बिहार में नहीं थम रहा पुलों का गिरना फिर भी विपक्ष मुद्दा बनाने से कर रहा परहेज

बिहार में आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगे राजनीतिक दलों ने अपनी संवेदनशीलता खो दी है। राज्य में पुलों के गिरने की बढ़ती घटनाओं पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में बिहार में कई पुल गिरे, लेकिन सरकार और विपक्ष दोनों ही चुप्पी साधे हुए हैं। इन घटनाओं से राज्य की निर्माण गुणवत्ता और सरकारी योजनाओं पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इन घटनाओं की गंभीरता को समझते हुए सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। राज्य में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि आने वाले बाढ़ के मौसम में पुलों के और भी गिरने की संभावना है। राजनीतिक पार्टियाँ सत्ता की लड़ाई में इतनी व्यस्त हैं कि जनता की समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दे रही हैं।

बिहार में नहीं थम रहा पुलों का गिरना फिर भी विपक्ष मुद्दा बनाने से कर रहा परहेज

सीमांचल  (विशाल/पिंटू/विकास)

बिहार की सत्ता को 2025 में हांसिल करने की कोशिश में लगी बिहार की राजनीतिक दलों में चुनावी राजनीति का जो नशा छाया हुआ है उसके वशीभूत बिहार की राजनीतिक दलों का जमीर अब इस कदर मर चुका है कि बिहार में ऐन चुनाव के वक्त राजनीतिक दलों के हाथ लग रहे चुनावी मुद्दे पर भी राजनीतिक दलों की संवेदनशीलता सुगबुगाने तक के लिए तैयार नहीं हो पा रही है।

बिहार विधान सभा के लिए होने वाले 2025 के विधान सभा चुनाव की दस्तक के बीच बिहार में एक एक कर डेढ़ दर्जन पुलों के गिरने , धंसने की खबरें लगातार प्रकाश में आती रहीं हैं और उससे संबद्ध विभाग,मंत्रालय से लेकर पूरी की पूरी बिहार सरकार तक से विपक्ष की राजनीतिक पार्टियों में लगातार चुप्पियां बरकरार रह गई।

बिहार की जनता के लिए यह बात बेहद चौंकाऊं है कि विपक्ष की रोल में जनता के बीच हवा हवाई हाथ पाव मारने वाली विपक्षी राजनीतिक पार्टियां पुलों के निरंतर गिरने की घटनाओं को न तो जनता के बीच परोसने का काम कर रही है और न ही इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है।

यह बिहार प्रदेश के लिए लोमहर्षक घटनाएं नहीं है तो क्या है कि इस समाचार के लिखे जाने के दिन भी यानि 3 जुलाई को भी सिवान के महाराजगंज में एक एक कर तीन पुल धराशायी हो गए।

वहां की धमहीं नदी पर बनी एक पुल गिरी तो दूसरी ओर गंडकी नदी पर बने दो पुल धराशायी हुए।

तीन पुलों के गिरने की ताजा तरीन घटना चालू जुलाई माह की शुरूआत में 3 जुलाई को हुई है।

जबकि इसके पहले की जून माह में तो बिहार में पुलों के गिरने और धंसने की घटनाएं आम घटनाएं बन लगातार जारी ही रहीं।

विगत 27 जून को ही बिहार के सबसे बड़े संवेदनशील राजनीतिक क्षेत्र सीमांचल के किशनगंज जिले के बहादुरगंज विधान सभा क्षेत्र अंतर्गत दिग्घल बैंक रोड की सीमा पर दुआडांगी जयनगर गांव में अवस्थित एक पुराना पुल धंस गया।

उसके बाद 28 जून को बिहार के मधुबनी जिले में भूतही बलान नदी पर तुरत की ढलाई की हुई लगभग 3 करोड़ रूपये की लागत वाली एक पुल भरभरा कर नदी में गिर गई।

जबकि उसी जून माह में ही इन सभी से पहले ही सीमांचल के अररिया जिले में सिकटी पलासी क्षेत्र में एक पुल उदघाटन से पहले ही टूट फूट कर बकरा नदी की धार में जा समायी तो केन्द्र सरकार के मंत्री नितिन गडकरी ने छुटते ही उसके लिए केन्द्र सरकार के दामन को बचाते हुए स्पष्ट रूप से ऐलानिया तौर पर कह दिया कि उक्त पुल के गिरने की घटना का सीधा दोषी और जिम्मेदार बिहार सरकार है।

