दो साल तक की ओवैसी की जारी संवादहीनता से खिन्न रहे चारो विधायकों ने सेक्युलर फ्रंट की मजबूती के लिए राजद का साथ पकड़ा

बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्र किशनगंज के तीन एम आई एम विधायकों के साथ साथ भारतीय राजनीति के मानचित्र में वर्षों चर्चित रहे अररिया जिले के जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र के भी एम आई एम विधायक के द्वारा अचानक एम आई एम को तिलांजलि देकर राजद की सदस्यता ग्रहण कर लिए जाने की घटी राजनीतिक घटना को लेकर एक ओर जहां एम आई एम के कतिपय समर्थकों के द्वारा विरोध जताया जा रहा है , विधायकों को राजद के हाथों बिकाऊ बताया जा रहा है और विधायकों का जगह जगह पुतला दहन कराया जा रहा है , वहीं , दूसरी ओर सम्बन्धित क्षेत्रों की जनता के द्वारा सवाल खड़ा किया जा रहा है कि इस बड़ी राजनैतिक घटना पर कोई खुली प्रतिक्रिया एम आई एम के राष्ट्रीय सुप्रीमों सांसद असदुद्दीन ओवैसी के द्वारा अभी तक क्यों नहीं प्रकट किया जा रहा है।

दो साल तक की ओवैसी की जारी संवादहीनता से खिन्न रहे चारो विधायकों ने सेक्युलर फ्रंट की मजबूती के लिए राजद का साथ पकड़ा

दो साल तक की ओवैसी की जारी संवादहीनता से खिन्न रहे चारो विधायकों ने सेक्युलर फ्रंट की मजबूती के लिए राजद का साथ पकड़ा

चर्चा है कि दो साल से झांकने तक नहीं आए ओवैसी

और हैदराबाद में इलाज कराने पहुंचने वाले सीमांचल वासियों को नहीं देते थे कोई सुविधा

जिसके कारण चारो विधायकों को उठानी पड़ती थी शर्मिंदगी


सीमांचल (अशोक कुमार)

बताया जाता है कि पार्टी सुप्रीमों असदुद्दीन ओवैसी ने तब भी इस सीमांचल की ओर ताक झांक करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी जब विभिन्न माध्यमों से हल्ला मचा दिया गया था कि एम आई एम के सीमांचल स्थित पांच में से चार विधायकों के द्वारा पाला बदला जाने वाला है।

ओवैसी ने इस हल्ला के आलोक में अपने विधायकों से फोन पर भी कोई बातचीत नहीं किया और न ही उक्त हल्ला की तफ्तीश करने की कोई जहमत उठाई।

बताया जाता है कि ओवैसी की अपने चार विधायकों के साथ इस तरह की संवादहीनता की स्थिति चुनाव जीतने के बाद से ही इस क्षेत्र में बनी रही थी और कहा जाता है कि वह सिर्फ अपने बिहार प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सह विधायक जनाब अख्तरूल ईमान के बहलावे तक ही सीमित रह गए थे।

जिस कारण सीमांचल में यह सवाल तेजी से उबाल खा रहा है कि इस बड़ी राजनीतिक घटना के आलोक में अभी तक ओवैसी की कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं सामने आ पा रही है।

क्षेत्र में एम आई एम की राजनीति से जुड़े रहे और पार्टी की अंदरूनी जानकारी से रूबरू रहने वाले जानकार सूत्रों के अनुसार बताया गया है कि बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र से एम आई एम को जबसे कामयाबी हाथ लगी , तभी से जनाब असदुद्दीन ओवैसी अपने विजेता विधायकों के प्रति नजरिया बदलने का काम करते हुए ग्रैभिटी मेंटन करने लग गए थे और दो साल से स्थापित विधायकों से कभी भी एक फोन कॉल पर भी कोई बातचीत नहीं किए।

जिस कारण प्रारम्भ से ही उनके उक्त चारो विधायक पार्टी के अंदर अपने आप को हीन भावना से ग्रस्त मानने लगे थे। किसी बिषम परिस्थिति में उन्हें बातचीत के लिए पांचवे विधायक अख्तरूल ईमान बतौर प्रदेश पार्टी अध्यक्ष उपलब्ध हो पाते थे तो उनसे बातचीत के बाद चारो विधायक स्वयं को पेंडुलम के बीच झूलता हुआ महसूस करते थे।

