बिहार में छात्रों का आक्रोश और बीपीएससी परीक्षा घोटाला | #nitishkumar | #TejaswiYadav |
बिहार में बीपीएससी परीक्षा में धांधली और बेरोजगारी के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन ने राजनीति में हलचल मचा दी है। छात्रों ने पटना में प्रदर्शन कर पुनः परीक्षा कराने की मांग उठाई। प्रदर्शन के दौरान प्रशांत किशोर ने छात्रों का समर्थन किया, लेकिन पुलिस लाठीचार्ज और पानी की बौछारों के समय वे वहां से गायब हो गए, जिससे छात्रों में आक्रोश फैल गया। छात्रों ने प्रशांत किशोर पर आंदोलन को हाईजैक करने और अपनी राजनीतिक छवि चमकाने का आरोप लगाया। नीतीश कुमार सरकार पर बेरोजगारी और पुलिस कार्रवाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं। 1956 और 1974 के छात्र आंदोलनों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए यह प्रदर्शन दिखाता है कि बिहार के छात्र अपने हक के लिए संघर्षरत हैं। क्या यह आंदोलन बिहार की राजनीति में बदलाव लाएगा, या यह भी अतीत की घटनाओं की तरह इतिहास के पन्नों में दब जाएगा? सवाल अनुत्तरित है।

फैसल सुल्तान
- नीतीश कुमार की चुप्पी, प्रशांत किशोर की चाल और छात्रों का संघर्ष!
- बीपीएससी परीक्षा में धांधली: छात्रों की उम्मीदों पर संकट!
- छात्रों के आंदोलन से सत्ता हिलने की तैयारी?
- छात्रों के आंदोलन ने खोली प्रशांत किशोर की पोल?
- बिहार में बेरोजगारी और घोटाले: कब तक सहेंगे युवा?
यह कहानी बिहार के छात्रों की है, जिनकी आवाज़ ने समय-समय पर सत्ता को चुनौती दी है, लेकिन उनकी समस्याएं और मुद्दे अब तक अनसुलझे बने हुए हैं। बिहार, जो अपनी युवा आबादी और छात्र आंदोलनों के इतिहास के लिए जाना जाता है, एक बार फिर केंद्र में है। यह कहानी 1956 में पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों के विरोध प्रदर्शन से शुरू होती है, जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ नेहरू गो बैक के नारे लगे। यह विरोध तब हुआ, जब एक छात्र की मौत के बाद गांधी मैदान में प्रदर्शन हुए, और केंद्र सरकार को झुकने पर मजबूर होना पड़ा।
बिहार के छात्र आंदोलनों का इतिहास
1974 में जेपी आंदोलन ने बिहार के छात्रों को एक नई पहचान दी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्रों ने संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया। यह आंदोलन 18 मार्च 1974 को तब और उग्र हो गया, जब विधानसभा घेराव के दौरान पुलिस ने गोली चलाई और तीन छात्रों की मौत हो गई। जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली की सत्ता को चुनौती देते हुए छात्रों का नेतृत्व किया। बिहार के छात्र आंदोलनों ने मंडल आयोग के बाद की राजनीति को भी गहराई से प्रभावित किया, लेकिन उनकी समस्याएं जस की तस रहीं।
वर्तमान चुनौतियां और सरकार की नाकामी
आज बिहार के छात्रों के सामने बेरोजगारी, पेपर लीक, और परीक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार जैसी पुरानी चुनौतियां हैं। राज्य में 22 लाख युवा रोजगार पंजीकरण में दर्ज हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो छात्र आन्दोलन से निकलकर नेता बने और पिछले 19 वर्षों से सत्ता में हैं ने बेरोजगारी भत्ता और अल्पसंख्यक उद्यमी योजनाओं का ऐलान तो किया, लेकिन यह प्रयास छात्रों के आक्रोश को कम करने में नाकाम रहे।
बीपीएससी परीक्षा घोटाला और छात्रों का आक्रोश
हाल ही में, 13 दिसंबर को बीपीएससी (बिहार लोक सेवा आयोग) की परीक्षा में धांधली के आरोपों ने राज्य में प्रदर्शन की नई लहर पैदा की। छात्रों ने पटना की सड़कों पर प्रदर्शन शुरू किया और दोबारा परीक्षा कराने की मांग की। इस आंदोलन में एक नया मोड़ तब आया, जब प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज यात्रा ने छात्रों का समर्थन करने का दावा किया।
प्रशांत किशोर ने छात्रों के साथ गांधी मैदान से मुख्यमंत्री आवास तक मार्च की योजना बनाई। लेकिन पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर प्रदर्शनकारियों को रोक दिया। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज और पानी की बौछारें कीं, जिससे छात्रों में नाराजगी बढ़ गई। वहीं, प्रशांत किशोर के आंदोलन से पीछे हटने को लेकर छात्रों ने उन पर विश्वासघात का आरोप लगाया। एक छात्र ने मीडिया में कहा, प्रशांत किशोर ने हमें भरोसा दिया था कि वे पहली लाठी खुद खाएंगे, लेकिन वे हमें बीच में छोड़कर भाग गए।
राजनीतिक बहस और सवाल
प्रशांत किशोर की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। छात्रों ने आरोप लगाया कि किशोर ने आंदोलन को हाईजैक करने और अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की। विरोधियों का कहना है कि प्रशांत किशोर को दिल्ली से समर्थन प्राप्त है। सवाल यह भी उठता है कि यदि प्रशांत किशोर की जगह तेजस्वी यादव या किसी अन्य विपक्षी नेता ने ऐसा किया होता, तो क्या उन्हें गिरफ्तार किया जाता?
बिहार की राजनीति पर प्रभाव
छात्र आंदोलनों ने हमेशा बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है। 2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह आंदोलन सत्ता को नई चुनौती देगा या यह सिर्फ एक और विवाद बनकर रह जाएगा। यह कहानी बिहार के उन संघर्षशील छात्रों की है, जो इतिहास रचने का माद्दा रखते हैं। उनकी यह लड़ाई न केवल रोजगार या परीक्षा प्रणाली के खिलाफ है, बल्कि उस व्यवस्था के खिलाफ है, जो उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी। आज के प्रदर्शन बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि छात्रों की आवाज़ सत्ता को झुकाने की ताकत रखती है।