बिहार में नवनिर्मित पुलों के गिरने से नीतीश कुमार की सुशासन सरकार पर गंभीर सवाल

बिहार में हाल ही में अररिया, सिवान, और मोतिहारी में नवनिर्मित पुलों के गिरने की घटनाओं ने राज्य सरकार की सुशासन और बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इन घटनाओं की गंभीरता को समझते हुए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके और जनता का विश्वास बहाल किया जा सके।

बिहार में नवनिर्मित पुलों के गिरने से नीतीश कुमार की सुशासन सरकार पर गंभीर सवाल

बिहार में नवनिर्मित पुलों का धसना : हर साख पर उल्लू बैठा है अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा ?

पटना/सीमांचल (बिहार मंथन ब्यूरो)

बिहार में लगातार ध्वस्त हो कर गिर रहे पुलों की जिम्मेवारी उठाने से केंद्रीय सरकार ने तभी अपना पल्ला झाड़ लिया जब बिहार के सीमांचल के अररिया जिले में एक पुल उदघाटन से पहले ही विगत 18 जून को भरभरा कर अररिया से होकर बहने वाली विनाशकारी बकरा नदी में गिर पड़ी।

अररिया की इस घटना की सुर्खियां दिल्ली में सत्ता की गलियारों में हड़कंप मचा दी तो लगे हाथ केंद्रीय सरकार के मंत्री नितिन गडकरी ने पुल के गिरने का ठिकड़ा बिहार सरकार के माथे पर फोड़ते हुए अपनी ओर से सफाई जारी कर दी कि इसमें केन्द्र सरकार नहीं वल्कि बिहार सरकार ही दोषी है और बिहार सरकार का ग्रामीण कार्य विभाग उक्त पुल का निर्माण करा रहा था।

जाहिर सी बात है कि विना किसी के टोके ही केंद्रीय मंत्री द्वारा दी गई उक्त सफाई का सीधा कारण अररिया संसदीय क्षेत्र से विजयी हुए भाजपा के सांसद की छवि को बचाने की रही थी और बिहार सरकार को जिम्मेवार ठहराते हुए बिहार सरकार को जनता की निगाहों में चढ़ाने की राजनीतिक कोशिश भर थी।

लेकिन , उस घटना के तुरत बाद से ही महज पांच दिनों में ही बिहार के विभिन्न क्षेत्रों के तीन पुलों के गिरने की लगातार घटना से बिहार सरकार की प्रतिष्ठा के परखच्चे उड़ने लग गए , राज्य में निर्माण की प्रक्रिया के अंतर्गत बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता और सरकारी योजनाओं पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे।

“18 जून को अररिया में, 22 जून को सिवान में और 23 जून को मोतिहारी में निर्माणाधीन पुलों का धराशायी हो जाना बिहार की जनता के लिए न केवल चिंताजनक है बल्कि राज्य सरकार की नीतियों और कार्यान्वयन में पारदर्शिता की गहन कमी को भी उजागर किया है

बिहार में पूर्ण निर्मित अथवा अर्द्ध निर्मित पुलों के भराभर गिरने की घटनाओं के विवरण के मुताबिक ,18 जून, 2024 को गिरा अररिया पुल, काफी समय से निर्माणाधीन था। इस पुल के गिरने से निर्माण में इस्तेमाल की गई सामग्री की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो गए हैं।

22 जून, 2024 को धवस्त हुआ सिवान पुल : भी निर्माणाधीन था। यह घटना भी निर्माण कार्य में बरती गई घोर लापरवाही और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी का संकेत दे गई है।

23 जून, 2024 को ध्वस्त हुआ : पूर्वी चंपारण के घोड़ासहन ब्लॉक में चैनपुर स्टेशन जाने वाले रास्ते के बीच पड़ने वाला पुल भी निर्माणाधीन था और इसकी लागत भी लगभग 2 करोड़ रुपये बताई जा रही है। यह घटना सबसे ताजा है और उसके साथ साथ बिहार में जारी सभी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करती है।

बिहार में पुलों के गिरकर जमींदोज होने की लगातार हुई घटनाओं के मद्देनजर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार के सामने कई गंभीर प्रश्न खड़े करने लगे हैं जिसमे

