डॉ. जावेद आजाद का संसद में शिक्षा मंत्रालय के अनुदानों पर भाषण: एक विस्तृत रिपोर्ट
डॉ. जावेद आजाद ने संसद में शिक्षा मंत्रालय के अनुदानों पर चर्चा के दौरान मोदी सरकार की शिक्षा नीतियों की तीखी आलोचना की। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में मोदी सरकार ने शिक्षा प्रणाली को कमजोर किया है, और शिक्षा पर बजट को घटाया है। डॉ. आजाद ने महात्मा गांधी और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के उद्धरणों के माध्यम से शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया और कांग्रेस के समय में लागू किए गए मुफ्त शिक्षा कानून की भी चर्चा की। उन्होंने शिक्षण संस्थानों में रिक्तियों, कोचिंग सेंटरों की समस्या, और परीक्षा प्रणाली की विफलताओं पर भी चिंता जताई। माइनॉरिटी मुद्दों और विदेश में पढ़ाई के मुद्दों पर भी उन्होंने ध्यान दिलाया। उनका भाषण शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को स्पष्ट करता है और सरकार से उचित कदम उठाने की अपील करता है।
फैसल सुल्तान
- डॉ. जावेद आजाद की संसद में शिक्षा बजट पर टिप्पणी
- मोदी सरकार के शिक्षा नीतियों पर डॉ. जावेद का तीखा हमला
- शिक्षा मंत्रालय के अनुदानों पर संसद में डॉ. जावेद की आलोचना
- कोचिंग सेंटरों और शिक्षक रिक्तियों पर डॉ. जावेद की चिंता
- विदेश में पढ़ाई और माइनॉरिटी मुद्दों पर डॉ. जावेद का भाषण
संसद में 2024-25 के लिए शिक्षा मंत्रालय के अनुदानों पर चर्चा के दौरान, डॉ. जावेद आजाद ने एक महत्वपूर्ण और विचारणीय भाषण दिया। उन्होंने इस अवसर पर न केवल अपनी पार्टी और किशनगंज के लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया, बल्कि उन्होंने मोदी सरकार की शिक्षा नीतियों पर भी तीखी आलोचना की। इस लेख में, हम उनके भाषण का विस्तृत विश्लेषण करेंगे और शिक्षा प्रणाली पर उनके विचारों को समझने की कोशिश करेंगे।
शिक्षा का महत्व और मोदी सरकार की आलोचना
डॉ. आजाद ने अपने भाषण की शुरुआत शिक्षा के महत्व को स्पष्ट करते हुए की। उन्होंने कहा कि किसी भी समाज की प्रगति का आधार शिक्षा होती है, और इस पर किसी भी सरकार का ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। उनका कहना था कि मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में शिक्षा के आधारभूत ढांचे को धीरे-धीरे कमजोर किया है। उनके अनुसार, मोदी सरकार ने जानबूझकर शिक्षा प्रणाली को बर्बाद किया है, जिससे समाज की प्रगति पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
डॉ. आजाद ने महात्मा गांधी और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के उद्धरणों के माध्यम से शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। महात्मा गांधी के अनुसार, शिक्षा को जीवन का अनिवार्य हिस्सा मानना चाहिए, और मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने हर बच्चे को शिक्षा का उपहार देने की बात की थी। डॉ. आजाद ने कांग्रेस द्वारा 2009 में लागू किए गए कानून की भी चर्चा की, जिसमें 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया था।
मोदी सरकार के वादे और उनकी असफलता
डॉ. आजाद ने मोदी सरकार के वादों और उनकी असफलताओं को उजागर किया। उन्होंने बताया कि मोदी सरकार ने 18 साल तक शिक्षा प्रदान करने का वादा किया था, लेकिन इस वादे को पूरा नहीं किया गया। कांग्रेस के समय में शिक्षा का बजट 3.36 प्रतिशत था, लेकिन मोदी सरकार ने इसे घटाकर 2.9 प्रतिशत कर दिया। यह कमी शिक्षा के क्षेत्र में निवेश की कमी को दर्शाती है।
उन्होंने यह भी बताया कि शिक्षा के बजट की कमी के कारण देश भर में शिक्षण संस्थानों की स्थिति दयनीय हो गई है। डॉ. आजाद ने आंकड़ों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि शिक्षा पर खर्च की जाने वाली राशि प्रति व्यक्ति बहुत कम है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ा है।
शिक्षण संस्थानों की स्थिति और रिक्तियां
डॉ. आजाद ने शिक्षण संस्थानों की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में 6,180, आईटीआई में 425, आईआईएम में 484, केंद्रीय विद्यालयों में 12,000 और जवाहर नवोदय विद्यालयों में 3,271 रिक्तियां हैं। इन रिक्तियों के कारण शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
उन्होंने बिहार में शिक्षकों की कमी का भी उल्लेख किया, जहां लगभग 4.8 लाख शिक्षक पद रिक्त हैं। यह स्थिति शिक्षा प्रणाली की विफलता को दर्शाती है और यह सवाल उठाती है कि छात्रों को उचित शिक्षा कैसे मिल सकेगी जब शिक्षकों की इतनी कमी हो।
कोचिंग सेंटरों की समस्या और आत्महत्याएं
डॉ. आजाद ने कोचिंग सेंटरों की समस्या पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि छात्रों को कोचिंग सेंटरों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, और इसके परिणामस्वरूप आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पिछले कुछ वर्षों में लगभग 133,000 छात्रों ने आत्महत्या की है, जो कि एक गंभीर मुद्दा है।
परीक्षा प्रणाली की विफलताएं और पेपर लीक
डॉ. आजाद ने परीक्षा प्रणाली की विफलताओं पर भी बात की। उन्होंने बताया कि पिछले वर्षों में कई पेपर लीक के मामले सामने आए हैं, जो कि शिक्षा प्रणाली की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि UGC-NET जैसी परीक्षाओं में भी असंगत परिणाम सामने आए हैं, जिससे छात्रों को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा है।
