सीमांचल चुनाव 2025: निर्दलीय प्रत्याशियों का जलवा, कनीज फातमा बनीं भाजपा की चुनौती

सीमांचल के विधानसभा चुनावों में इस बार निर्दलीय प्रत्याशी परंपरागत दलों के लिए चुनौती बनकर उभरे हैं। पूर्णिया सदर सीट पर निर्दलीय कनीज फातमा भाजपा उम्मीदवार विजय खेमका को कड़ी टक्कर दे रही हैं। कनीज फातमा ने खुद को "वास्तविक इंडीया महागठबंधन प्रत्याशी" बताते हुए जनता का व्यापक समर्थन हासिल किया है, जिसमें मुस्लिम समाज सहित अन्य वर्ग भी शामिल हैं। दूसरी ओर, कसबा में भी निर्दलीय प्रदीप दास और आफाक आलम के बीच सीधी टक्कर बन गई है। सीमांचल की जनता इस बार दलीय राजनीति से ऊपर उठकर स्थानीय और ईमानदार उम्मीदवारों को तरजीह दे रही है। बाहरी नेताओं के विरोध में “बाहरी भगाओ, क्षेत्र बचाओ” की भावना मजबूत हो रही है। राजनीतिक दलों में भीतरघात और टिकट बंटवारे में पैसे के प्रभाव ने जनता का विश्वास हिला दिया है। परिणामस्वरूप, सीमांचल में स्थानीय बदलाव का जुनून बिहार की सत्ता परिवर्तन की लहर पर भारी पड़ता दिख रहा है।

सीमांचल चुनाव 2025: निर्दलीय प्रत्याशियों का जलवा, कनीज फातमा बनीं भाजपा की चुनौती

सीमांचल  (अशोक कुमार)

पूर्णिया सदर विधानसभा क्षेत्र में पहली बार चुनाव मैदान में पूरी शिद्दत से डटी महिला निर्दलीय प्रत्याशी कनीज फातमा ने अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों को दिन में तारे दिखाना शुरू कर दिया है और इस क्रम में स्वयं को वास्तविक इंडी महागठबंधन की प्रत्याशी बताते हुए उन्होंने जनता के मिजाज़ को यह कहकर अपनी ओर आकर्षित करना शुरू किया है कि वह जीतेंगी तो महागठबंधन के सबल अंग के रूप में ही सदन में बरकरार रहेंगी और किसी कीमत पर इधर से उधर की कोई छलांग नहीं लगाएंगी।

निर्दलीय प्रत्याशी कनीज फातमा की इस हुंकार से कनीज फातमा के समर्थन में उमड़ रहे मतदाताओं के सैलाब के कारण पूर्णिया सदर की सीट पर एन डी ए गठबंधन के भाजपा प्रत्याशी से सीधी टक्कर में कनीज फातमा आ गई हैं।

राजनीतिक पंडितों ने भी इस बात को स्वीकारते हुए बताया है कि यह पहला मौका है जब पूर्णिया सदर की विधान सभा क्षेत्र की सीट से मुस्लिम समाज से आने वाली एक ऐसी हर दिल अजीज महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में इस बार आ डटी है , जिन्हें मुस्लिम समाज सहित अन्य सभी वर्गों का भी खुला सहयोग समर्थन मिल रहा है और उसी वजह से पूर्णिया सदर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और निर्दलीय प्रत्याशी की ही सीधी टक्कर की संभावना बलबती हो गई है।

इस क्रम में आगामी 11 नवंबर को होने वाले दूसरे चरण के बिहार विधान सभा चुनाव के मतदान की तैयारी के मद्देनजर सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल में जितनी शिद्दत से स्थानीय विधान सभा क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति में भी बदलाव लाने के जुनून पैदा हुए हैं ,  वैसी जुनून बिहार की सत्ता में बदलाव लाने को लेकर कोई खास दिखाई नहीं दे रही है।अर्थात , इस सीमांचल में बिहार की सत्ता में बदलाव लाने की जुनून की जगह सीमांचल की विधान सभा क्षेत्र की सीटों पर बदलाव लाने का जुनून जनता के मन मस्तिष्क पर ज्यादा सवार दीख रहा है।

बिहार की सत्ता पर अबकी बार पूर्ण बहुमत की एन डी ए सरकार स्थापित करने के जुनून सीमांचल में सुस्त पड़ते दिखाई दे रहे हैं और लोकल विधान सभा क्षेत्रों की सीटों पर बदलाव के जुनून तेज़ हो गए हैं।