उसके चौथे दिन ही बिहार के सिवान में ही एक पुल गिरी और उसके एक दिन बाद ही एक और पुल बिहार के मोतिहारी में गंडक नदी में गिर पड़ी।

फिर एक पुल और बिहार के मधुबनी जिले में भी गिर पड़ी।

कहने का तात्पर्य यही है कि बिहार में आगामी विधानसभा आम चुनाव की दस्तक के बीच ही एक एक करके लगभग डेढ़ दर्जन पुल धराशायी हो गए और गर्व की बात है कि बिहार सरकार से लेकर संबद्ध विभाग और मंत्रालय के साथ साथ किसी ठिकेदार तक के न तो हाथ पाव फूले और न ओंठ कंठ सूखे ।

बिहार में लगातार ध्वस्त हो कर गिर रहे पुलों की जिम्मेवारी उठाने से केंद्रीय सरकार ने तो तभी अपना पल्ला झाड़ लिया था जब बिहार के सीमांचल के अररिया जिले में एक पुल उदघाटन से पहले ही विगत 18 जून को भरभरा कर अररिया से होकर बहने वाली विनाशकारी बकरा नदी में गिर पड़ी थी।

चर्चा शुरू हो गई कि इस बिहार में विगत दो वर्षों के दरम्यान कुल नौ पुल पूर्व में ही गिर चुके थे।

जिसमें भी सत्तारूढ़ दल से लेकर विपक्षी दलों तक की चुप्पियां अनवरत जारी रह गई थी।

पुलों के गिरने की लगातार घटना से बिहार सरकार की प्रतिष्ठा के परखच्चे उड़ने लग गए , राज्य में निर्माण की प्रक्रिया के अंतर्गत बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता और सरकारी योजनाओं पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे।

18 जून को अररिया में, 22 जून को सिवान में और 23 जून को मोतिहारी में निर्माणाधीन पुलों का धराशायी हो जाना बिहार की जनता के लिए न केवल चिंताजनक थी ,  बल्कि , राज्य सरकार की नीतियों और कार्यान्वयन में पारदर्शिता की गहन कमी का आईना भी स्पष्ट रूप से दिखाई दिया।

सरकार चुप रह गई तो रहस्यमयी रूप से बिहार की विपक्षी पार्टियां भी सांसें अटका कर मौन धारण कर गई।

क्रांति की जननी कहे जाने वाले बिहार में पुलों के गिरने की घटनाएं राज्य सरकार की कार्यकुशलता पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इन घटनाओं की गंभीरता को समझते हुए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत महसूसनी चाहिए थी ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके और जनता का विश्वास बटोरा जा सके।

लेकिन , इस बिहार में एक ही कहाबत चरितार्थ होती नजर आ रही है कि हर साख पे उल्लू बैठा है तो अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा।

बिहार में अपनी अपनी अगली सरकार बनाने की चिंता में अपनी जमीर को दाव पर लगा चुकी बिहार की राजनीतिक पार्टियां शर्म व हया को ताक पर रखकर कुर्सी की लड़ाई जीतने की चिंता में इतनी बेखबर हो गई है कि उन राजनीतिक पार्टियों को पल पल बदल रही जनता की मिजाजों की भी कोई परवाह नहीं रही है।

ऐसे में अभी जिस तरह से बिहार में बरसात का मौसम प्रारंभ हुआ है और बाढ़ की संभावित विभीषिका भी बिहार वासियों के दरवाजे पर दस्तक दे रही है उससे स्पष्ट अंदाजा लगाया जा रहा है कि पुल पुलियों की अनगिनत जाल से आच्छादित बिहार में इस बार की आने वाली बाढ़ की विभीषिका के बीच कोई पुल पुलिया बचा खुचा रह पाएगा कि नहीं , क्योंकि , बिहार में अपनी जड़ को मजबूत कर चुकी भ्रष्टाचार की डायन बिहार की पुलों को एक एक करके निगलती जा रही है।