ईरान ने भेद दिया इजराइल का शैतानी कवच: पश्चिम एशिया में बदलते समीकरण

पश्चिम एशिया में ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है, जिससे क्षेत्रीय समीकरण बदल रहे हैं। ईरान की ओर से किए गए मिसाइल हमलों ने इज़राइल के आयरन डोम रक्षा प्रणाली को असफल साबित कर दिया है, जिससे इज़राइल की सैन्य कमजोरी उजागर हुई है। नेतन्याहू के नेतृत्व को भी कमजोर माना जा रहा है, और पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका, की भूमिका इस संघर्ष में सीमित होती दिख रही है। ईरान को क्षेत्रीय शक्तियों जैसे हमास और हिज़बुल्लाह का समर्थन प्राप्त है, जिससे उसकी रणनीतिक स्थिति मजबूत हो रही है। इज़राइल पर बढ़ते क्षेत्रीय दबाव और ईरान की बढ़ती प्रभुत्व के बीच, वैश्विक स्तर पर संभावित युद्ध की आशंका पैदा हो गई है। लेख में अमेरिका, रूस और चीन की भूमिकाओं पर भी चर्चा की गई है, जो इस क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। पश्चिम एशिया की राजनीति तेजी से बदल रही है, और ईरान अपनी रणनीति के तहत इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल हो रहा है, जबकि इज़राइल को अपने सैन्य दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ रहा है।

ईरान ने भेद दिया इजराइल का शैतानी कवच: पश्चिम एशिया में बदलते समीकरण

फैसल सुल्तान

ईरान और इजराइल के बीच तनावपूर्ण संबंध और हालिया संघर्ष ने पश्चिम एशिया की राजनीति को एक नया मोड़ दिया है। इस लड़ाई में ईरान के सीधे शामिल होने से स्थिति और गंभीर हो गई है। ईरान के मिसाइल हमलों ने यह साफ कर दिया कि अब यह संघर्ष केवल इजराइल और फिलिस्तीन या हमास तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें एक बड़ा क्षेत्रीय और वैश्विक घटक शामिल हो चुका है।

ईरान का सीधा हमला और उसकी रणनीति

ईरान ने हाल ही में इजराइल पर 200 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी, जिनमें से अधिकांश इजराइल के महत्वपूर्ण सैन्य प्रतिष्ठानों पर गिरीं। इस हमले का मकसद इजराइल को उसकी आक्रामकता का जवाब देना था। ईरान के राष्ट्रपति पजशकियान ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह हमला इजराइल की आक्रामकता का जवाब है, और यदि इजराइल ने पलटवार की कोशिश की, तो ईरान और भी कड़े जवाबी हमले करेगा। इस बयान से साफ है कि ईरान अब किसी भी तरह की सैन्य चुनौती को हल्के में नहीं ले रहा है।

ईरान ने इस हमले के जरिए इजराइल को यह संदेश दिया कि वह न सिर्फ अपनी सुरक्षा बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी गंभीर है। ईरान के मिसाइल हमले केवल इजराइल के सैन्य ठिकानों पर ही केंद्रित थे, जबकि इजराइल ने हमेशा से अपने हमलों में नागरिकों को निशाना बनाया है। ईरान की इस नैतिकता ने उसे पश्चिमी देशों की आलोचनाओं से ऊपर खड़ा कर दिया है, और इसने इजराइल को रणनीतिक रूप से कमजोर कर दिया है।

इजराइल की सैन्य ताकत पर सवाल

इजराइल के आयरन डोम, डेविड सिलिंग और एरो रक्षा प्रणाली को इस हमले के बाद गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ईरान के मिसाइल हमलों ने इजराइल की सुरक्षा प्रणालियों की कमजोरी को उजागर किया। इजराइल की सुरक्षा प्रतिष्ठानों में मची अफरा-तफरी और उसके नागरिकों का बंकरों में छिपना और उनके प्रधानमन्त्री नेतन्याहू का भागते हुए बनकर में छिपना इस बात का प्रतीक है कि इजराइल को अब अपनी सैन्य ताकत का पुनर्मूल्यांकन करना होगा।

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू ने हमले से एक दिन पहले ही ईरान के प्रमुख नेताओं को मारने की धमकी देचुका था और आज हमले के बाद बाद ईरान को इसकी भारी कीमत चुकाने की धमकी दी, लेकिन इस बार यह धमकी पहले की तरह प्रभावी नहीं रही। इजराइल के सीमित ग्राउंड ऑपरेशन और उसके सैनिकों की हताहत होने की खबरें यह साबित करती हैं कि इजराइल को अब ईरान के साथ जमीनी लड़ाई में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

जब तक यह इस्राएल नही मानेगा अपनी हरकत से यह ले डूबेगा किसी न किसी को जी देखते जाओ इसका साथ देने वालो का भी पत्ता कट जाएगा जब सब देश किसी न किसी के खिलाफ होंगे यह पक्का युद्ध की ओर संकेत है जो पीछे ले जाएगा हर देश को