यूं कहा जाय कि सीमांचल में इस बार जिस तरह से सीमांचल का मिजाज़ सक्रिय हुआ है उसके अंतर्गत सीमांचल में दलीय भावनाओं से ऊपर उठकर सिर्फ अच्छे और व्यावहारिक स्थानीय उम्मीदवारों को ही समर्थन देकर विधान सभा के सदन में भिजवाने का मन बनाया गया है।

मतलब स्पष्ट है कि बिहार के  राजनीतिक और चुनावी लक्ष्य के विपरीत की चुनावी हवाएं सीमांचल के चप्पे चप्पे चलने लगी है।

चर्चा है कि सीमांचल में इस तरह की संभावना तभी से बलबती हो गई थी जब दलीय उम्मीदवारों की चुनावी टिकट पैसों के बूते कन्फर्म किए जाने का हंगामा शुरू हुआ था और उसी के बाद से ऐसी स्थिति उभर कर सामने आनी शुरू हो गई थी।

जिसे देख सुन कर अब यही एहसास हो रहा है कि इस बार के बिहार विधान सभा चुनाव में राज्य की सत्ता में बदलाव की बजाय सीमांचल के लोग अपने लोकल विधान सभा क्षेत्रों की सीटों पर बदलाव के प्रति उत्साहित हो गए हैं।

सबसे बड़ी बात सीमांचल क्षेत्र में यह है कि इस बार हरेक सीट से बाहरी नेता को खदेड़ देने की कबायद तेज़ हो गई है।

बाहरी भगाओ क्षेत्र बचाओ के नारों के साथ सीमांचल क्षेत्र की जनता कई विधान सभा सीटों पर अंदरूनी तौर एकजुट हो गई है।

हालांकि , मतदान की घड़ी निकट आते देख कर दलीय उम्मीदवारों द्वारा भी अपने बचाव के उपायों के लिए जी जान से हाथ पैर चलाने की कोशिश की जा रही है।

समर्थन जुटाने की कबायद को तेज करते हुए राजनीतिक दलों के नेताओं की चुनावी सभाओं को तेज कर दी गई है लेकिन जिन सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत की संभावना बलबती और सुनिश्चित होती जा रही है उन सभी सीटों पर खड़े दलीय उम्मीदवारों की हवा लगातार निकलती दिखाई दे रही है।

जानकारों के अनुसार , इस बार के बिहार विधान सभा चुनाव में भाजपा एनडीए गठबंधन को सबसे अधिक परेशानी दल के भीतर के नेताओं कार्यकर्ताओं से होने वाली भीतरघात की संभावना से बढ़ी हुई है।

बताया जाता है कि इस आशंका के मद्देनजर भाजपा एनडीए गठबंधन द्वारा देश भर के विभिन्न राज्यों के हिंदी भाषी मुख्यमंत्रियों , मंत्रियों , सांसदों और विधायकों को हरेक विधान सभा क्षेत्र में तैनात कर दिया गया है , जो भीतरघात पर उतारू पार्टी कार्यकर्ताओं समर्थकों और नेताओं को समझाबुझा कर पटरी पर लाने के प्रयास में लगे हुए हैं।

दूसरी ओर इसी तरह की स्थिति से इंडी महागठबंधन के उम्मीदवारों को भी जूझना पड़ रहा है और इसके आलाकमानों के द्वारा भी सीमांचल भर की विधान सभा क्षेत्र की सीटों पर निराश चल रहे अपने कार्यकर्ताओं नेताओं और समर्थकों को समझा बुझा कर पार्टी प्रत्याशियों की मदद करने की गुहार लगाई जा रही है और इसके लिए हरेक विधानसभा क्षेत्र में दिल्ली पटना से यूपी तक के पार्टी नेताओं की चुनावी सभाओं का दौर शुरू करा दिया गया है।

लेकिन , जिन जिन विधान सभा क्षेत्रों में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत की संभावना लगातार बलबती होती जा रही है , उन उन क्षेत्रों को लेकर चुनावी चर्चाओं का दौर संपूर्ण सीमांचल में तेज़ है।

पूर्णिया सदर विधानसभा क्षेत्र की सीट पर भाजपा प्रत्याशी विजय खेमका को सीधी टक्कर दे रही निर्दलीय प्रत्याशी कनीज फातमा के कारण भले ही भाजपा प्रत्याशी विजय खेमका की जीत की संभावना बलबती होती जा रही हो , लेकिन , इतना तो तय हो ही गया है कि इस सीट पर इंडी महागठबंधन की संभावना किसी भी ओर से दिखाई नहीं दे रही है।