर फेरते आ रहे हैं पानी

- गणतंत्र दिवस के दिन भी विपरीत परिस्थिति पैदा करने की कोशिश में लोगों को दिग्भ्रमित करने के हुए थे

- प्रयास : लेकिन पुलिस प्रशासन ने कर दिया नाकाम

सीमांचल ( अशोक / विशाल )

अभी अभी 26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूर्णिया नगर के सिपाही टोला नामक मुहल्ले के एक घर की छत पर फहराये गये मुस्लिम धर्म से संबंधित कथित झंडे को पाकिस्तानी झंडा बताते हुए जमकर विरोध किया गया।

पुलिस प्रशासन ने मौके पर त्वरित गति से पहुंचकर छत पर फहराये हुए उक्त कथित झंडे को जब्त किया। बाद में पुलिस प्रशासन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया कि वह मजहबी इस्लामिक धार्मिक झंडा था ।

लेकिन , उस बीच ही तब तक सोशल मीडिया से प्लावित इस युग में उक्त झंडे को लेकर खबरें बुरी तरह से वायरल कर दी गई और देखते ही देखते जहां तहां से तरह तरह की बयानबाजियां भी शुरू हो गई।

किसी ने सवाल उठाया कि गणतंत्र दिवस के दिन ही पाकिस्तानी झंडे से मिलते जुलते उक्त झंडे के फहराने का क्या औचित्य था तो किसी ने उक्त झंडे की आड़ लेकर पूर्णिया नगर क्षेत्र की परंपरागत सांप्रदायिक सौहार्द को सुनियोजित तरीके से बिगाड़ने का कुत्सित प्रयास बताया और लगभग सभी ने वैसे तत्व को गिरफ्तार कर कार्रवाई करने के लिए पूर्णिया जिला प्रशासन पर दबाव बनाया।

लेकिन , पूर्णिया जिला प्रशासन ने झंडे को लेकर सभी तरह की शंकाओं आशंकाओं को सिरे से खारिज करते हुए पूर्णिया वासियों से शांति बनाए रखने के लिए कह दिया।

अभी कुछ दिन पहले ही पूर्णिया जिले के बायसी अनुमंडल मुख्यालय के एक गांव में एक समुदाय विशेष के सबसे बड़े धार्मिक गुरू के विरूद्ध कुछ अपशब्द कहने वाले एक दूसरे समुदाय के एक सिरफिरे युवक को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

बताया जाता है कि गिरफ्तार सिरफिरे युवक ने धर्म गुरू के विरूद्ध अपमानजनक टिप्पणी जो किया था तो उस टिप्पणी को कॉल रिकॉर्डिंग के दौरान रिकॉर्ड करके बायरल कर दिया गया था जिसके कारण समुदाय विशेष के लोग हुजूम बनाकर सड़कों पर उतरने को बेताब होने लग गए थे लेकिन , ऐन वक्त पर प्रशासनिक और पुलिस तंत्र सक्रिय हो कर संबंधित सिरफिरे युवक को हिरासत में ले लिया और उसे जेल भेज दिया।

प्रशासन की इस तरह की त्वरित कार्रवाई को देख कर लोग बाग शांत हो गए थे और बायसी में सब कुछ सामान्य हो गया।

लेकिन , इन सभी घटनाओं से एक सवाल खड़ा होता है कि जातीय या धार्मिक आधार की ऐसी घटनाओं की रह रह कर होने वाली सुगबुगाहट का आखिर मतलब क्या होता है ?

सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऐसी किसी भी परिस्थिति को उजागर और बायरल करने के लिए जो भी तत्व या सोशल मीडिया तेजी से सक्रिय हो जाते हैं वे तत्व कौन होते हैं और उनकी मंशा क्या होती हैं ?

जबकि दूसरी ओर इस सीमांचल जैसे बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र में अपनी अपनी राजनीति की दुकानदारी को चमकाने के प्रयास में लगे रहने वाले भाजपाई और उससे जुड़े संगठनों विश्व हिंदू परिषद , बजरंग दल , विद्यार्थी परिषद , वनवासी कल्याण परिषद व इन सभी के मातृ संगठन आर एस एस के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस सीमांचल में हिंदू और मुस्लिम बिरादरी को अपने साथ लेकर ही राजनीति करने का प्रयास जारी रखा है।

इस सीमांचल के किशनगंज जिले की सरजमीं गवाह है कि उसने भी कभी बहुसंख्यक मुस्लिम वोटरों के बीच से भाजपाई सांसद के रूप में भाजपा के अति लोकप्रिय नेता शाहनवाज हुसैन को निर्वाचित करने का इतिहास रचा था।

अति मुस्लिम बहुल क्षेत्र अमौर से भाजपा की टिकट पर सबा जफर को विधायक निर्वाचित करने का भी इतिहास रचा था और अति मुस्लिम बहुल क्षेत्र बहादुरगंज विधान सभा क्षेत्र से भी कभी भाजपाई अवध बिहारी सिंह को भाजपा विधायक के ओहदे से नवाजा था।

तो बायसी विधान सभा क्षेत्र से भी एक बार भाजपा की ही टिकट पर संतोष कुशवाहा को विधायक चुनने का इतिहास रचा था।

कहने का तात्पर्य स्पष्ट है कि राजनीतिक चुनावी घमासानों के बीच भी सीमांचल के सर्वाधिक बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्रों ने कभी भी जातीय कट्टरता वाली राजनीति को अमल में नहीं लाया। और समय समय पर इस सीमांचल की बहसंखयक मुस्लिम   आबादी ने भाजपाइयों को जिताने का काम किया तो दूसरी ओर एम आई एम को भी तरजीह दिया और अपनी पुरानी परंपरागत राजनीति को जीवंत रखते हुए सेकुलर दलों कांग्रेस राजद को भी गले से लगा रखा।

कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि ऐसी तमाम परिस्थितियों के बाबजूद भी कुछ सिरफिरे राजनीतिक हितसाधक तत्वों के द्वारा समय समय पर ऐसे बेसिर पैर के हथकंडों को लेकर बबाल मचाने का प्रयास इस सीमांचल में तभी तभी किया जाने लगता है जब जब यह सीमांचल चुनाव झेलने की तैयारी में लगने लगता है।

स्मरणीय है कि इस सीमांचल में राजनीतिक हित साधने की जुगत में लंबे अरसे से घुसपैठ का हल्ला हसरात मचाया जाता रहा है तो दूसरी ओर इस सीमांचल को भारत विरोधी विदेशी शक्तियों की आवाजाही का प्रवेश द्वार भी बताया जाता रहा है।