सूत्र बताते हैं कि राजद की शरण में गए एम आई एम के उन चारो विधायकों को अपनी तत्कालीन पार्टी एम आई एम की राजनैतिक मापदंडों का पार्टी छोड़ने के समय तक पता नहीं चल पाया था और वैसी स्थिति में उन चारो विधायकों ने तय नहीं किया था कि उन्हें सरकार के पक्ष की राजनीति का हिस्सा बनना था कि विपक्ष की राजनीति का हिस्सा बनना था। यूं कहें कि विशुद्ध पेंडुलम की राजनीति के बीच उन चारो विधायकों ने अपने कार्यकाल में से दो साल व्यतीत किए थे।

दूसरी ओर इस दो साल में एक बार भी ओवैसी ने सीमांचल की जनता या सीमांचल स्थित अपने विधायकों की ओर झांका तक नहीं।
चुनाव से पहले जो ओवैसी जमकर सीमांचल की जनता के बीच आते थे और बाढ़ कटाव व अन्य आपदा के दौरान राशन सामग्री से लेकर भरपूर मात्रा में दवाइयों का वितरण कराते रहे थे , उस ओवैसी से उम्मीदें कायम हुईं थीं कि वह अब इन क्षेत्रों में दोगुनी ताकत से दबाई और राशन सामग्रियों की सहायता उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे , लेकिन , चुनाव के बाद से अब तक जनता की उक्त उम्मीदों पर पानी फिरता रह गया।

सूत्र बताते हैं कि उनके इन्हीं विधायकों ने बीते दो साल के बाढ़ के दौरान उन्हें आरजू मिन्नत के साथ सीमांचल में बुलाया था लेकिन उनका बुलावा ओवैसी के समक्ष नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित होता रहा था।

उल्टे ओवैसी के कारण इन विधायकों को अपने अपने क्षेत्र की जनता के सामने शर्मिंदगी का शिकार भी होता रहना पड़ता था।
बताया जाता है कि हैदराबाद की एम आई एम पार्टी की जीत के कारण उनके विधायकों के क्षेत्र की जनता बेहतर और किफायती चिकित्सा के लिए सीधे हैदराबाद की दौर लगाती रही थी लेकिन उन्हें वहां पर न तो किफायत नसीब होते थे और न ही बेहतर इलाज की सुविधा मिल पाती थी।

बताया जाता है कि वैसी स्थिति में जली भूनी सीमांचल की जनता अपने क्षेत्र के विधायकों को सामने खड़ी होकर खरी खोटी सुनाती थी और तब वैसी स्थिति में विधायकों को भारी शर्मिंदगी का शिकार होना पड़ता था।

बताया जाता है कि इन सभी कारणों से चुनाव जीतने के बाद से ही पार्टी से खिन्न होकर चल रहे सीमांचल के चारो एम आई एम विधायकों के उपर उनके निर्वाचन क्षेत्रों की जनता का ही दबाव पड़ने लगा कि उन्हें इस दल को त्यागकर बेहतर सेक्युलर दल में समय रहते शामिल हो जाना चाहिए।

चारो विधायकों ने वैसी स्थिति में एकजूट होकर जब उस बात पर मंथन शुरू किया तो उन्होंने महसूस किया कि नीतीश कुमार की जद यू में शामिल होने से उनका धन बल ही नहीं बल्कि सरकारी पॉवर भी बढ़ेगा , लेकिन , नीतीश कुमार के भाजपा की संगत में रहने के कारण सीमांचल की जनता को स्वीकार्य नहीं होगा कि वह जदयू में चले जाएं। दूसरी ओर कांग्रेस की डांवाडोल स्थिति को देखते हुए इन विधायकों ने कांग्रेस के साथ जाना भी उचित नहीं समझा।

तब चारो विधायकों ने अपने अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता से ही गुप्त रूप से रायशुमारी की तो जनता ने भविष्य की राजनीति के मद्देनजर सीधे राजद की शरण में जाने का सलाह दे दिया। जिस राजद को ये विधायकगण खुलेआम ईडी , सीबीआई बगैरह से परेशान होते देख रहे थे और जहां से कुछ भी प्राप्ति की इच्छा और आशाएं भी क्षीण थी।

लेकिन , बिहार की सबसे बड़ी ताकतवर सेक्युलर पार्टी की छवि चुंकि सिर्फ राजद की ही चल रही है अतः चारो विधायकों ने सीधे जाकर राजद की ही सदस्यता ग्रहण कर ली।
जाहिर सी बात है कि इस कारण सीमांचल की राजनीतिक फिंजा में अचानक मजबूत हो गई राजद को देखकर न सिर्फ एम आई एम के प्रदेश अध्यक्ष सह एकमात्र विधायक जनाब अख्तरूल ईमान के हाथ पांव फूल गए , वल्कि , सीमांचल की राजनीति में विचरण करने वाली दलें जदयू , भाजपा के साथ साथ कांग्रेस के भी हाथ पांव फूल गए।

