सीमांचल में मुस्लिम राजनीति का ठिकाना बने राजद कांग्रेस जदयू एमआईएम और पप्पू यादव के बीच नया ठिकाना बनने को बेताब हुए प्रशांत किशोर
40 सीटों पर मुसलमानों की भावी उम्मीदवारी की घोषणा कर जन सुराज ने मुसलमानों को रिझाया, सीमांचल में तेज हुई मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति , लाभ उठाने यहां वहां भटकने लगे मुस्लिम नेता और कार्यकर्तागण
सीमांचल (अशोक/विशाल)
अभी तक तो यही तय है कि सीमांचल का मुस्लिम समुदाय राजद और कांग्रेस से विमुख नहीं होगा और न ही एनडीए बीजेपी के किसी गठबंधन दल को अपना समर्थन देगा।
लेकिन , इसके बावजूद मुस्लिम समुदाय का थोड़ा बहुत कुछ हिस्सा उन राजनीतिक दल की ओर भी आकर्षित होने से नहीं चूकता है जिस दल में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का शगूफा जोरदार तरीके से मुसलमानों के बीच परोसा जाने लगता है।
वर्तमान समय के सीमांचल में कुछ ऐसा ही नजारा बखूबी दिखाई देता नजर आ रहा है जिसके अंतर्गत मुस्लिम वोटर फिर वैसे राजनीतिक दलों का शिकार होने को तत्पर दीख रहे हैं जो सीमांचल में प्रवेश करते ही जोर शोर से तुष्टिकरण की राजनीति पर आमादा हो गए हैं।
जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी राजनीति में भागीदारी के नारों को सुनकर सीमांचल का मुस्लिम समुदाय प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज का दीवाना बनने को आतुर हो गया है।
प्रशांत किशोर की प्रस्तावित राजनीतिक पार्टी जन सुराज की ओर सीमांचल के मुस्लिम समाज ने टकटकी लगा दिया है तो दूसरी ओर से प्रशांत किशोर ने सीमांचल को लक्षित करते हुए पहले पटना में राज्य भर से बुलाई गई बिहार की महिला समाज से गुफ्तगू और मशवरे किया तो उसके तुरत बाद पटना में ही मुस्लिम समाज के उभरते हुए वैसे नेताओं और कार्यकर्ताओं साथ गुफ्तगू और मशवरे जन सुराज अभियान को लेकर किया , जो पूरी तरह से गैर राजनीतिक हैं यानि राजद कांग्रेस जदयू एमआईएम से लेकर पप्पू यादव तक से दूरी बनाए रहे हैं।
प्रशांत किशोर के मुस्लिम समर्थित राजनीतिक प्रयासों के वशीभूत होकर मुस्लिम समाज के लोग बड़ी तादाद में प्रशांत किशोर की बैठक में शामिल होने पटना भी पहुंचे और आगामी 2 अक्टूबर को भी फिर से पटना पहुंचेंगे क्योंकि उसी दिन यानि गांधी जयंती के उपलक्ष्य पर जन सुराज पार्टी की बजाफ्ता आधिकारिक घोषणा हो जायेगी और मोदी की सीधी खिलाफत करते हुए मैदान ए राजनीतिक जंग में जन सुराज पार्टी कूद जायेगी।
बहरहाल जन सुराज में सीमांचल क्षेत्र की भागीदारी सर्वाधिक होने की संभावना के साथ प्रशांत किशोर पूरी तरह से आश्वस्त हैं।
बिहार के सीमांचल पूर्णिया प्रमंडल की पहचान बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में रही है। लिहाजा , जो भी राजनीतिक दलें इस क्षेत्र में अपनी राजनीतिक दुकानें चलाने आती हैं सभी की सभी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियां अपनाती हैं और इस क्रम में तरह तरह के झूठे सच्चे लुभावने वायदे और नारे परोस कर इस क्षेत्र की राजनीतिक मिजाजों में फेर बदल भी कराते रहते हैं।
बीजेपी विरोधी मिजाज से ओत प्रोत रहने वाले सीमांचल में कभी एक मुश्त कांग्रेस समर्थित मिजाज ही स्थापित रहे थे लेकिन यहां पर लालू प्रसाद यादव के इंट्रेंस के बाद मुस्लिम समाज ने अपने सबसे बड़े हितैषी के रूप में लालू प्रसाद यादव को ही मुस्लिम समाज के मसीहा के रूप में स्वीकारना शुरू कर दिया तो लालू से राजद तक ने वर्षों इस क्षेत्र को मर्जी मुताबिक रौंदा।
सीमांचल गांधी के रूप में उभरे सीमांचल के हर दिल और हर दल अजीज नेता स्वर्गीय तस्लीमुद्दीन के सहयोग से लालू प्रसाद यादव के सिक्के सीमांचल में जमकर चले।
उसके बाद जब नीतीश कुमार बिहार की गद्दी पर सत्तारूढ़ हुए तो उन्होंने इस सीमांचल में अपनी अलग मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के तहत अपनी पार्टी जदयू की बयारें बहानी शुरू कर दी।
इसी बीच जातिवादी राजनीति के तहत एक शानदार मौका हैदराबादी सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ए आई एम आई एम को भी हाथ लग गया और उसने भी एक साथ पांच विधायकों को इस सीमांचल से निर्वाचित करा लिया।
लेकिन , उन पांच में से चार विधायकों को राजद ने अपने पाले में घसीट लाकर तेजस्वी यादव को शानदार उभार प्रदान कर दिया और लालू के उत्तराधिकारी के रूप में तेजस्वी यादव बिहार के उप मुख्यमंत्री पद पर भी सुशोभित हो गए।
उधर , ए आई एम आई एम के बचे खुचे एकमात्र विधायक सह एमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान के सहारे एमआईएम इस सीमांचल में उछल कूद मचाने में लगी रही। लेकिन , दुर्भाग्यवश एमआईएम के इस प्रदेश अध्यक्ष को लोक सभा चुनाव में तीसरी बार भी नाकामयाबी ही हाथ लगी।
अर्थात , राजद और कांग्रेस के तिलिस्म को एमआईएम नहीं तोड़ पाई और मुस्लिम जनाधार का समर्थन सीमांचल में पूर्व की भांति राजद और कांग्रेस को ही जारी रह गया।
लेकिन अब , इस बार के आने वाले अगले बिहार विधान सभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर इस सीमांचल में जब चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अपनी प्रस्तावित पार्टी जन सुराज की धमक दिलाते हुए मुस्लिम हित की राजनीति का आगाज करना शुरू किया तो राजद कांग्रेस के झंडे ढोने वाले मुस्लिम समाज की दिलचस्पी अचानक जन सुराज के प्रति आकर्षित होनी शुरू हो गई।
जबकि दूसरी ओर इसी दरम्यान राजद के बैनर तले आरक्षण और जाति जनगणना को लेकर राज्यव्यापी धरना कार्यक्रम आयोजित किया गया। पूर्व की भांति राजद ने केंद्र की बीजेपी एनडीए सरकार को लथाड़ना शुरू कर दिया तो इसमें भी मुस्लिम समुदाय ने बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाया।
जिससे नया सवाल खड़ा हो गया है कि बिहार के मुस्लिम समाज का राजनीतिक ठिकाना पूर्व की भांति कांग्रेस और राजद ही बना रहेगा अथवा नई पार्टी जन सुराज भी मुस्लिम समुदाय की नई ठिकाना बनेगी।



