सीमांचल की राजनीति में बढ़ती नाराजगी और नए समीकरणों की जरूरत

सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस और राजद द्वारा चुनावी टिकट वितरण में गड़बड़ी और जनाधार वाले नेताओं की अनदेखी पर गहरी नाराजगी जताई जा रही है। किशनगंज में आगामी 1 दिसंबर को होने वाले जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन की सफलता पर भी संशय है, क्योंकि जदयू नेता ललन सिंह के "मुसलमान जदयू को वोट नहीं देते" जैसे बयानों और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पटना में जमीयत उलमा के जलसे में शामिल न होने से मुस्लिम समुदाय में असंतोष बढ़ा है। सीमांचल के मतदाता कांग्रेस और राजद से भी नाराज हैं, क्योंकि टिकट वितरण में धनबल को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे जनसेवा में सक्रिय नेताओं की अनदेखी होती है। मुस्लिम और यादव वोट बैंक के बावजूद पूर्णिया सदर जैसे इलाकों में भाजपा का किला अभी तक नहीं ढहा है। मुस्लिम समाज की लोकप्रिय नेता कनीज फातमा को कांग्रेस से टिकट देने की मांग जोर पकड़ रही है।इस बीच, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम सीमांचल में अपनी संभावनाएं तलाश रही है। मौलाना अरशद मदनी ने मुसलमानों से धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप सहन न करने की अपील की है। सीमांचल की राजनीति में नए समीकरणों की जरूरत महसूस की जा रही है।

सीमांचल की राजनीति में बढ़ती नाराजगी और नए समीकरणों की जरूरत

सीमांचल  (अशोक कुमार)

सीमांचल के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज में आगामी 1 दिसंबर को जदयू का कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित होने वाला है और बिहार की सत्तारूढ़ जदयू सहित प्रायः सभी गैर भाजपा राजनीतिक दलों की राजनीति में मुस्लिम समाज की निरंतर हो रही उपेक्षा का दंश बिहार के सबसे बड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र इस सीमांचल को ही झेलना पड़ता रहा है। जिस कारण जदयू के उक्त कार्यकर्ता सम्मेलन की सफलता पर संदेह जताया जा रहा है।

"बिहार की राजनीति में अपनी उपेक्षा से सीमांचल वासी मुस्लिम समाज इन दिनों निरंतर चिंतित रहा करते हैं। सीमांचल वासियों की उक्त चिंता तब और दुगुनी हो गई है, जब नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के ललन सिंह ने साफ़ साफ़ कह दिया कि जदयू को मुसलमान वोट नहीं देते हैं । जाहिर सी बात है कि ललन सिंह की उक्त बोली से मुस्लिम समाज की चिंता में इज़ाफा हुआ है और उसी बीच पटना में जमीयत उलमा बिहार द्वारा आयोजित जलसे में शिरकत करने पहुंचे मशहूर मौलाना अरशद मदनी की तकरीर में शामिल होने के लिए न्यौता भेजे जाने के बाबजूद जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं पहुंचे तो सीमांचल वासियों खासकर किशनगंज जिला वासियों की उक्त चिंता चरम पर जा पहुंची है।"

ऐसे में किशनगंज में 1 दिसंबर को होने वाले जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन की सफलता में भी भारी संदेह जताया जा रहा है। बिहार में अगला विधान सभा चुनाव 2025 में होने वाला है और उसको लेकर राजनीतिक दलों ने धीरे धीरे तैयारी भी शुरू कर दी है। प्रत्येक जिला में आयोजित किए जा रहे जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन को उसी तैयारी का हिस्सा माना जा रहा है।

मुस्लिम समाज पर ललन सिंह सरीखे वरिष्ठ जदयू नेता के द्वारा जदयू को वोट नहीं देने का आरोप लगाए जाने और लगे हाथ जमीयते उलमा बिहार द्वारा पटना में आयोजित जलसे में शिरकत करने से मुख्यमंत्री द्वारा इंकार किए जाने के बाद से सीमांचल में चर्चाओं का जो दौर शुरू हुआ है उसमें एक ओर से नए राजनीतिक समीकरण की आवश्यकता जताई जाने लगी है तो दूसरी ओर से सीमांचल में राजनीतिक विचरण कर रही हैदराबादी सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम इनके बीच अपनी संभावनाओं की जुगत भिड़ाने में जुट गई है।