सबों ने इस तरह की राजनीति का विरोध अपने अपने तरीके से जताना शुरू कर दिया।
एम आई एम ने जहां चारो विधायकों पर पैसे लेकर पार्टी बदलने का आरोप लगाया , सीमांचल के बहुसंख्यक समुदाय के वोटरों के साथ छल करने का आरोप लगाया , वहीं , जदयू के पैरोकारों ने कहा कि पार्टी ही बदलनी थी तो सत्तारूढ़ दल जदयू की शरण में जाना चाहिए था , जिससे धन और पॉवर दोनो का लाभ मिलता।

इस तरह के तमाम आरोपों को लेकर इस संवाददाता ने जब राजद में शामिल हुए चारो विधायकों को कुरेदा तो बहादुरगंज के नवागन्तुक राजद विधायक मोहम्मद अंजार नईमी ने सभी आरोपों को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि उनकी सामाजिक और राजनीतिक छवि कभी भी किसी राजनीतिक दल का मोहताज नहीं रही थी और अच्छी छवि के कारण ही उनकी पत्नी बहादुरगंज नगर परिषद की दो दो टर्म चेयरमैन रहीं।
उन्होंने कहा कि वे स्वयं विधानसभा का चुनाव लडने की तैयारी में ही सदैव रहे थे इसलिए उन्होंने खुद कभी भी वार्ड काउंसिलर का चुनाव नहीं लडा था लेकिन उन्होंने एम आई एम के उक्त दुष्प्रचार पर दुख व्यक्त किया , जिसमें दुष्प्रचार किया गया है कि वह कोंसिलर का चुनाव नहीं जीत सके थे।

उधर , सीमांचल गांधी के नाम से ख्यात रहे राजद के स्वर्गवासी सांसद सह पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री तस्लीमुद्दीन के छोटे पुत्र सह राजद के विधायक शाहनवाज आलम ने कहा कि वह एम आई एम के सिम्बोल पर भले ही चुनाव लडे थे लेकिन उनकी जीत तो उनकी अपनी और अपने अब्बा की लोकप्रियता के कारण ही जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार हो पायी थी।

बायसी के नवाग्नतुक राजद विधायक सैयद रूकनुद्दीन अहमद ने कहा कि अगर एम आई एम की ही लोकप्रियता के कारण हम सभी चारो विधायकों की जीत हुई थी तो क्या कारण थे कि किशनगंज की सदर विधानसभा क्षेत्र की सीट से जीती हुई बाजी को एम आई एम हार गई थी और क्या कारण था कि सीमांचल के किशनगंज संसदीय क्षेत्र के अलावा बिहार के या सीमांचल के ही अन्य किसी सीट पर एम आई एम को कामयाबी नहीं मिल पायी।

कोचाधामन के नवागन्तुक राजद विधायक हाजी इजहार अस्फी के अनुसार , वह स्वयं ही वर्षों से किंग मेकर की भूमिका में रहे हैं और एम एल ए बनने के लिए कभी किसी के मोहताज नहीं रहे हैं और हमलोग धन देने वाले रहे हैं न कि लेने वाले।

इस संदर्भ में सीमांचल में हर ओर यही चर्चा है कि एम आई एम को सीमांचल में अपनी ही करनी का फल मिला है। चर्चा के अनुसार , चुनाव के दौरान प्रदेश अध्यक्ष ने एम आई एम के टिकट के लिए अप्लाई करने वाले हजारों लोगों से बिहार भर में प्रति आवेदक तीन हजार की दर से लाखो रुपए की वसूली की गई थी और उसके अलावा टिकट की खरीद बिक्री के कई आरोप भी उछले थे। यहां तक कि कार्यकर्ताओं के एक विशेष दल को भी जबरन भारी भड़कम रूपए टिकट प्राप्त करने वाले से दिलाए गए थे लेकिन आज गलत तरीके से झूठी भावनाएं भड़काकर लोगों में उल्टा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि चारो विधायकगण ही लोभी हैं। जिसे जनता किसी कीमत पर स्वीकार करने वाली नहीं है।

बताया जाता है कि सीमांचल के चारो विधायकों के राजद में शामिल होने की खबर से सीमांचल की जनता को भारी खुशी हुई है और अब सीमांचल में जगह जगह इन विधायकों का स्वागत किया जाने वाला है।

चर्चा में दावा किया जा रहा है कि अब अभी से ही इन विधायकों की दरबारों में मुस्लिम और नन मुस्लिम दोनों ही समाज के लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है।