इज़राइल-गाजा युद्ध: एक साल बाद के हालात और नेतन्याहू की जिद का परिणाम
इज़राइल और गाजा के बीच जारी युद्ध ने एक साल पूरा कर लिया है, लेकिन इसका कोई सार्थक परिणाम नहीं दिख रहा है। इज़राइल की अर्थव्यवस्था और समाज पर इस युद्ध का भारी असर पड़ा है। पेशेवर और कारोबारी लोग, जो पहले इज़राइल की उन्नति और तकनीकी विकास का हिस्सा थे, अब देश छोड़कर जा रहे हैं। इज़राइल की रक्षा प्रणाली, जिसे मजबूत माना जाता था, हाल के हमलों के बाद कमजोर साबित हुई है, खासकर ईरान और हमास के हमलों के बाद। इसके अलावा, इज़राइल का निर्माण और व्यापार क्षेत्र भी ठप पड़ गया है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। बेंजामिन नेतन्याहू की नीतियों को लेकर देश के भीतर विरोध बढ़ रहा है, लेकिन सरकार अब भी अपनी आक्रामक रणनीति पर अड़ी हुई है। ईरान और लेबनान जैसे देशों के साथ तनाव बढ़ रहा है, और इज़राइल के अंदर भी लोग सरकार से उम्मीद खो रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या इज़राइल इस जंग को लंबा खींचेगा या फिर सीज़फायर के लिए तैयार होगा।
फैसल सुल्तान
गाजा पर इजरायली हमले का एक साल पूरा हो चुका है। इस पूरे समय के दौरान, दुनिया भर में जो स्थिति उत्पन्न हुई, वह सभी के सामने है। इज़राइल इस युद्ध को खींचते हुए अपनी जिद पर अड़ा हुआ है, और इस जिद की भारी कीमत इज़राइल खुद और उसके नागरिक चुका रहे हैं। वे नागरिक जो विभिन्न क्षेत्रों में प्रोफेशनल्स थे और इज़राइल की तरक्की के साथ अपने व्यापार को बढ़ाने के प्रयास में लगे थे, अब इस युद्ध की लंबाई से त्रस्त होकर इज़राइल छोड़ रहे हैं। इज़राइल जो दुनिया भर में अपनी तकनीकी, व्यापारिक और रक्षा ताकत की गाथा गाया करता था, अब उन्हीं क्षेत्रों में पिछड़ता हुआ दिख रहा है।
इज़राइल का टेक्नोलॉजी और व्यापारिक साम्राज्य
इज़राइल एक छोटा सा देश होते हुए भी दुनिया भर में अपनी तकनीकी उपलब्धियों के लिए जाना जाता था। यह देश सिंचाई से लेकर रक्षा तकनीक तक हर क्षेत्र में अग्रणी था। इज़राइल ने दुनिया को यह भरोसा दिलाया था कि उसकी टेक्नोलॉजी सबसे उन्नत और उसका डिफेंस सिस्टम अभेद्य है। इसी तकनीक की बदौलत इज़राइल ने दुनिया के कई देशों से व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे। लेकिन गाजा पर हमले के बाद, इस जिद्दी युद्ध ने इज़राइल के तकनीकी और व्यापारिक साम्राज्य को झकझोर दिया है। एक के बाद एक हमलों के चलते, इज़राइल के भीतर के व्यापारिक और पेशेवर समुदाय को यह महसूस होने लगा है कि इस युद्ध में बने रहना उनके लिए खतरनाक है। वे देख रहे हैं कि इस जंग का कोई अंत नहीं है और इसका कोई ठोस मकसद भी नजर नहीं आ रहा।
नेतन्याहू की आतंकी जिद और उसका प्रभाव
इस युद्ध को इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आतंकी जिद माना जा रहा है। नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के आरोप पहले से ही लगे हुए हैं, और इस जंग को एक माध्यम के रूप में देखा जा रहा है जिससे वे अपनी कुर्सी बचाए रखने का प्रयास कर रहे हैं। हालाँकि, अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस युद्ध से इज़राइल को कोई लाभ नहीं हो रहा, बल्कि इसका विपरीत असर पड़ रहा है। इज़राइल की जनता अब सरकार से निराश हो चुकी है और देश के भीतर राजनीतिक असंतोष बढ़ता जा रहा है। नेतन्याहू की सरकार ने जितने भी दावे किए थे, वह धीरे-धीरे ध्वस्त हो रहे हैं।
हमास और ईरान के हमले: इज़राइल की रक्षा प्रणाली पर सवाल
गाजा में हमास के आज़ादी के हमलों ने दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इज़राइल जैसा विस्तारवादी देश कैसे इस तरह के हमले का शिकार हो सकता है। लेकिन जब ईरान ने इज़राइल पर मिसाइलें दागीं, तो यह साफ हो गया कि इज़राइल की रक्षा प्रणाली और सेना की ताकत उतनी मजबूत नहीं है जितना वह दुनिया को दिखाने की कोशिश करता रहा है। नेतन्याहू और इज़राइल की सुरक्षा व्यवस्था पर अब सवाल उठ रहे हैं, और इज़राइल की जनता के भीतर गुस्सा और निराशा की भावना पनप रही है। हमास के हमलों ने इज़राइल के लोगों को आश्चर्यचकित किया, लेकिन ईरान के हमलों ने उनके भीतर डर और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है।
इज़राइल की आर्थिक स्थिति और प्रोफेशनल्स का पलायन
