खानकाह के संस्थापक थे पीर मुजिबुल्लाह कादरी

खानकाह के संस्थापक थे पीर मुजिबुल्लाह कादरी

खानकाह के संस्थापक थे पीर मुजिबुल्लाह कादरी

खानकाह मुजिबिया आपसी सौहार्द का प्रतीक है।

 प्रवेज आलम (स्टोरी)

 विश्व का सुप्रसिद्धखानकाह मुजिबिया के संस्थापक पीर मुजिबुल्लाह कादरी हैं। इनहीं के नाम से खानकाह मुजिबिया कहलाता है। उनका जन्म 1685ई0 में दिन शुक्रवार को अहले सुबह हुई। उस समय मुगल बादशाह औरंगजेब की हुकुमत का आखिरी दौर था। आपका नाम मोहम्मद मुजिबुल्लाह रखा गया। आपके पिता का नाम हजरत शाह जहुरउल्लाह था। हजरत अमीर अताउल्लाह जाफरी की औलाद थे जो मुगल बादशाह हुमांयु के वजीर थे। हजरत शाह पीर मुजिबुल्लाह कादरी के परिजन दशवीं सदी के आरंभ तक दिल्ली में आबाद थे। दिल्ली में ये जाफरी जैनबीं खानदान अरब से छठी या सातवीं सदी हिजरी में आबाद हुआ था। हजरत अमीर अताउल्लाह जाफरी के तीन बेटे थे। अबदुल्लाह, अमीर मोजफर और अमीर मोहम्मद हुसैन। हजरत पीर मोजिबुल्लाह कादरी अमीर मोहम्मद हुसैन की औलाद में थे। इस खानदान में बड़े बड़े उलेमा पैदा हुए। हजरत पीर मुजिबुल्लाह ने इरशाद व हिदायत फरमाते रहे और आखिरी दम तक हर लमहा अल्लाह की याद में गुजारा और 93 वर्ष की उम्र में 1778 में ये अल्ला को प्यारे हो गये।

खानकाह क्या है और इसकी महत्ता-

खानकाह नकुसे इंसानी की सेहतगाह होती है। नफस की इसलाह और तहजीब और इसका अखलाक व किरदार की भटके हुये इंसानों को सही रास्ते पर लाना और खुदा तक पहुंचना, इंसानियत की खिदमत करना, इसी काम को फैलाना इसी का नाम खानकाह है। खानकाह मुजिबिया जो 300वर्ष से अधिक जिसमें सुफी ईज्म का एक मरकज है। इसकी ऐतिहासिक जायजा लेते हुए इसका भी जिक्र जरूरी मालुम होता है कि इसके संस्थापक हजरत ताजुल आरफीन मोजिबुल्लाह कादरी ने इन उसुलों पर कायम किया था। जो आज तक चला आ रहा है। खानकाह मुजिबिया कादरी सिलसिले की खानकाह है और यह हजरत गौस ए आजम हजरत अब्दुल कादीर जिलानी की खानकाह के उसुलों के नियमों पर कायम की गयी थी। इन उसुलों को ताजुल आरफीन ने उनके उस्ताद सैयदना मोहम्मद वारिस रसुलनुमा बनारसी और ताजुल आरफीन के पीरो मुर्शिद हजरत ख्वाजा ईमादउद्दीन कलंदर ने कायम रखा जो आज तक कायम है।

क्या है खानकाह मुजिबिया के उसुल-

पांचो वक्त जमायत के साथ नमाज पढ़ना, खुदा और खुदा के रसुल का वृद करना, फकरो तवक्कल करना, रिस्क हलाल का प्रबंध करना, शिक्षा का प्रचार करना, वालदेन की खिदमत करना, खानकाह को फुलवारी में कायम रखना और आदाबे सज्जादा नशीं रखना।

सज्जादा नशीं के उसुल-

पंचगाना नमाज मस्जिद में जमायत के साथ अदा करना, तहियात इबादत करना, खानकाह और अपने हुजरे से बाहर न जाना, पूर्वजों के मजार पर फातिहा खानी के लिये बागे मुजिबी आना इसके अलावा अपने सगे संबंधी के घरो में बिमार लोगों की इयादत खुशियो ंमे जाना, मगर हज और दिगर जरूरयात के लिये खानकाह परिसर से बाहर जा सकते हैं।

शिक्षा का प्रसार करना

खानकाह मुजिबिया के अंतर्गत मदरसा मुजिबिया दारूल उलुम है। इनके संस्थापक पीर मुजिबुल्लाह कादरी ने की थी। अब तक ये मदरसा चला आ रहा है। इस मदरसा से एक से बढ़कर एक इस्लामिक विद्ववान पैदा हुये जिसमें सैयद सुलेमान नदवीं जैसी व्यक्तित्व थी। इसके अलावा आधुनिक भारत के निर्माता और समाज सुधारक राजा राम मोहन राय ने इसी मदरसा से फारसी और अरबी की तालिम हासिल की। यहां पढ़ने वाले बच्चों को निशुल्क शिक्षा भी दी जाती है और रहने का इतजाम है।

पुस्तकालय

खानकाह मुजिबिया के अंतर्गत एक पुस्तकालय भी है। जहां   पांच सौ से ज्यादा पांडुलुपिया मौजुद है। कहा जाता है कि खुदा वख्स लाइब्रेरी के बाद खानकाह मुजिबिया के पुस्तकालय में पांडुलुपिया है। कुछ पांडुलुपिया ऐसी है जो खुदा वख्स लाइब्रेरी में नहीं है। देश के हर राज्य के अलावा ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से अरबी और फारसी के रिसर्च स्कालर आकर यहां अध्ययन करते है। खास पांडुलुपिया में बादशाह औरंगजेब की लिखी हुई कलम से कलामपाक, बहरे जखार, मकतुबाते सदी, गंजे अरशदी जैसी पांडुलुपियां मौजुद है।

महापुरूष भी पहुंचे खानकाह

खानकाह मुजिबिया में हर धर्म के महापुरूष लोग आते हैं। यहां महात्मा गांधी, मौलाना अबु कलाम आजाद, सरहदी गांधी अब्दुल गफार खान, पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन समेत अन्य गणमान्य व्यक्ति यहां आते रहे हैं।