डॉ दिलीप जायसवाल को मिला मंत्री का दर्जा

सीमांचल की वर्तमान राजनीति में अपनी सेक्युलर छवि को लगातार बरकरार रखने वाले हर दिल ही नहीं बल्कि हर दल अज़ीज़ बने विधान पार्षद डॉ दिलीप जायसवाल को सम्मानित करने का सिलसिला अबतक थमा नहीं है और उनके लिए सम्मान समारोहों की लगातार झड़ी लग गई है।

डॉ दिलीप जायसवाल को मिला मंत्री का दर्जा

- बनाए गए विहार के सत्तारूढ़ दल के उप मुख्य सचेतक

- पटना साहिब तख्त श्री हरिमंदिर जी गुरूद्वारा से लेकर सीमांचल भर के गुरूद्वारों के प्रमुखों ने किया सम्मानित 

- यूवा सिख संगठनों सहित सिंधी समाज ने डॉ दिलीप जायसवाल को सम्मानित किया

- केंद्रीय राज्यमंत्री और पूर्णिया जिला भाजपा भी इस होड़ में शामिल

- थम नहीं रहा है डॉ जायसवाल को सम्मानित करने का सिलसिला

- डॉ जायसवाल से सिक्खों ने मांगी मदद

- कहा बिहार सरकार से नहीं मिल रहा है सिक्खों को अल्पसंख्यक का प्रमाणपत्र

सीमांचल (अशोक/विशाल)

बिहार विधान परिषद के हालिया चुनाव में पूर्णिया किशनगंज अररिया की मुस्लिम बहुल विधान परिषद सीट से तीसरी बार जीत हासिल करने वाले भाजपाई विधान पार्षद डॉ दिलीप जायसवाल को इन तीनों जिलों के हिन्दू मुस्लिम संगठनों के साथ साथ सम्पूर्ण सीमांचल के सिक्ख गुरूद्वारों के प्रबन्धक कमिटियों ने भी पटना साहिब तख्त श्री हरिमंदिर जी के चेयरमैन के नेतृत्व में संयुक्त रूप से सम्मानित कर स्वयं में गौरवान्वित महसूस किया।

किशनगंज स्थित माता गूजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज सह माता गूजरी मेमोरियल युनिवर्सिटी सह लायन्स सेवा केंद्र अस्पताल के प्रांगण में ही सिक्ख समाज के तीनों जिलों के गुरूद्वारों की प्रबन्धक कमिटियों के द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में किशनगंज गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एवम तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब के चेयरमैन लखविंदर सिंह , सचिव सूरज सिंह , अजित सिंह , सुरेन्द्र सिंह , सहित किशनगंज सिक्ख युवा कमिटी के सदस्यों गगनदीप सिंह , बलदेव सिंह , राजा सिंह और लक्ष्मीपुर गुरूदेव गुरूद्वारा के प्रधान प्रदीप सिंह , माल सिंह , भगत सिंह , पूर्णिया गुरूद्वारा के अध्यक्ष हरबिंदर सिंह , बलबीर सिंह , महेश्वर गुरूद्वारा के अध्यक्ष अमरजीत सिंह  जीतू  , दारा सिंह , अररिया जिले के गुरूद्वारों के नारायण सिंह , कृष्ण सिंह , संजय सिंह , रूप सिंह सहित सिंधी समाज से जुटे हेमन्त जेठवानी , शेरू जेठवानी ने सहयोगी यस दूबे और दिलीप अग्रवाल के सहयोग से डॉ दिलीप जायसवाल को सम्मानित किया। 

डॉ दिलीप जायसवाल को सम्मानित करने की लगी इस होड़ के बीच में ही भारत सरकार के केंद्रीय राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार श्री बी एल बर्मा ने भी अपने पूर्णिया प्रवास के दौरान सम्मानित किया , वहीं , दूसरी ओर पूर्णिया जिला भाजपा कार्यालय में भी मंगलवार को विधान पार्षद डॉ दिलीप जायसवाल को पूरे जोश खरोस से सम्मानित किया गया ।

अब सवाल उठता है कि डॉ दिलीप जायसवाल जब भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष हैं और दिग्गज भाजपा नेताओं की सूची में शुमार हैं तो राज्य के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र सीमांचल में उनके सम्मान के लिए मची होड़ का कारण क्या है।

इस सम्बन्ध में बताया जाता है कि 1981-- 82 के दौर की कांग्रेसी हुकूमत के दौरान पूर्णिया  किशनगंज अररिया सहित संचालित पुराने पूर्णिया जिले में डूमर लाल बैठा और मोहम्मद हुसैन आजाद की लोकप्रियता सर्वहारा नेता के रूप में थी और उसके बाद जब इस सीमांचल में घुसपैठ का हव्वा खड़ा किया जाने लगा था तो एक ओर से सीपीएम के कॉमरेड अजित सरकार और दूसरी ओर से तस्लीमुददीन जैसे मुखर नेता जनता के बीच उभरकर सामने आ गए थे।

कहना ग़लत नहीं होगा कि तब के उपरोक्त नेताओं की उस चौकड़ी की ही इस क्षेत्र की राजनीति में धूम मची थी।

कालांतर में 1990 में अररिया  जिला बन गया और किशनगंज भी जिला बन गया और पूर्णिया प्रमंडल बन गया।