इस युद्ध के चलते, इज़राइल की आर्थिक स्थिति भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। इज़राइल के पेशेवर और कारोबारी अब अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। तेल अवीव और अन्य प्रमुख शहरों में स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि लोग इज़राइल छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। एक रिपोर्टर ने बीबीसी फारसी से यह बयान दिया कि तेल अवीव के लोग अब अपने भविष्य को लेकर किसी उम्मीद में नहीं हैं। यही कारण है कि कई पेशेवर इज़राइल छोड़कर दूसरे देशों में बसने की कोशिश कर रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि इज़राइल की अर्थव्यवस्था, खासकर कंस्ट्रक्शन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर, पूरी तरह से ठप हो गया है।
इज़राइल के विभिन्न उद्योग जो पहले विश्व भर से प्रोफेशनल्स को आकर्षित करते थे, अब जंग की स्थिति के कारण लोगों को खींचने में असफल हो रहे हैं। इज़राइल के व्यापारी और उद्योगपति अब इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए देश छोड़ने को मजबूर हो गए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस जंग का कोई समाधान नहीं निकलने वाला है। इससे इज़राइल के व्यापार पर गहरा असर पड़ा है, और इसके पोर्ट्स और कंस्ट्रक्शन साइट्स खाली पड़ी हैं।
नेतन्याहू की सरकार और विरोध
इस युद्ध ने बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच नेतन्याहू को देश के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है। इज़राइल के नागरिक जो पहले नेतन्याहू का समर्थन कर रहे थे, अब सड़कों पर उतर कर उनके खिलाफ विरोध कर रहे हैं। देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें लोगों की मांग है कि इस जंग को तुरंत रोका जाए और जो अपनी हम्मास से युद्ध बंदी और इजराइली बंधक के लिए कोशिश किया जाये ।
लेकिन नेतन्याहू अब भी अपनी जिद पर अड़ा हुआ हैं, और उन्होंने इस जंग को समाप्त करने के बजाय लेबनान, सीरया, हुथी और ईरान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस स्थिति में, इज़राइल की जनता को अब सरकार से कोई उम्मीद नहीं बची है। इसके अलावा, ईरान और लेबनान के हमलों के बाद, खाड़ी देशों ने भी इज़राइल के खिलाफ एकजुट होना शुरू कर दिया है। फ्रांस और अमेरिका ने भी इस जंग में इज़राइल का पूरी तरह समर्थन करने से अपने हाथ खींच लिए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया और इज़राइल का अकेलापन
गाजा पर हुए हमले और इसके बाद लेबनान तथा ईरान के साथ चल रही जंग के कारण इज़राइल अब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भी अकेला पड़ता दिख रहा है। कई देशों ने खुलकर इज़राइल की आलोचना की है, और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) जैसे संस्थान भी इज़राइल के कदमों को गलत ठहरा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने भी इज़राइल के खिलाफ कड़े बयान दिए हैं, और इसे मानवता पर हमले के रूप में देखा जा रहा है।
ईरान और लेबनान के साथ चल रहे संघर्ष के बीच, गल्फ कंट्रीज (खाड़ी देश) ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि वे इस संघर्ष में लेबनान के साथ खड़े हैं। हिज़बुल्ला के साथ हुए संघर्ष में इज़राइल को बड़ा नुकसान हुआ है, जिसे छिपाने का प्रयास किया गया। लेकिन बीबीसी की रिपोर्टों के माध्यम से यह सच्चाई अब सबके सामने आ गई है कि इज़राइल की जनता अब अपनी सरकार से पूरी तरह निराश है।
इज़राइल के भविष्य पर संकट
गाजा पर हमले के एक साल बाद की स्थिति इज़राइल के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है। एक ओर देश के भीतर जनता का असंतोष और पेशेवरों का पलायन है, तो दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इज़राइल का अकेलापन बढ़ता जा रहा है। नेतन्याहू की सरकार अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां से वापस लौटना मुश्किल होता जा रहा है। इस जंग का कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा है, और यदि नेतन्याहू ने जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो इज़राइल की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति और भी अधिक संकटपूर्ण हो सकती है।
इस जंग के खत्म होने की उम्मीद कम है, और जब तक नेतन्याहू अपनी जिद नहीं छोड़ते, तब तक यह संघर्ष और लंबा खिंच सकता है। इज़राइल के भीतर और बाहर लोग अब यह सवाल कर रहे हैं कि क्या इस जंग का कोई अंत होगा, या फिर यह देश को पूरी तरह से बर्बाद कर देगा।