नेपाल में हो रही भारी बारिश की पानी से सीमांचल की नदियों में आया उफान
नेपाल में भारी बारिश के कारण कोशी, महानंदा, कनकई, परमान, पनार, डोंक, मैची, बूढ़ी, बकरा आदि सीमांचल की नदियों में जलस्तर बढ़ गया है, जिससे बाढ़ और कटाव का खतरा बढ़ गया है। नेपाली नदियों का पानी सीमांचल की नदियों में आने से जलप्लावित हो गई हैं और कटाव बढ़ रहा है। यह त्रासदी हर साल बरसात के मौसम में सीमांचल के लिए खतरा बनती है। सबसे खतरनाक नदियों में महानंदा, कनकई, डोंक, परमान, बकरा और मैची शामिल हैं। इन नदियों का टेढ़ा-मेढ़ा बहाव गांवों और खेतों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे सैकड़ों गांव और खेतिहर भूमि नदियों में समा चुके हैं। राजनीतिक वादों के बावजूद समस्या का समाधान नहीं हुआ है और सीमांचल बाढ़ और कटाव से प्रभावित बना हुआ है। इस साल की बाढ़ की आशंका से लोग बहुत डर रहे हैं क्योंकि बारिश से पहले ही नदियां जलप्लावित हो चुकी हैं।

चारो ओर बाढ़ और कटाव लीला का दिखने लगा असर
नदियों की धार गांवों को लीलने पर हुई उतारू : जनता भयाकुल
सीमांचल (विशाल/पिंटू)
कोशी , महानंदा , कनकई , परमान , पनार , डोंक , मैची , बूढ़ी , बकरा , इत्यादि सीमांचल से होकर बहने वाली नदियों के जलस्तर में आई उफान के कारण चारो तरफ बाढ़ और कटाव का भारी खतरा उत्पन्न हो गया है।
नेपाल में हो रही भारी बारिश की वजह से नेपाल की पहाड़ी नदियों का बेशुमार पानी इस सीमांचल की नदियों में आने के कारण सीमांचल की नदियां पूरी तरह से जलप्लावित हो गई है और उसकी धार में आई तेजी के कारण सीमांचल की नदियां जिस ओर से भी बह रही है उस ओर कटाव लीला को अंजाम देती जा रही है।
सीमांचल की यह त्रासदी सालाना त्रासदी बनी हुई है जो इस सीमांचल में बरसात का अनुपात शून्य रहने के बावजूद भी कहर बरपाने से बाज नहीं आती है।
कारण में स्पष्ट है नेपाली नदियों की बेशुमार पानी का सीमांचल की नदियों में धड़ल्ले से उतरना।
सीमांचल की सबसे खतरनाक नदियों में महानंदा , कनकई , डोंक , परमान , बकरा और मैची नदियां शुमार रहीं हैं।
सारी नदियां अपनी लीक से ही बहती है लेकिन सीमांचल की कनकई नदी की बहाव सांपों की भांति टेढ़ा मेढ़ा होने के कारण इसकी कटाव लीला भी लीक से हटकर टेढ़ी मेढ़ी ही होती है और तब इस नदी की उस टेढ़ी मेढ़ी कटाव लीला का असर सीधे गांवों और बासिंदों पर पड़ता है।
आंकड़े बताते हैं कि इस तरह की कटाव लीला का शिकार हो कर सीमांचल के सैकड़ों गांव अब तक नदियों की गर्भ में समा चुके हैं। सैकड़ों एकड़ की खेतिहर भूमि भी नदियां लील चुकी है और बताया जाता है कि वर्षों से चली आ रही ऐसी त्रासदी के कारण विस्थापित हो कर अन्यत्र बसने वाले लोगों के द्वारा जो जमीन जगह बसने और खेती के लिए खरीदे जाते हैं वह भी आने वाले अगले कुछ वर्षों के भीतर ही नदियों की खुराक बन जाती है और यह सिलसिला बदस्तूर इस सीमांचल में वर्षो से जारी रहती आ रही है।
राजनीतिक दलों के नेताओं , जन प्रतिनिधियों से लेकर बिहार और केन्द्र की सरकारों ने सीमांचल वासियों को बचाने का वायदा करके सीमांचल वासियों के वोटों का हरण किया , कभी महानंदा बेसिन योजना के नाम पर ठगा तो कभी बांधों के पुख्ता निर्माण के नाम पर ठगा , लेकिन , कोई योजना साकार नहीं हो पाया।
लिहाजा , संपूर्ण सीमांचल बाढ़ ग्रस्त और कटाव ग्रस्त क्षेत्र की फेहरिस्त से अब तक बाहर नहीं निकल पाया।
इस बार की बाढ़ की आशंका से सीमांचल के लोगों में सर्वाधिक खौफ इसलिए पनपा है कि इस बार सीमांचल में बरसात की बारिश से काफी पहले से ही सीमांचल की सारी नदियां जलप्लावित हो गई थी और अब जब वास्तविक बरसाती बारिश की शुरुआत हो गई है तो फिर इस क्षेत्र की नदियों में पानी का उफान किस तरह का हो सकता है इस बात का अंदाजा लगा कर सीमांचलवासी हरेक पल भय और दहशत में डूबते चले जा रहे हैं।