बिहार में बाढ़ की त्रासदी: अव्यवस्था और लापरवाही

बिहार की बाढ़ हर साल एक बड़ी त्रासदी बनकर उभरती है। जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं। इस बार 16 जिलों में करीब 4 लाख लोग बाढ़ से त्राहिमाम हैं, कोसी, गंडक, बागमती और महानंदा समेत कई नदियां उफान पर हैं । लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस समाधान नहीं दिख रहा। बिहार में डबल इंजन सरकार होने के बावजूद, बाढ़ की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे और राजनीतिक प्राथमिकताओं से सरकार की उदासीनता साफ झलकती है। कोसी नदी का कहर और तटबंधों की खराब स्थिति समस्या को और बढ़ा रहे हैं। हर साल बाढ़ से बिहार की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है, और जनता की स्थिति दयनीय हो जाती है। स्थायी समाधान के लिए नदियों को जोड़ने और जल निकासी की प्रभावी व्यवस्था की जरूरत है, ताकि बाढ़ की त्रासदी से निपटा जा सके।

बिहार में बाढ़ की त्रासदी: अव्यवस्था और लापरवाही

अशोक/विशाल

बिहार एक बार फिर भीषण बाढ़ की चपेट में है। राज्य के 16 जिलों में लगभग 4 लाख लोग बाढ़ की विभीषिका से प्रभावित हैं और त्राहिमाम हैं, कोसी, गंडक, बागमती और महानंदा समेत कई नदियां उफान पर हैं ।  यह कोई नई स्थिति नहीं है; हर साल बिहार के लोगों को इस विनाशकारी प्राकृतिक आपदा से जूझना पड़ता है, लेकिन इस बार हालात और भी भयावह नजर आ रहे हैं। यहां एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर बिहार कब तक इस बाढ़ के कहर को सहता रहेगा, और सरकारें कब तक अपनी आंखें बंद रखे रहेंगी?

बाढ़ की विभीषिका और सरकारी उदासीनता

बिहार के 16 जिलों में बाढ़ की स्थिति इतनी गंभीर है कि लाखों लोग बेघर हो चुके हैं, कई की जानें चली गईं हैं, और कई परिवारों का सब कुछ बाढ़ के पानी में समा गया है। हर साल की तरह इस बार भी नेपाल की ओर से पानी छोड़े जाने की वजह से बाढ़ का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति 1987 और 2008 की विनाशकारी बाढ़ से भी भयावह हो सकती है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की उदासीनता देखिए, जिनके लिए यह त्रासदी केवल एक 'दैनिक घटना' बनकर रह गई है। बिहार में कोसी और गंडक सहित सभी प्रमुख नदियां उफान पर हैं। हालांकि, राहत वाली बात है कि वीरपुर के कोसी बैराज, वाल्मीकिनगर के गंडक बैराज पर जलस्राव में कमी आयी है। प्रदेश के 16 जिलों के 31 प्रखंड के चार लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। जल संसाधन विभाग के मुताबिक, वीरपुर बैराज में कोसी का जलस्राव सोमवार को सुबह छह बजे 2,65,530 क्यूसेक था जबकि 10 बजे यह घटकर 2,54,385 क्यूसेक हो गया है। इसी तरह वाल्मीकिनगर बैराज में सुबह 10 बजे गंडक का जलस्राव भी 1,55,600 लाख क्यूसेक है। इस बीच, प्रदेश की सभी प्रमुख नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।

डबल इंजन सरकार की निष्क्रियता

बिहार में "डबल इंजन" की सरकार है – यानी केंद्र में भी और राज्य में भी एक ही गठबंधन की सरकार है। इसके बावजूद बाढ़ की समस्या से निपटने में सरकार पूरी तरह से विफल साबित हो रही है। बिहार से NDA के कुल 40 में से 30 लोकसभा सांसद, 9 राज्यसभा सांसद, केंद्रीय मंत्रिमंडल में आधा दर्जन मंत्री, और राज्य में दो उपमुख्यमंत्री के बावजूद बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। बाढ़ के कारण हजारों मकान बर्बाद हो गए हैं, लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस सहायता नजर नहीं आ रही है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा, राजनीतिक प्राथमिकताएं और बाढ़ के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का इन दिनों दिल्ली दौरा राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में बिहार भीषण बाढ़ की चपेट में है और राज्य की एक बड़ी आबादी इस प्राकृतिक आपदा से जूझ रही है। बाढ़ के कारण लाखों लोग बेघर हो चुके हैं, फसलें नष्ट हो गई हैं, और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। ऐसे समय में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल्ली जाना निश्चित रूप से राजनीतिक दृष्टिकोण से अहम है, पर यह सवाल भी उठता है कि क्या बाढ़ प्रभावित जनता की समस्याएं उनकी प्राथमिकता में हैं?