अमेरिका की भूमिका और उसकी सीमाएं

इस पूरे संघर्ष में अमेरिका की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। ईरान के हमले के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने नेशनल सिक्योरिटी टीम के साथ आपातकालीन बैठक की, जिसमें इजराइल की मदद करने का फैसला लिया गया। हालांकि, अमेरिका द्वारा भेजी गई उद्ध के हथियार, गोला और बारूद सहायता इजराइल के लिए पर्याप्त साबित नहीं हुई। यह साफ हो चुका है कि इजराइल को मिलने वाली अमेरिकी सैन्य सहायता उसकी समस्याओं को हल करने में असमर्थ है।

अमेरिका की स्थिति इस लड़ाई में और भी जटिल हो गई है। इजराइल का साथ देना अब अमेरिका के लिए आर्थिक रूप से भारी पड़ रहा है। इसके अलावा, अमेरिका को अब पश्चिम एशिया में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए अन्य देशों जैसे रूस और चीन से भी निपटना होगा। ईरान का सीधा हमला और उसकी क्षेत्रीय समर्थक (हिजबुल्लाह, हमास, हुथी और अन्य सहयोगी समूह) यह दिखाती है कि अब अमेरिका के लिए इजराइल का समर्थन इतना आसान नहीं रहेगा।

इजराइल की राजनीति में उथल-पुथल

ईरान के हमले के बाद इजराइल के अंदरूनी राजनीतिक माहौल में भी हलचल देखने को मिल रही है। नेतनयाहू सरकार पहले से ही कई आंतरिक विवादों का सामना कर रही थी, और अब इस हमले ने उनके नेतृत्व पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। इजराइल के नागरिकों के बंकरों में छिपने के लिए मजबूर होने से नेतनयाहू की लोकप्रियता पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।

इजराइल का मीडिया भी इस बात पर जोर दे रहा है कि नेतनयाहू की सरकार इस स्थिति को नियंत्रित करने में असफल रही है। इजराइल की सुरक्षा प्रणालियों के टूटने से यह साबित हो चुका है कि नेतनयाहू की सरकार के पास इस हमले का सामना करने की तैयारी नहीं थी। इजराइल की जनता अब अपने प्रधानमंत्री से जवाब मांग रही है, और यह स्थिति नेतनयाहू के लिए काफी मुश्किल साबित हो सकती है।

ईरान की नैतिक जीत और क्षेत्रीय समर्थन

ईरान की नैतिक जीत और क्षेत्रीय समर्थन का मुद्दा हाल के वर्षों में पश्चिम एशिया में उभरता हुआ एक महत्वपूर्ण विषय है। ईरान ने इजराइल के खिलाफ अपने हमलों में एक नैतिक दृष्टिकोण अपनाया है, जो न केवल उसकी रणनीतिक सोच को दर्शाता है, बल्कि उसे एक मजबूत क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने में भी मदद करता है। अपने हमलों के दौरान, ईरान ने जानबूझकर नागरिकों को निशाना बनाने से बचा, बल्कि इजराइल के सैन्य ठिकानों पर ध्यान केंद्रित किया। यह रणनीति न केवल उसे पश्चिमी देशों की आलोचनाओं से बचाने में सहायक सिद्ध हुई है, बल्कि इसके कारण उसे क्षेत्रीय समर्थन भी प्राप्त हुआ है।

लेबनान, यमन, गाजा और अन्य क्षेत्रों में ईरान के समर्थन में जश्न मनाया गया, जहां उसके समर्थक संगठनों और समूहों ने इस हमले को एक नैतिक जीत के रूप में देखा। यह समर्थन ईरान के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके माध्यम से वह अपनी स्थिति को और भी सुदृढ़ बना सकता है।

ईरान की यह नैतिकता और उसकी हमले की रणनीति एक स्पष्ट संदेश देती है कि वह विवादों को उकसाने के बजाय अपने विरोधियों को कूटनीतिक और नैतिक रूप से कमजोर करना चाहता है। इजराइल द्वारा हमास चीफ इस्माइल हानिया और हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरुल्लाह पर हमले के बावजूद, ईरान ने प्रतिक्रिया देने से परहेज किया। यह चुप्पी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हो सकती है, जिसके तहत ईरान ने इजराइल के साथ सीधे टकराव से बचते हुए अपने क्षेत्रीय सहयोगियों को सशक्त करने का प्रयास किया।

इसके बावजूद, इजराइल ने लगातार ईरान और उसके सहयोगी संगठनों को उकसाने की कोशिश की। इजराइल ने न केवल हमास और हिजबुल्लाह पर हमले किए, बल्कि उसने तनाव को बढ़ावा देने के लिए आक्रामक रणनीतियां अपनाईं। इसका परिणाम यह हुआ कि विवाद और गहरा हो गया। इजराइल की ये हरकतें क्षेत्र में शांति स्थापित करने की किसी भी संभावना को क्षीण करती हैं। इसके बजाय, यह क्षेत्रीय तनाव को और भड़काने का काम कर रही हैं, जिससे भविष्य में और भी बड़े संघर्षों की आशंका उत्पन्न हो रही है। यह आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि यह स्थिति धीरे-धीरे विश्व युद्ध जैसी स्थिति की ओर बढ़ सकती है।

