दलित और दबंग के नाम पर उभरता संघर्ष: नवादा की घटना और दिल्ली तक फैली राजनीति

नवादा के कृष्णा नगर में हुई आगजनी की घटना ने राज्य में राजनीति का माहौल गरमा दिया। इसे दलित और दबंगों के संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन यह एक भूमि विवाद की बुनियाद पर खड़ी थी, जो दशकों से चल रही थी। 1995 से न्यायालय में लंबित इस विवाद में विभिन्न समुदायों के बीच जमीन के अधिकार को लेकर संघर्ष हो रहा था। जब हाल ही में नए भू-सर्वेक्षण के बाद कब्जा छुड़ाने की कोशिश की गई, तो यह हिंसक रूप ले लिया। राजनीतिक दलों ने इस घटना का लाभ उठाने की कोशिश की, जिससे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन पर सवाल उठने लगे। यह घटना दिखाती है कि वास्तविक मुद्दे को समझे बिना राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया जाता है, और इसके समाधान के लिए संवेदनशीलता और निष्पक्षता की आवश्यकता है।

दलित और दबंग के नाम पर उभरता संघर्ष: नवादा की घटना और दिल्ली तक फैली राजनीति

कौसर सुल्तान, अध्यक्ष, जमुई जिला माइनॉरिटी कांग्रेस

नवादा जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के कृष्णा नगर में बुधवार रात हुए आगजनी की घटना ने पूरे राज्य में हलचल मचा दी, जिससे लेकर दिल्ली तक राजनीति का माहौल गर्म हो गया। इस घटना को दलित और दबंग संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया गया, लेकिन वास्तविकता इससे कुछ अलग है। इसमें कई राजनीतिक दलों ने अपनी रोटियां सेंकीं, लेकिन मीडिया और नेताओं ने इस मुद्दे की जड़ तक जाने की कोशिश नहीं की।

घटना का संक्षिप्त विवरण:

बुधवार रात नवादा के कृष्णा नगर स्थित महादलित टोले में आगजनी की एक घटना घटी, जिसमें कई घर जलकर राख हो गए। यह घटना एक बड़ी लड़ाई के रूप में उभर कर सामने आई, जो कोई नई नहीं थी, बल्कि 1995 से चली आ रही थी। शुरुआती रिपोर्ट्स में इसे दलितों और दबंगों के बीच संघर्ष बताया गया, और इसी के आधार पर राजनीतिक दलों ने बयानबाजी शुरू कर दी। राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव से लेकर दिल्ली में बैठे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया दी।

सच्चाई क्या है?:

यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह घटना दलित और दबंगों के बीच कोई जातीय संघर्ष नहीं था। असल में, यह जमीन के अधिकार से जुड़ा एक विवाद था, जिसमें दोनों पक्षों के लोग बिहार के पिछड़े और बहुसंख्यक समुदायों से ही थे। यह संघर्ष पिछले कई दशकों से चला आ रहा है और बुधवार की रात की घटना ने इसे हिंसक रूप दे दिया।

राजनीति में आए बदलाव और प्रतिक्रियाएं:

इस घटना के बाद, राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर 'दलित' और 'दबंग' शब्दों की गूंज सुनाई देने लगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रहे सुशासन पर सवाल उठे, और इस घटना को उनके प्रशासन की विफलता के रूप में देखा गया। हालांकि, तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि यह केवल जातीय संघर्ष नहीं, बल्कि एक जमीन विवाद था।

भूमि विवाद और उसका ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

यह विवाद जमीन के स्वामित्व को लेकर था, जिसमें लगभग 15 एकड़ जमीन नदी किनारे स्थित है। इसमें से कुछ हिस्से पर मुसहर (मांझी) और रविदास समुदाय के लोग झोपड़ियां बनाकर रह रहे थे, जबकि बाकी जमीन पर खेती कर रहे थे। इस भूमि को लेकर 1995 से नवादा व्यवहार न्यायालय में टाइटल सूट (22/1995) चल रहा है, जिसमें विभिन्न पक्षों के बीच हक की लड़ाई जारी है। हाल ही में हुए नए भूमि सर्वे के अनुसार यह जमीन रमजान मियां के नाम पर दर्ज हुई थी।

नई स्थिति और आगजनी की घटना:

रमजान मियां की यह जमीन पासवान, यादव, और चौहान समुदाय के लोगों ने खरीद ली थी, लेकिन भूमि पर भौतिक कब्जा अभी भी मुसहर और रविदास समाज के लोगों के पास था। जब नए भू-सर्वेक्षण के दौरान इन लोगों ने जमीन का वास्तविक अधिकार प्राप्त करने की कोशिश की, तो यह विवाद हिंसक रूप ले लिया और आगजनी की घटना घटी।

क्या कहते हैं प्रत्यक्षदर्शी?:

घटनास्थल पर मौजूद व्यास मुनी (पिता- संजय मांझी) के अनुसार, यह मामला अदालत में लंबित था, लेकिन जमीन पर कब्जा खाली कराने की कोशिश के दौरान दूसरे पक्ष ने गोलीबारी और आगजनी की। उनके मुताबिक, इस घटना में नंदू पासवान, पन्नू पासवान, शिबू पासवान, श्रवण पासवान, यमुना चौहान, सोमर चौहान, आशीष यादव, दशरथ चौहान, ब्रदी चौहान, रामशरण चौहान, मिथिलेश चौहान, यदुनंदन चौहान समेत कई लोग शामिल थे।

निष्कर्ष:

यह घटना केवल एक जातीय संघर्ष नहीं थी, बल्कि जमीन के स्वामित्व को लेकर एक लंबे समय से चली आ रही लड़ाई थी। इसमें दलित और दबंग की पारंपरिक परिभाषा फिट नहीं होती। इस विवाद की पृष्ठभूमि में भूमि सर्वेक्षण और सरकारी योजनाओं की कमियां भी सामने आई हैं। यह घटना यह दिखाती है कि कैसे कभी-कभी वास्तविक मुद्दों को समझे बिना राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की जाती है। यह आवश्यक है कि सरकार और समाज इस तरह के विवादों का समाधान संवेदनशीलता और निष्पक्षता के साथ करें, ताकि आगे ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।