निर्माण की गुणवत्ता: के मद्देनजर निर्माण सामग्री की गुणवत्ता की जांच कौन कर रहा था? इसका खुलासा जरूरी हो गया है। निर्माण कार्य के दौरान सुरक्षा मानकों का पालन किया जा रहा था या नहीं ? इसका खुलासा भी जरूरी है। और सबसे जरूरी बात यह कि पुल के निर्माण के लिए संबंधित ठिकेदार या एजेंसी के साथ अनुबंध और जिम्मेदारी की प्रक्रिया के अंतर्गत पुलों के निर्माण का ठेका किसे दिया गया था? ठीकेदारों के चयन में पारदर्शिता बरती गई थी या नहीं ? इसका भी खुलासा अब जरूरी माना जा रहा है।

इसके अलावा सरकारी निगरानी : की प्रक्रिया के अंतर्गत  निर्माण कार्य की निगरानी के लिए सरकारी अधिकारियों की क्या भूमिका रही थी ? और क्या समय-समय पर निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया जा रहा था ?

इसी क्रम में निर्माण की लागत और बजट : के मुताबिक पुलों के निर्माण में खर्च की जाने वाली राशि वाजिब थी कि नहीं ? और उक्त बजट का सही उपयोग हो रहा था कि नहीं ? इसका भी खुलासा अब जरूरी हो गया है।

साथ ही आपातकालीन प्रतिक्रिया : के अंतर्गत पुलों के गिरने के बाद आपातकालीन सेवाएं तुरंत सक्रिय हुईं थीं या नहीं ? और दुर्घटनाओं से बचाव के लिए कोई पूर्व योजना बनाई गई थी या नहीं ? और ऐसी विभत्स घटनाओं के आलोक में भविष्य के मद्देनजर समाधान और सुधार की दिशा में

ऐसी घटनाओं से निपटने और भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने की दिशा में

निर्माण की गुणवत्ता : में सुधार लाने और निर्माण सामग्री की नियमित जांच कराने और उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का इस्तेमाल सुनिश्चित कराने के साथ साथ निर्माण कार्य की कड़ी निगरानी के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन करने के साथ साथ समय-समय पर निरीक्षण और ऑडिट किए जाने की जरूरत महसूस की गई थी कि नहीं और

ठेकेदारों की जिम्मेदारी: के तहत ठेकेदारों के चयन में पारदर्शिता बरती गई थी कि नहीं , ठेकेदारों की जिम्मेदारी तय की गई थी कि नहीं और लापरवाही बरतने वालों पर सख्त कार्रवाई के नियम शर्त में दिखाई गई थी या नहीं। और

समुचित बजट प्रबंधन : के अंतर्गत बजट का सही उपयोग को सुनिश्चित कराया गया था कि नहीं और निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार पर सख्त रोक लगाने की दिशा में सख्त कार्रवाई के शर्त लागू किए गए थे कि नहीं , इन सभी बिंदुओं पर खुलासा बेहद जरूरी है।

बिहार में पुलों के गिरने की घटनाएं राज्य सरकार की कार्यकुशलता पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इन घटनाओं की गंभीरता को समझते हुए तुरंत सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके और जनता का विश्वास बहाल किया जा सके।

ऐसा इसलिए यहां पर कहा जा रहा है क्योंकि सीमांचल के किशनगंज स्थित सत्तारूढ़ दल के ही एक नेता टीटू बड़बाल उर्फ अनवर अली और विपक्षी दल राजद के एक नेता एम के रिजवी उर्फ नन्हा मुश्ताक ने मीडिया के समक्ष खुले तौर पर बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग के चीफ इंजीनियर को इसका जिम्मेवार ठहराते हुए डंके की चोट पर कहा है कि इस चीफ इंजीनियर के रहते हुए किसी भी तरह की ठीकेदारी के लिए कार्यानुभव प्रमाणपत्रों की नहीं बल्कि नोटों से भरे थैली की जरूरतें रही हैं और यही नीति डायन बनकर बिहार की पुलों को एक एक करके निगलती जा रही है।