नीतीश कुमार का यह दिल्ली दौरा ऐसे वक्त हो रहा है जब बिहार के 12 से अधिक जिले बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। आम जनता अपने घरों, खेतों और आजीविका को खो चुकी है। सरकारी सहायता के अभाव में लोग बेबस महसूस कर रहे हैं। हर साल बाढ़ बिहार के लिए एक गंभीर समस्या बनकर उभरती है, लेकिन इस बार की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। बाढ़ की वजह से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यही नहीं, बाढ़ के कारण स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और बुनियादी सुविधाएं भी प्रभावित हुई हैं।

दूसरी ओर, नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा राजनीतिक रणनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दिल्ली में वे कई बड़े नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं और यह अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि वे देश की आगामी राजनीतिक दिशा में अपनी भूमिका तय करने के लिए विचार-विमर्श कर रहे हैं। उनका यह दौरा उस समय हो रहा है जब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना आए थे और उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं से मुलाकात की थी। जेपी नड्डा ने अपने दौरे के दौरान संगठन की मजबूती और चुनावी तैयारियों पर जोर दिया। इससे यह साफ हो जाता है कि भाजपा भी अपने राजनीतिक समीकरणों को दुरुस्त करने में जुटी हुई है।

नीतीश कुमार के दिल्ली दौरे को लेकर बिहार में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई लोगों का मानना है कि इस दौरे से साफ हो गया है कि सरकार का ध्यान आपदा प्रबंधन से अधिक राजनीतिक समीकरणों पर है। वे लोग जो बाढ़ से प्रभावित हैं, उनकी समस्याएं और पीड़ा इस समय दरकिनार हो गई हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब राज्य में इतनी बड़ी आपदा आई हुई है, तब भी मुख्यमंत्री अपनी राजनीतिक छवि को सुदृढ़ करने में व्यस्त हैं।

हालांकि, नीतीश कुमार के समर्थक यह दावा कर रहे हैं कि उनका दिल्ली दौरा राज्य के हित में है और वे केंद्र सरकार से बाढ़ राहत के लिए अधिक सहायता की मांग कर सकते हैं। लेकिन आलोचक इसे केवल एक राजनीतिक कदम मानते हैं, जिसका उद्देश्य आगामी चुनावों के मद्देनजर अपनी स्थिति को मजबूत करना है।

यह स्थिति बताती है कि जब आम जनता प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही है, तब राजनीति के शीर्ष नेता अपनी राजनीतिक संभावनाओं को साधने में व्यस्त हैं। बिहार में बाढ़ कोई नई समस्या नहीं है, हर साल यह राज्य के लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बनती है। इस बार भी बिहार की जनता यही उम्मीद कर रही थी कि सरकार इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने के लिए आगे आएगी। लेकिन नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा यह साबित करता है कि राजनीतिक प्राथमिकताएं अब भी जनता की समस्याओं से ऊपर हैं।

इस प्रकार, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा राज्य की बाढ़ समस्या से कहीं अधिक राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है। यह दौरा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारे नेताओं की प्राथमिकताएं क्या हैं – जनता की समस्याएं या उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं?

कोसी नदी का कहर और सरकारी लापरवाही

बिहार के लिए कोसी नदी हर साल एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आती है। कोसी नदी में नेपाल से पानी छोड़े जाने के कारण बाढ़ की स्थिति और विकराल हो जाती है। इस बार कोसी बराज, वीरपुर से 6,61,295 क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जो 1968 के बाद सर्वाधिक है। जल संसाधन विभाग तटबंधों की सुरक्षा के लिए लगा तो है, लेकिन काम में लापरवाही साफ नजर आ रही है। अररिया के जोगबनी रेलवे स्टेशन की पटरियां बाढ़ के पानी में डूब गईं, जिससे ट्रेन सेवाएं बाधित हो गईं हैं। यह केवल एक उदाहरण है, जबकि ऐसी घटनाएं हर जिले में आम हैं।

16 जिलों के 4 लाख लोग प्रभावित

बिहार में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है, जहां 16 जिलों के लगभग 4 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, गंडक, कोसी, बागमती, महानंदा और अन्य नदियों के जलस्तर में हुई वृद्धि के कारण स्थिति और भी विकट हो गई है। बाढ़ से प्रभावित जिलों में पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, अररिया, किशनगंज, गोपालगंज, शिवहर, सीतामढ़ी, सुपौल, सिवान, मधेपुरा, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, मधुबनी, दरभंगा, सारण और सहरसा शामिल हैं। इन जिलों के 31 प्रखंडों में 152 ग्राम पंचायतों के लोग बाढ़ की मार झेल रहे हैं। बाढ़ के कारण हजारों लोग बेघर हो गए हैं, और उनकी आजीविका पर भी असर पड़ा है। प्रशासन की ओर से राहत कार्य शुरू किए गए हैं, लेकिन प्रभावित क्षेत्रों में स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। पानी का स्तर लगातार बढ़ने से कई स्थानों पर सड़कों का संपर्क टूट गया है, जिससे लोगों को आने-जाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

नेपाल में भारी बारिश से बढ़ा जलस्तर

उल्लेखनीय है कि नेपाल में भारी वर्षा के कारण रविवार की सुबह पांच बजे कोसी बैराज, वीरपुर से 6,61,295 क्यूसेक जलस्राव हुआ था, जो 1968 के बाद सर्वाधिक है। जल संसाधन विभाग का दावा है कि तटबंधों की सुरक्षा के लिए जल संसाधन विभाग की टीमें दिन-रात तत्पर हैं। हालांकि कई तटबंधों के क्षतिग्रस्त होने के कारण कई जिलों में बाढ़ की स्थिति भयावह हो गई है।

