भाजपा की बढ़ती तानाशाही प्रवृत्तियाँ और लोकतंत्र का सुरक्षा कवच : आगामी चुनावों में कड़ा परीक्षण

जब कोई दल भारी बहुमत हासिल कर लेता है, तो उसके शीर्ष नेतृत्व को चुनौती देने का साहस किसी में नहीं होता, जिससे तानाशाही प्रवृत्तियाँ उभर सकती हैं। हालांकि, लोकतंत्र में कोई भी तानाशाह नहीं बन सकता। भाजपा ने जब लोकतंत्र और संविधान का उल्लंघन किया, तो विपक्ष और जनता ने उन्हें तानाशाह माना। इसके बावजूद, भाजपा पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी और कांग्रेस मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी। भारी बहुमत के बावजूद, भाजपा के खिलाफ विरोध बढ़ रहा है। उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं, जहां वे केवल कुछ सीटें ही जीत पाए। उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनाव भाजपा की लोकप्रियता की एक और परीक्षा होंगे। भाजपा में विचारकों की कमी नहीं है, लेकिन पार्टी को 'कांग्रेसीकरण' से बचना चाहिए। मोदी और शाह को उम्मीदवार चयन का अधिकार छोड़कर राज्य नेताओं को सम्मान देना चाहिए। योगी आदित्यनाथ को साइडलाइन करने से बचना चाहिए और आरएसएस की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। भाजपा सरकार ने पिछले 10 वर्षों में अच्छे काम किए हैं, लेकिन अब निष्ठावान कार्यकर्ताओं को आगे लाना जरूरी है। जनता मानती है कि मोदी के बाद भाजपा में योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं। विरोधी दलों का गठबंधन एक हकीकत है, जिसे स्वीकार करना होगा।

भाजपा की बढ़ती तानाशाही प्रवृत्तियाँ और लोकतंत्र का सुरक्षा कवच : आगामी चुनावों में कड़ा परीक्षण

फैसल सुल्तान 

राजनीति का एक सिद्धांत है कि जब कोई दल भारी बहुमत हासिल कर लेता है, तो उसके शीर्ष नेतृत्व को चुनौती देने का साहस किसी में नहीं होता। धीरे-धीरे, यह स्थिति शीर्ष नेताओं में ऐसी प्रवृत्तियाँ पैदा कर देती है जो तानाशाही की ओर ले जाती प्रतीत होती हैं।

सौभाग्य से, लोकतंत्र का यह गुण है कि कोई भी व्यक्ति बिना लोकतंत्र का गला घोंटे तानाशाह नहीं बन सकता। जब भाजपा ने लोकतंत्र और संविधान का उल्लंघन किया, तो तत्कालीन विपक्ष और जनता ने उन्हें तानाशाह माना। विपक्ष ने मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ़ यह नेरेटिव गढ़ा, जिससे विपक्ष को एक मुद्दा मिला और जनता ने इसे स्वीकार किया। हालांकि, भाजपा अपने दम पर पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी, और कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी।

नतीजे स्पष्ट हैं। भारी बहुमत के बावजूद, विरोध के सुर उठने लगे हैं। उत्तर प्रदेश में तीन भाजपा विधायकों ने अपनी पार्टी के भविष्य पर सवाल उठाए हैं। सात राज्यों की तेरह विधानसभा सीटों के उपचुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं, जहां वे केवल दो सीटें ही जीत पाए। उत्तराखंड में, जहां भाजपा ने हाल ही में सभी लोकसभा सीटें जीती थीं, उपचुनाव में दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि बद्रीनाथ धाम की सीट भी भाजपा हार गई, जैसे लोकसभा चुनाव में अयोध्या, चित्रकूट और प्रयागराज की हारी थी।

भाजपा के सामने उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव एक बार फिर उसकी लोकप्रियता की परीक्षा लेंगे। हाल के परिणामों में, इंडिया को 10 और भाजपा को 2 सीटें मिलीं। क्या भाजपा उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में सभी दस सीटें जीतकर सबको चौंका पाएगी? या फिर परिणाम सात राज्यों की 13 सीटों की तरह ही रहेंगे? निश्चित रूप से, इंडी अलायन्स का उत्साह इस समय चरम पर है, और यह स्वाभाविक भी है।

भाजपा में विचारकों की कमी नहीं है और पार्टी में उठ खड़े होने की सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन उसे पार्टी के कांग्रेसीकरण से बचना चाहिए। मोदी और शाह को पार्टी उम्मीदवारों के चयन का अधिकार अपने हाथ में रखने की नीति छोड़नी पड़ेगी और राज्य नेताओं को सम्मान देना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश में और प्रयोग करने से बचें और योगी आदित्यनाथ को साइडलाइन करने का विचार त्याग दें, नहीं तो पछताना पड़ेगा। आरएसएस की उपेक्षा भी बंद करें और पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को टिकट दें।

उत्तर प्रदेश में 33 सीटें मिलने के बावजूद, काशी की जीत उतनी प्रभावशाली नहीं रही है। भाजपा सरकार ने पिछले 10 वर्षों में कुछ अच्छे काम किए हैं, लेकिन अब निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं को आगे लाना चाहिए। पार्टी के कांग्रेसीकरण से निष्ठावान कार्यकर्ता निराश हो गए हैं और घर बैठ गए हैं। जनता का भी मानना है कि मोदी के बाद भाजपा में अगर कोई प्रधानमंत्री पद के योग्य है तो वह योगी आदित्यनाथ हैं। भाजपा के पास मोदी जैसा चेहरा है, लेकिन लंबी अवधि के लिए राज्यों में नेतृत्व खड़ा करना जरूरी है। विरोधी दलों का गठबंधन एक हकीकत है, जिसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।