जिसे नजरंदाज कर सीमांचल वासी मुस्लिम समुदाय मौलाना असद मदनी के उस आहवान को  समझ बूझ रहे हैं जिसमें मौलाना अरशद मदनी ने कड़ा आहवान मुसलमानों को किया है कि उन्हें अपने धार्मिक मामलों में किसी के भी हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करना है। क्षेत्र में इस संबंध में चल रही चर्चाओं के मुताबिक ,फिलवक्त महागठबंधन वाली कांग्रेस और राजद के अलावा कोई भी अन्य दल इस सीमांचल में मुसलमानों को आकर्षित नहीं कर पा रही है।

लेकिन , मुसलमानों में चिंता इस बात की है कि चुनाव के दौरान राजद और कांग्रेस के द्वारा भी टिकट के मामले में जनाधार वाले जनसेवक नेताओं की जगह धन दौलत वाले कथित नेताओं को ही पैरवी और धन राशियों की बदौलत टिकटें दे दी जाती हैं। कहने का स्पष्ट संकेत यही है कि किशनगंज जिले के ठाकुरगंज विधान सभा क्षेत्र में सांसद और विधायक से ज्यादा जनसेवा में लगे रहने वाले राजद नेता सह पूर्व प्रखंड प्रमुख मुश्ताक आलम और किशनगंज विधान सभा क्षेत्र में हरेक क्षण जनता की सेवा में लगे रहने वाले युवा राजद के अति प्रभावशाली नेता और राजद के ही पूर्व स्वर्गवासी मंत्री मुन्ना मुश्ताक के पुत्र एम के रिजवी उर्फ नन्हा मुश्ताक की टिकट के मामले में होती आ रही उपेक्षा और अनदेखी से पार्टी की अब तक की कोई भी सफलता स्थायित्व हासिल नही कर पाई है और यह सवाल पार्टी का पीछा विगत चुनावों से ही करती आ रही है। लेकिन , इस सवाल के निराकरण के प्रति पार्टी क्यों नहीं गंभीर हो पा रही है , यह सवाल अलग खड़ा है।

इस क्रम में पूर्णिया सदर विधान सभा क्षेत्र की सीट की चर्चा भी आवश्यक हो जाती है।यहां भी राजद और कांग्रेस ने हमेशा मनमानी पूर्वक ही सभी चुनावों में चुनावी टिकटें बांटा। पूर्णिया सदर विधान सभा क्षेत्र की सीट पर चुनाव लड़ाने के लिए ये पार्टियां न यादव समाज से किसी उम्मीदवार को आगे बढ़ाती है और न हीं मुस्लिम समाज के किसी सक्षम उम्मीदवार को चुनावी टिकट प्रदान कर चुनाव लड़ाने के लिए आगे बुलाती है।

यादव और मुस्लिम समाज के संयुक्त वोट बैंक की ताकत से भाजपा के इस किले को इस बार के आने वाले अगले विधान सभा चुनाव के दौरान पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया जा सकता है क्योंकि यही ताकत पिछले संसदीय चुनाव में जदयू के गढ़ माने जाने वाले पूर्णिया को ध्वस्त कर दी थी। उक्त चुनाव में पप्पू यादव को कांग्रेस ने राजद के बहकावे में आकर टिकट नहीं दिया था। लेकिन , यादव मुस्लिम एकजुटता ने पप्पू यादव को बिजयी बनाकर एनडीए को धूल चटाने में कामयाबी हासिल करके कांग्रेस को शर्मिंदगी उठाने के लिए मजबूर कर दिया था।

यही कारण है कि पूर्णिया सदर विधान सभा क्षेत्र की सीट से भी भाजपा की विदाई तय कराने की दिशा में मुस्लिम समाज की अति लोकप्रिय समाज सेविका कनीज फातमा सरीखे प्रभावशाली समाजसेवी नेता को कांग्रेस के बैनर तले विधान सभा चुनाव में उतारने की मांग हर ओर से की जा रही है।

पूर्णिया सदर विधान सभा क्षेत्र में मुस्लिम समाज की अतिलोकप्रिय समाजसेविका कनीज फातमा पूर्णिया सदर की सीट से चुनाव मैदान में कूदने की जोरदार तैयारी में जुटी हुई भी है और उनके साथ स्थापित विशाल वोट बैंक भी किसी से छूपे हुए नहीं हैं और कनीज फातमा की प्रथम आकांक्षा भी कांग्रेस की टिकट पर ही विधान सभा चुनाव लड़ने की है । लेकिन , कांग्रेस पार्टी को कनीज फातमा सरीखे बड़े जनाधार वाली नेता दिखाई क्यों नहीं दे रही है। यह आश्चर्य की बात है।