सरकार की जिम्मेदारी और जनता की बेबसी

यह सवाल अब बड़ा बनता जा रहा है कि बिहार सरकार कब तक जनता को इस त्रासदी के बीच यूं ही छोड़ती रहेगी। नदियों को आपस में जोड़ने की योजना की बात वर्षों से चल रही है, लेकिन अब तक यह योजना कागजों से बाहर नहीं निकल पाई है। अगर यह योजना पूरी हो जाती, तो शायद बाढ़ का पानी एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचकर पूरे देश के लिए वरदान साबित हो सकता था। लेकिन लापरवाह सरकारें इस ओर ध्यान नहीं दे रही हैं।

जनता को भी इस मुद्दे पर जागरूक होना पड़ेगा। जब वे अपने मतों से ऐसे नेताओं को चुनते हैं, जो आपदाओं के समय हेलीकॉप्टर से आकर केवल निरीक्षण करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं, तो यह उनकी भी जिम्मेदारी बनती है। बीते 20 वर्षों से बिहार के लोग सिर्फ वादे सुनते आ रहे हैं, लेकिन समस्याओं का कोई स्थायी समाधान नहीं मिला है। यह कोई छोटा समय नहीं है। लेकिन हर बार नेता बस दौरा करके और वादा करके चले जाते हैं, और जनता फिर से उसी पीड़ा में लौट आती है।

एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें

बाढ़ से प्रभावित आबादी को सुरक्षित निष्क्रमित करने के लिए एनडीआरएफ की कुल 12 टीम एवं एसडीआरएफ की कुल 12 टीम तैनात की बात की जा रही है। इसके अतिरिक्त वाराणसी से एनडीआरएफ की तीन टीमों को बुलाया गया है।

बिहार की अर्थव्यवस्था पर बाढ़ का असर

बिहार पहले से ही देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है, और बाढ़ की समस्या इसे और बदतर बना देती है। हर साल बाढ़ के कारण किसानों की फसलें नष्ट हो जाती हैं, पशुधन मारे जाते हैं, और लोगों के घर तबाह हो जाते हैं। इस वजह से यहां की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ता है। बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियां ठप हो जाती हैं, जिससे बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती है। बाढ़ की वजह से लाखों लोग विस्थापित हो जाते हैं और सरकारी योजनाएं भी उन तक सही तरीके से नहीं पहुंच पातीं।

सरकार की योजनाओं की कमी और लापरवाही

हालांकि हर साल बाढ़ की समस्या आने के बावजूद सरकारें केवल अस्थायी राहत योजनाओं की घोषणा करती हैं। बाढ़ के पानी की निकासी के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है, तटबंधों की मरम्मत का काम समय पर नहीं होता, और आपदा प्रबंधन के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है। जिस समय जनता को मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उस समय नेता बड़े-बड़े बयानों में व्यस्त रहते हैं।

जनता का गुस्सा और सरकार की जवाबदेही

बाढ़ से प्रभावित लोग इस बार बेहद गुस्से में हैं। उनका गुस्सा जायज है क्योंकि हर साल बाढ़ का प्रकोप सहना उनके लिए जीवन का हिस्सा बन गया है। जब नेता चुनाव के समय हेलीकॉप्टर उतारते हैं, रैलियां करते हैं, वादे करते हैं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि वे आपदाओं के समय भी उतनी ही तत्परता से उनकी मदद के लिए आएंगे। लेकिन जब बाढ़ आती है, तो सरकारें नदारद हो जाती हैं। इस बार जनता ने सवाल करना शुरू कर दिया है – आखिर हम कब तक अपनी जिंदगी को ऐसे बर्बाद होते देखेंगे?

बिहार की समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान

बिहार की बाढ़ समस्या का समाधान केवल आपदा प्रबंधन के नाम पर राहत सामग्री बांटने से नहीं हो सकता। इसके लिए एक दीर्घकालिक और व्यापक नीति की आवश्यकता है। नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना को तुरंत अमल में लाना चाहिए। तटबंधों की स्थिति सुधारनी होगी, जल निकासी की व्यवस्था करनी होगी, और बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली को सुदृढ़ बनाना होगा ताकि समय रहते लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।

निष्कर्ष

बिहार की बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है, लेकिन इससे होने वाली बर्बादी को मानव निर्मित लापरवाही ने कई गुना बढ़ा दिया है। सरकारों की निष्क्रियता, योजनाओं की कमी, और जनता की उदासीनता – इन सभी ने मिलकर इस आपदा को एक स्थायी त्रासदी बना दिया है। बिहार के लोगों को अब जागरूक होना होगा, अपने नेताओं से जवाबदेही मांगनी होगी, और अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए एकजुट होकर खड़ा होना होगा। वरना हर साल बाढ़ का यह प्रलय आता रहेगा, और बिहार की धरती पर यही कहानी दोहराई जाती रहेगी।