ऐसी स्थिति में एकमात्र अजित सरकार और तस्लीमुद्दीन जैसे बेबाक और मुखर नेता की लोकप्रियता सिर्फ इस सीमांचल भर में चमकने लगी थी। जिसका स्पष्ट कारण यही था कि उन नेताओं ने जातिगत राजनीति को कभी प्रश्रय नहीं दिया था।

 नेपाल और पश्चिम बंगाल की सीमा पर अवस्थित तत्कालीन पूर्णिया से लेकर आज तक के पूर्णिया में  राजनीतिक उथल पुथल मचाकर राजनीतिक दुकानदारी चलाने की जुगत में खास राजनीतिक दल ने काफी प्रयास किया और उक्त प्रयास का मुद्दा किशनगंज से सटे पश्चिम बंगाल से होकर किशनगंज से महज 10-- 12 किलोमीटर पर अवस्थित बांग्लादेश की सीमा को  बनाया गया था तो उक्त राजनीति के खिलाफ तस्लीमुद्दीन और अजित सरकार लंगोट कस कर वैसे राजनीतिज्ञों से भिड़ गए।

इस क्रम में काफी लंबी उठापटक के बाद जब वह बात वह मुद्दा आयी गयी हो गई और हर ओर शांति व्यवस्था कायम हो गई थी तो उसी बीच अजित सरकार जैसे मुखर नेता को तत्कालीन राजनीतिक साजिश के तहत जिंदगी से विदा करा दिया गया। और तब उसके बाद से इस सीमांचल भर में एकमात्र जुझारू नेता के रूप में तस्लीमुद्दीन का राजनीतिक सितारा बुलंद हो उठा।......जो दलगत और जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करते रहने के कारण अपने राजनीतिक जीवन के अंत तक इस सीमांचल के गांधी कहलाते रह गए। और सीमांचल गांधी के नाम से ही हर ओर नवाजे जाते रहे थे।

ऐसी स्थिति में तब जनाब तस्लीमुद्दीन जैसे राजनीतिक महारथी ही पूर्णिया किशनगंज अररिया नामक तीनों जिलों की राजनीति को अपने मनमाफिक हांकना शुरू किए।राजनीति में वह चुनिंदे जुझारू लोगों को समाहित कराने लगे । जिसमें वह कभी यह भेदभाव नहीं किए कि उनके आशीर्वाद से सीमांचल की राजनीति में कोई हिन्दू आगे बढ़ रहा है कि कोई मुस्लिम।

लिहाजा , सारे दलों के नेतागण तस्लीमुद्दीन की दरबार को राजनीतिक पाठशाला के तौर पर इस्तेमाल करने लगे।

 जिसमें अभी के प्रायः सभी जनप्रतिनिधिगण भी रहे थे और उन्हीं सबों के बीच तभी से लगातार बरकरार रहे थे डॉ दिलीप जायसवाल।जो राजनीति के तमाम दाव पेंच जनाब तस्लीमुद्दीन साहब की दरबार में रोजाना की हाजिरी लगाते हुए सीख लिए।

 उस दौरान ही तस्लीमुद्दीन ने अपने जीते जी  अपने एक पुत्र सरफराज को राजनीतिक ओहदे से नवाज दिया था तो दूसरी ओर डॉ दिलीप जायसवाल को भी बतौर विधान पार्षद खड़ा किया था।

हालांकि , तस्लीमुद्दीन साहब के स्वर्ग सिधार जाने के बाद उनके छोटे पुत्र शाहनवाज आलम भी बतौर विधायक काबिज हो गए।

लेकिन , उनके दोनों राजनीतिक पुत्रों में से किसी एक ने भी बाप की राजनीतिक टेक्नीक को ग्रहण नहीं किया जबकि दूसरी ओर  तस्लीमुद्दीन की राजनीति के गुढ़ को सीधे अपनी राजनीतिक जिंदगी में उतारने वाले शख्सियत के रूप में  डॉ दिलीप जायसवाल सामने आ खड़े हुए।

एक मेडिकल कॉलेज अस्पताल से तीनों जिलों के गरीब गुरबों को मुफ्त में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करा कर दिलीप जायसवाल की सामाजिक और राजनीतिक छवि एक मसीहा की बन गई और तस्लीमुद्दीन की तर्ज की राजनीतिक गतिवधियां जारी रखते हुए डॉ दिलीप जायसवाल स्वर्गीय तस्लीमुद्दीन की तरह ही सभी संप्रदाय के लोगों को अपने बगल में बैठा कर दलगत और जातिगत राजनीति से अलग की राजनीति करते रहने के कारण दूसरे सीमांचल गांधी के रूप में लोकप्रिय होते चले गए।

जिसके परिणामस्वरूप ही भाजपा से जुड़े रहने के बावजूद डॉ दिलीप जायसवाल हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों के लिए मसीहा बन बैठे हैं।

आज की तारीख में किशनगंज के कांग्रेस सांसद डॉ जावेद आजाद हो या अररिया पूर्णिया के एन डी ए वाले सांसद बन्धुगण हों , सभी की आस अंततः दिलीप जायसवाल से जुड़ी है और डॉ दिलीप जायसवाल सचमुच के सीमांचल गांधी के रूप में नजर आने लगे हैं।