माइनॉरिटी मुद्दे और विदेश में पढ़ाई
डॉ. आजाद ने माइनॉरिटी मुद्दों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने माइनॉरिटी समुदाय के लिए बनाई गई योजनाओं को बंद कर दिया है। उन्होंने यूपीएससी स्कॉलरशिप योजना का उदाहरण दिया, जो कि अब बंद कर दी गई है। इसके परिणामस्वरूप माइनॉरिटी छात्रों की संख्या घट गई है।
उन्होंने विदेश में पढ़ाई करने के मुद्दे पर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई के लिए मजबूर हो रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप विदेशी संस्थानों में बड़ा धन जा रहा है।
निष्कर्ष
डॉ. जावेद आजाद का भाषण शिक्षा मंत्रालय के अनुदानों पर चर्चा के दौरान एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करता है। उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की और शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया। उनका भाषण यह दर्शाता है कि शिक्षा के क्षेत्र में निवेश की कमी और नीतिगत विफलताओं के कारण भारतीय शिक्षा प्रणाली गंभीर समस्याओं का सामना कर रही है।
इस भाषण के माध्यम से डॉ. आजाद ने सरकार से शिक्षा के बजट को बढ़ाने, शिक्षण संस्थानों में रिक्तियों को भरने और छात्रों को उचित शिक्षा सुविधाएं प्रदान करने की अपील की। उनका भाषण शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इससे नीति निर्माताओं को शिक्षा प्रणाली की समस्याओं को हल करने के लिए प्रेरित होना चाहिए।
डॉ. जावेद आजाद का संसद में स्पीच: शिक्षा मंत्रालय के तहत 2024-25 के लिए अनुदानों पर चर्चा और मतदान
माननीय अध्यक्ष, मैं इस अवसर पर अपने पार्टी नेतृत्व और किशनगंज के लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे एक बार फिर यहां बैठने और उनकी समस्याओं को उठाने का मौका दिया। मैं आज शिक्षा के अनुदानों पर चर्चा के लिए खड़ा हूं।
शिक्षा किसी भी समाज का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है और हमने देखा है कि मोदी सरकार के पिछले 10 वर्षों में इस आधार को धीरे-धीरे कमजोर किया है। शिक्षा समाज की प्रगति की नींव है, लेकिन पिछले दशक में मोदी सरकार ने हमारे शिक्षा प्रणाली और संस्थानों को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया है। आज मैं कुछ नीतियों और वादों को उजागर करना चाहता हूं।
महात्मा गांधी जी ने कहा था, "जिएं जैसे कल मरना हो और सीखें जैसे चार साल जीना हो।" पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने कहा था कि हर बच्चे को शिक्षा का सही समय पर उपहार मिलना चाहिए। कांग्रेस ने 2009 में एक कानून बनाया जिसके तहत 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया। इसके बाद इसे बढ़ाने की बात की गई, और मोदी जी ने भी 18 साल तक पढ़ाई कराने की बात कही, लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ।
हमने वादा किया था कि हम शिक्षा के बजट को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत तक ले जाएंगे, लेकिन कांग्रेस के समय में यह 3.36 प्रतिशत था, जबकि मोदी सरकार ने इसे घटाकर 2.9 प्रतिशत कर दिया है। यह बहुत ही अफसोसजनक है।
देश भर में लगभग 26 करोड़ बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, 4.3 करोड़ लोग कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहे हैं, और 11 करोड़ लोग स्किल्ड इंस्टीट्यूशंस में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। इसके अलावा, लगभग 1 से 1.1 करोड़ शिक्षक और स्टाफ हैं। यह एक तिहाई आबादी होती है, और शिक्षा के बजट को देखते हुए प्रति व्यक्ति मासिक राशि 200 रुपये से भी कम पड़ती है।
हम नए संस्थानों की बात करते हैं, लेकिन पुराने संस्थानों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। किशनगंज में 12 साल पहले दिए गए संस्थान को अब तक फंड नहीं मिला है। बिहार में लगभग 4.8 लाख शिक्षक पदों की रिक्तता है, जबकि बिहार से लगभग सवा लाख शिक्षक की कमी है। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में 6,180, आईटीआई में 425, आईआईएम में 484, केंद्रीय विद्यालयों में 12,000 और जवाहर नवोदय विद्यालयों में 3,271 रिक्तियां हैं। यही कारण है कि छात्रों को कोचिंग सेंटरों की ओर जाना पड़ता है, और इससे आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं।
मोदी सरकार ने कई बार पेपर लीक के मामले सामने आए हैं और हमारे छात्रों की कठिनाइयों को नजरअंदाज किया गया है। पिछले कुछ वर्षों में लगभग 133,000 छात्रों ने आत्महत्या की है, जो एक शर्मनाक स्थिति है।
हायर एजुकेशन के बजट को बढ़ाने की बजाय, मोदी सरकार ने इसे बर्बाद कर दिया है। हमारे बच्चे विदेशों में पढ़ाई करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप हमारे पैसे विदेशी संस्थानों में जा रहे हैं।
मैं अपील करता हूं कि जो भी योजनाएं और स्कीमें माइनॉरिटी के लिए थीं, उन्हें फिर से चालू किया जाए। हमें धर्म, जाति या किसी अन्य भेदभाव के बिना शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की जरूरत है।
अंत में, मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप शिक्षा के बजट पर ध्यान दें और इस दिशा में उचित कदम उठाएं। शिक्षा को बचाना और बेहतर बनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। धन्यवाद। जय हिंद।