ईरान के हमले ने न केवल उसके क्षेत्रीय प्रभाव को मजबूत किया है, बल्कि उसने यह भी दर्शाया है कि वह एक ऐसी ताकत है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ईरान की स्थिति अब पहले से अधिक मजबूत हो गई है, विशेषकर उसके समर्थक समूहों जैसे हिजबुल्लाह और हमास के साथ। इन संगठनों ने ईरान की नैतिकता और रणनीति को सराहा है, और इस समर्थन ने लेबनान, गाजा, और यमन जैसे क्षेत्रों में भी ईरान की साख को और ऊँचा किया है।

इस क्षेत्रीय समर्थन का इजराइल और पश्चिमी देशों के लिए गंभीर नतीजे हो सकते हैं। अब उन्हें केवल ईरान से ही नहीं, बल्कि उसके सहयोगी समूहों और संगठनों से भी निपटना होगा। ईरान की यह कूटनीति, जिसमें उसने अपने हमलों को केवल सैन्य ठिकानों तक सीमित रखा और नागरिकों पर हमला नहीं किया, उसे वैश्विक मंच पर एक नैतिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है। पश्चिमी देशों की ओर से अपेक्षित आलोचना भी इस बार सीमित रही है, क्योंकि ईरान ने अपने कदमों को संयमित और रणनीतिक रूप से सही ढंग से उठाया है।

इसके साथ ही, इस नैतिक दृष्टिकोण ने ईरान के लिए उन देशों में समर्थन बढ़ाया है, जो इजराइल की आक्रामक नीतियों से पहले ही असंतुष्ट हैं। लेबनान, यमन, गाजा, और अन्य अरब देशों में ईरान के पक्ष में उठे समर्थन के स्वर यह दर्शाते हैं कि क्षेत्रीय राजनीति में ईरान की स्थिति मजबूत हो रही है। इससे ईरान को रणनीतिक लाभ मिल सकता है, क्योंकि यह स्थिति पश्चिमी देशों और इजराइल के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करती है।

आखिरकार, ईरान की नैतिक जीत और उसका क्षेत्रीय समर्थन न केवल उसकी रणनीतिक सोच को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि वह अपने विरोधियों के खिलाफ एक लंबी अवधि की योजना के तहत काम कर रहा है। इजराइल द्वारा किए गए हमलों और बढ़ते विवाद के बावजूद, ईरान ने संयमित दृष्टिकोण अपनाया है। यह स्थिति क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा सकती है, लेकिन यह भी संभव है कि इस स्थिति से ईरान को दीर्घकालिक लाभ हो।

कुल मिलाकर, ईरान की नैतिक दृष्टिकोण और उसकी क्षेत्रीय रणनीति ने उसे पश्चिम एशिया में एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया है, जो न केवल इजराइल, बल्कि पश्चिमी देशों के लिए भी चिंता का विषय बनती जा रही है।

वैश्विक समीकरण और भविष्य की संभावनाएं

ईरान और इजराइल के बीच इस संघर्ष ने वैश्विक समीकरणों को भी बदल दिया है। अमेरिका, रूस, और चीन जैसे बड़े देशों को अब इस स्थिति में अपनी रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करना होगा। यदि यह संघर्ष बढ़ता है, तो यह तीसरे विश्व युद्ध का भी रूप ले सकता है, क्योंकि इसमें कई बड़े देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल हो सकते हैं।

अमेरिका के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, क्योंकि वह इजराइल का समर्थन करता है, लेकिन साथ ही उसे अपने अन्य सहयोगियों के साथ संतुलन बनाए रखना है। वहीं, चीन और रूस ने इस संघर्ष में अभी तक कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं किया है, लेकिन उनका प्रभाव भी भविष्य में बढ़ सकता है।

निष्कर्ष

ईरान और इजराइल के बीच यह संघर्ष केवल एक क्षेत्रीय लड़ाई नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संघर्ष का संकेत भी हो सकता है। इस लड़ाई में ईरान की सीधी भागीदारी ने इजराइल को रणनीतिक रूप से कमजोर कर दिया है और अमेरिका के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। यह स्थिति पश्चिम एशिया की राजनीति को एक नए मोड़ पर ले जा रही है, और आने वाले दिनों में इसके और भी गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

ईरान ने इस संघर्ष में नैतिकता, क्षेत्रीय समर्थन, और रणनीतिक क्षमता के साथ अपनी स्थिति मजबूत की है, जबकि इजराइल को अपनी सुरक्षा रणनीतियों और राजनीतिक नेतृत्व पर पुनर्विचार करना होगा। इस लड़ाई का परिणाम चाहे जो भी हो, लेकिन यह साफ है कि इससे पश्चिम एशिया की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आने वाला है।